COP30 से पहले जलवायु वार्ताओं में सुधार की मांग: विकसित बनाम विकासशील देशों की चिंताएं

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दशकों से किए जा रहे वैश्विक प्रयासों के बावजूद, अब तक के परिणाम अपेक्षाकृत निराशाजनक रहे हैं। विकसित देशों द्वारा अपने वादों को पूरा न कर पाना और उनकी जवाबदेही तय न होना, इस असंतोष का एक बड़ा कारण है। वहीं विकासशील, विशेषकर छोटे और संवेदनशील देशों का कहना है कि उनकी चिंताओं को नजरअंदाज किया जाता है और जलवायु न्याय की मांगें अधूरी रह जाती हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प की व्हाइट हाउस में वापसी के बाद अमेरिका का जलवायु वार्ताओं से बाहर हो जाना, इस पूरी प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा करता है। इन हालातों में ब्राज़ील द्वारा नवंबर में आयोजित होने वाले COP30 सम्मेलन के लिए एक नई उम्मीद की किरण दिखाई जा रही है।

जलवायु वार्ताओं में सुधार की पहल

जून में जर्मनी के बॉन में आयोजित वार्षिक मध्यवर्षीय बैठक में इस बात को स्वीकार किया गया कि जलवायु वार्ताओं की बढ़ती जटिलता और विस्तार, प्रक्रिया की कार्यकुशलता को प्रभावित कर रहे हैं। इस बैठक में चर्चा के दौरान कई सुधार प्रस्ताव रखे गए, जैसे:

  • एजेंडा बिंदुओं को सुव्यवस्थित करना ताकि दोहराव से बचा जा सके।
  • वक्तव्यों की लंबाई सीमित करना ताकि वार्ताओं के लिए अधिक समय उपलब्ध हो।
  • वार्ताकारों की टीमों के आकार को सीमित करना।

हालांकि ये चर्चाएं ठोस नतीजों तक नहीं पहुँच पाईं और COP30 में इन्हें आगे बढ़ाया जाएगा।

नागरिक संगठनों की मुख्य मांगें

बॉन बैठक में 200 से अधिक नागरिक संगठनों ने एक पत्र में पाँच प्रमुख सुधारों की मांग की:

  • निर्णय प्रक्रिया में बहुमत आधारित प्रणाली को अपनाने की मांग ताकि हर निर्णय सर्वसम्मति पर निर्भर न रहे।
  • जिन देशों का जलवायु कार्रवाई का रिकॉर्ड खराब है, उन्हें COP की मेज़बानी न दी जाए।
  • जीवाश्म ईंधन कंपनियों और प्रदूषणकारी उद्योगों के प्रतिनिधियों की भागीदारी सीमित की जाए।

ब्राज़ील की भूमिका और नेतृत्व

ब्राज़ील, COP30 की मेज़बानी के साथ-साथ नेतृत्व की भूमिका भी निभा रहा है। उसने सभी पक्षों को एक पत्र लिखकर प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता को स्वीकारा और उन्हें इस दिशा में सोचने को कहा। उसने 30 ऐसे बिंदुओं की सूची तैयार की है जिन पर अन्य देशों के साथ मिलकर कार्य किया जाएगा।
साथ ही, ब्राज़ील ने जलवायु चर्चा को अन्य बहुपक्षीय मंचों में भी मुख्यधारा में लाने का सुझाव दिया है और UNFCCC प्रक्रिया को पूरक करने के लिए अतिरिक्त वैश्विक तंत्र स्थापित करने की वकालत की है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • UNFCCC (संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क संधि) की स्थापना 1992 में की गई थी।
  • हर साल आयोजित होने वाली COP बैठकें, UNFCCC के निर्णय लेने वाले सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करती हैं।
  • 2015 का पेरिस समझौता, वैश्विक तापमान को 1.5°C तक सीमित करने के लक्ष्य के साथ ऐतिहासिक जलवायु संधि है।
  • BRICS (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) अब 9 देशों का समूह बन चुका है, जो विकासशील देशों की आवाज़ को मजबूत करता है।

विकासशील देशों की सबसे बड़ी चिंता जलवायु वित्त को लेकर है। पेरिस समझौते के तहत विकसित देशों को हर साल कम से कम $100 अरब जुटाने की जिम्मेदारी थी, जबकि ज़रूरत $1.3 ट्रिलियन प्रतिवर्ष की आंकी गई है। परंतु अब तक केवल $300 अरब प्रति वर्ष जुटाने की सहमति बनी है, वह भी 2035 से। इस मुद्दे पर BRICS देशों ने भी अपने हालिया सम्मेलन में चिंता जताई है और विकसित देशों से अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की मांग की है।
COP30 सम्मेलन में ये सभी मुद्दे केंद्र में रहेंगे और यह देखा जाएगा कि क्या यह बैठक जलवायु न्याय और वैश्विक सहयोग की नई राह खोल सकती है।

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