MSEs और व्यक्तिगत कर्ज़धारकों के लिए राहत: RBI ने floating rate loans पर pre-payment charges हटाए

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने माइक्रो और स्मॉल एंटरप्राइज़ेज़ (MSEs) तथा व्यक्तिगत कर्ज़धारकों को एक बड़ी राहत देते हुए floating rate loans पर foreclosure और pre-payment charges समाप्त करने का निर्णय लिया है। यह नियम 1 जनवरी 2026 से लागू होंगे और उन सभी ऋणों पर प्रभावी होंगे जो उस तारीख के बाद स्वीकृत या नवीनीकृत किए जाएंगे।
क्या हैं नए निर्देश?
RBI ने निर्देश जारी किए हैं कि निम्नलिखित ऋण संस्थाएं pre-payment charges नहीं वसूल सकेंगी:
- वाणिज्यिक बैंक (Commercial Banks)
- टियर 4 प्राइमरी (अर्बन) को-ऑपरेटिव बैंक
- एनबीएफसी – अपर लेयर (NBFC-UL)
- अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान (All India Financial Institutions)
इन संस्थाओं को MSEs और व्यक्तिगत उपभोक्ताओं को दिए गए सभी floating rate loans पर foreclosure शुल्क लेने से मना किया गया है।
किन ऋण संस्थाओं को कुछ छूट दी गई है?
- स्मॉल फाइनेंस बैंक (SFBs)
- क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRBs)
- स्थानीय क्षेत्रीय बैंक (Local Area Banks)
इनके लिए नियम थोड़ा भिन्न है:यदि ऋण की राशि ₹50 लाख तक है, तो ये संस्थाएं भी pre-payment charges नहीं वसूल सकतीं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- Micro enterprises: निर्माण क्षेत्र में जहां संयंत्र/मशीनरी पर निवेश ₹25 लाख से कम हो।
- Small enterprises: निवेश ₹25 लाख से ₹5 करोड़ के बीच।
- सेवा क्षेत्र में माइक्रो इकाइयों के लिए उपकरण पर निवेश ₹10 लाख से कम और स्मॉल इकाइयों के लिए ₹10 लाख से ₹2 करोड़ के बीच होता है।
- Floating rate loan: ऐसा ऋण जिसकी ब्याज दर समय-समय पर बाजार दर के अनुसार बदलती रहती है।
- Foreclosure/Pre-payment charges: ऋण को समय से पहले चुकाने पर लगने वाला अतिरिक्त शुल्क।
अन्य महत्वपूर्ण बातें
- कैश क्रेडिट और ओवरड्राफ्ट सुविधाओं पर भी pre-payment charge नहीं लगेगा, यदि ग्राहक पहले से सूचित करता है और तय तिथि तक ऋण चुकता कर देता है।
- यदि ऋणदाता (RE) स्वयं ऋण चुकाने का आग्रह करे, तो भी कोई शुल्क नहीं वसूला जाएगा।
- Loan agreement और sanction letter में शुल्क की जानकारी स्पष्ट रूप से दी जानी चाहिए।
- पहले से माफ किए गए शुल्कों को पुनः पूर्वव्यापी रूप से वसूल नहीं किया जा सकता।
इस फैसले का महत्व
RBI की निगरानी में पाया गया कि विभिन्न संस्थाएं pre-payment charges को लेकर भिन्न-भिन्न और कभी-कभी ग्राहकों को हानि पहुंचाने वाली शर्तें लागू कर रही थीं। इससे उपभोक्ता शिकायतें बढ़ीं और प्रतिस्पर्धा घट रही थी।
अब नए नियमों से:
- MSEs को सस्ते और लचीले ऋण विकल्पों तक बेहतर पहुँच मिलेगी।
- कर्ज़धारक आसानी से एक ऋणदाता से दूसरे ऋणदाता की ओर स्थानांतरण कर पाएंगे, जिससे ब्याज दरों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी।
- मौजूदा और नए ग्राहकों के बीच भेदभाव कम होगा।
RBI का यह कदम न केवल MSE क्षेत्र को सशक्त करेगा, बल्कि बैंकिंग प्रणाली में ग्राहक-केंद्रित पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा को भी प्रोत्साहित करेगा।