POSHAN अभियान में FRS अनिवार्य: लाभ के बजाय बाधा बनती डिजिटल प्रणाली?

केंद्र सरकार ने 1 जुलाई 2025 से POSHAN अभियान के तहत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए फेस रिकग्निशन सिस्टम (FRS) को अनिवार्य कर दिया है। अब ‘टेक-होम राशन’ (THR) पाने के लिए हर बार आधार सत्यापन और चेहरे की स्कैनिंग आवश्यक होगी। सरकार का दावा है कि इससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है।
POSHAN ट्रैकर में बदलाव: जमीनी कर्मियों पर बढ़ता दबाव
सरकार ने POSHAN Tracker मोबाइल ऐप को अपडेट कर ‘स्किप’ का विकल्प हटा दिया है। 30 जून को देशभर की आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं (AWWs) को ऐप को अनइंस्टॉल कर दोबारा इंस्टॉल करने के निर्देश दिए गए। हर वितरण में अब दोहरी प्रक्रिया अनिवार्य है — आधार नंबर, ओटीपी और फिर फेस स्कैन।
तकनीकी और सामाजिक समस्याएँ
- अधिकांश लाभार्थी महिलाएं अपने नाम से फोन नहीं रखतीं, और उनका आधार से लिंक नंबर परिवार के पुरुष सदस्य का होता है।
- ओटीपी समय पर नहीं आता, नेटवर्क कमजोर रहता है, और कई बार फेस स्कैन फेल हो जाता है।
- कई महिलाएं पुराना नंबर या मोबाइल डिवाइस खो चुकी हैं, जिससे ई-केवाईसी असंभव हो जाता है।
एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने बताया, “कभी-कभी एक व्यक्ति की प्रक्रिया में ही 20 मिनट लग जाते हैं। पूरी टीम का समय यहीं खर्च हो जाता है। बच्चों की पढ़ाई और अन्य कर्तव्य पीछे छूट जाते हैं।”
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- POSHAN अभियान का उद्देश्य 6–36 माह के बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं की पोषण स्थिति सुधारना है।
- FRS और लाइवनेस डिटेक्शन अब THR और 3-6 वर्ष के बच्चों की पूर्व-विद्यालय सेवाओं के लिए अनिवार्य कर दिए गए हैं।
- AIFAWH (अखिल भारतीय आंगनवाड़ी कर्मचारी और सहायिका महासंघ) ने इस निर्णय को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का उल्लंघन बताते हुए इसे तत्काल वापस लेने की मांग की है।
- AIFAWH ने 9 जुलाई 2025 को राष्ट्रव्यापी हड़ताल की घोषणा की है।
काम पर असर और हिंसा की घटनाएँ
- उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में 19 जून को एक महिला कार्यकर्ता को e-KYC करते समय एक लाभार्थी के पति ने डंडे से पीटा, जिससे वह एक दिन तक बेहोश रहीं।
- AIFAWH ने बताया कि कार्यकर्ताओं पर दबाव, धमकी, मानसिक तनाव और स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ रही हैं।
- अधिकारियों के दबाव में अब कार्यकर्ताओं को ‘FRS फेल’ होने पर सेवा समाप्ति की धमकियाँ दी जा रही हैं।
डिजिटल विभाजन से बढ़ता बहिष्करण
विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति दूरदराज और आदिवासी क्षेत्रों में डिजिटल बहिष्करण को बढ़ावा देगी। जिन क्षेत्रों में कुपोषण सबसे ज्यादा है, वहीं पर यह प्रणाली सबसे अधिक विफल हो रही है। पहले भी ऐसी ही स्थिति सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS), मनरेगा, और पेंशन योजनाओं में देखी जा चुकी है।
यह निर्णय सामाजिक न्याय की भावना के विरुद्ध जाता है। जब टेक्नोलॉजी गरीबों को राहत देने के बजाय एक और दीवार बन जाए, तो नीतियों की समीक्षा अनिवार्य हो जाती है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पोषण की गारंटी तकनीकी विफलताओं पर निर्भर न हो, बल्कि मानवाधिकारों और गरिमा पर आधारित हो।