DRDO ने SDR और ट्रांसहॉराइजन संचार प्रणाली का सफल परीक्षण किया: राष्ट्रीय सुरक्षा में स्वदेशी संचार तकनीक की मजबूती

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की एक इकाई, डिफेंस इलेक्ट्रॉनिक्स एप्लीकेशन लैबोरेटरी (DEAL), देहरादून ने हाल ही में उत्तराखंड के जोशीमठ क्षेत्र में दो अत्यंत महत्वपूर्ण संचार प्रणालियों — सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो (SDR) और कॉम्पैक्ट ट्रांसहॉराइजन कम्युनिकेशन सिस्टम (CTCS) — का सफल फील्ड ट्रायल पूरा किया है। यह उपलब्धि भारत में स्वदेशी, सुरक्षित और मिशन-क्रिटिकल संचार समाधान के विकास में एक महत्वपूर्ण कदम है।
SDR और CTCS: संक्षिप्त विवरण
SDR एक सॉफ्टवेयर आधारित सुरक्षित संचार प्रणाली है, जो डिजिटल वॉइस/डेटा ट्रांसमिशन के साथ-साथ विरासत संचार प्रणाली को भी समर्थन देती है। यह प्रणाली नौसैनिक और सामरिक संचालन दोनों के लिए उपयुक्त है और इसके विविध चैनल कॉन्फ़िगरेशन इसे बहुउद्देशीय बनाते हैं — जैसे 2V/UHF और 1HF बैंड से युक्त तीन-चैनल प्रणाली।
वहीं, CTCS एक ‘लार्ज हॉप टेरेस्ट्रियल बैकहॉल कम्युनिकेशन सिस्टम’ है, जिसे ऐसे दूरदराज के क्षेत्रों में उपयोग के लिए विकसित किया गया है जहाँ सिविल कम्युनिकेशन ग्रिड मौजूद नहीं होता। यह प्रणाली उच्च डेटा दर पर कनेक्टिविटी सुनिश्चित करने की क्षमता रखती है।
विविध भू-प्राकृतिक और परिचालन स्थितियों में परीक्षण
यह परीक्षण गृह मंत्रालय, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPFs) और अन्य एजेंसियों के समन्वय में आयोजित किया गया। इसमें ITBP, SSB, BSF, असम राइफल्स, IB, NSG, CRPF, CISF समेत विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारियों ने भाग लिया। परीक्षण का उद्देश्य इन प्रणालियों की वास्तविक स्थितियों में कार्यक्षमता की पुष्टि करना था, जिसमें संचालन से जुड़े प्रमुख मापदंडों की जाँच भी शामिल थी।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- SDR (Software Defined Radio) एक बहुचैनल सुरक्षित रेडियो संचार प्रणाली है जो DRDO द्वारा विकसित की गई है, विशेष रूप से नौसेना और सामरिक उद्देश्यों के लिए।
- CTCS (Compact Transhorizon Communication System) DEAL, देहरादून द्वारा विकसित एक उच्च डेटा दर बैकहॉल प्रणाली है, जो दूरदराज इलाकों में संचार सुविधा प्रदान करती है।
- DEAL (Defence Electronics Application Laboratory) DRDO की वह इकाई है जो सैन्य संचार प्रणालियों के अनुसंधान और विकास में कार्यरत है।
- ट्रायल स्थल उत्तराखंड के जोशीमठ क्षेत्र में किया गया, जो एक चुनौतीपूर्ण भू-प्राकृतिक क्षेत्र है, और वास्तविक परिचालन वातावरण का प्रतिनिधित्व करता है।
इस सफलता के साथ DRDO ने न केवल भारत की आत्मनिर्भरता को और मजबूत किया है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक संचार प्रणालियों के स्वदेशीकरण में भी एक महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे मिशन-क्रिटिकल प्रणालियों का देश में विकास और परीक्षण यह दर्शाता है कि भारत अब संचार सुरक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर है, और भविष्य में यह तकनीक सीमा क्षेत्रों और संकट-प्रभावित इलाकों में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।