BRICS देशों की CBAM नीति पर आलोचना: जलवायु व्यापार प्रतिबंधों पर बढ़ता विरोध

BRICS देशों की CBAM नीति पर आलोचना: जलवायु व्यापार प्रतिबंधों पर बढ़ता विरोध

यूरोपीय संघ (EU) द्वारा लागू की गई “कार्बन सीमा समायोजन तंत्र” (CBAM) नीति को लेकर BRICS देशों ने हाल ही में तीव्र असंतोष जताया है। ब्राज़ील में आयोजित BRICS शिखर सम्मेलन में नौ प्रमुख विकासशील देशों ने इसे “एकतरफा, दंडात्मक और भेदभावपूर्ण संरक्षणवादी उपाय” करार देते हुए खारिज कर दिया। उनका कहना है कि ऐसे उपाय विकासशील देशों के हरित अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण को नुकसान पहुँचाते हैं।

क्या है CBAM और इसे लेकर विवाद क्या है?

CBAM, यूरोपीय संघ द्वारा 2023 में लागू किया गया एक नीति तंत्र है, जिसके तहत बाहर से आयात किए गए उन उत्पादों पर शुल्क लगाया जाता है जिनका निर्माण अधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाली प्रक्रियाओं से हुआ है। इसका उद्देश्य कथित तौर पर “कार्बन लीकेज” को रोकना है, यानी यह सुनिश्चित करना कि उद्योग कार्बन उत्सर्जन नियमों से बचने के लिए सस्ते देशों में न शिफ्ट हो जाएं।
हालाँकि, भारत और चीन जैसे देशों का कहना है कि यह नीति उनके उत्पादों — जैसे स्टील, सीमेंट आदि — को यूरोपीय बाजार में महंगा और गैर-प्रतिस्पर्धी बना देती है। इससे उनके उद्योगों को बड़ा झटका लगता है।

विकासशील देशों की आपत्तियाँ

  • व्यापार पर असर: CBAM को एक अनुचित व्यापार बाधा माना जा रहा है, जो WTO जैसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों का उल्लंघन करता है।
  • पेरिस समझौते का उल्लंघन: 2015 के पेरिस समझौते में यह प्रावधान है कि जलवायु कार्रवाई के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों से विकासशील देशों की रक्षा की जाए।
  • ‘समान लेकिन विभेदित जिम्मेदारी’ की अनदेखी: वैश्विक जलवायु व्यवस्था में विकासशील देशों को विशेष दर्जा दिया गया है, CBAM इस सिद्धांत की अवहेलना करता है।

BRICS और BASIC देशों की प्रतिक्रिया

BRICS देशों ने इस नीति के खिलाफ एकजुट स्वर में विरोध जताया है। भारत, चीन, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका सहित BASIC समूह ने COP27 और COP29 जैसे जलवायु सम्मेलनों में स्पष्ट रूप से CBAM को बाज़ार को विकृत करने वाली नीति बताया था। इन देशों ने यह भी कहा कि यह विकसित देशों की ज़िम्मेदारियों को विकासशील देशों पर स्थानांतरित करने का एक प्रयास है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • CBAM (Carbon Border Adjustment Mechanism) को EU ने 2023 में लागू किया, लेकिन पूर्ण प्रभाव में यह 2026 से आएगा।
  • EU विश्व के कुल आयात का लगभग 15% हिस्सा नियंत्रित करता है।
  • BASIC समूह में ब्राज़ील, भारत, दक्षिण अफ्रीका और चीन शामिल हैं, जो जलवायु वार्ताओं में विकासशील देशों की आवाज़ को प्रस्तुत करते हैं।
  • पेरिस समझौते का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है: समान लेकिन विभेदित ज़िम्मेदारियाँ (Common but Differentiated Responsibilities – CBDR)।

अन्य देशों की नीतियाँ और वैश्विक रुझान

CBAM जैसी नीतियाँ अब केवल यूरोप तक सीमित नहीं रहीं। ब्रिटेन और कनाडा भी इस प्रकार के तंत्र पर विचार कर रहे हैं। अमेरिका ने भी 2022 में “इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट” के माध्यम से स्वदेशी हरित तकनीकों को प्रोत्साहन देना शुरू किया है, जिससे वैश्विक व्यापार संरचना प्रभावित हो सकती है।
यह प्रवृत्ति यह भी दर्शाती है कि जलवायु परिवर्तन अब केवल पर्यावरणीय मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह वैश्विक भू-राजनीति, व्यापार और सुरक्षा रणनीतियों का एक अहम हिस्सा बन चुका है।
CBAM जैसे उपायों से वैश्विक जलवायु सहयोग की प्रक्रिया और अधिक जटिल होती जा रही है। विकासशील देशों का कहना है कि जलवायु न्याय तब तक संभव नहीं जब तक ऐसे एकतरफा और भेदभावपूर्ण उपायों को रोका न जाए। आने वाले समय में, यह संघर्ष वैश्विक मंचों पर और भी अधिक मुखर हो सकता है।

Originally written on July 10, 2025 and last modified on July 10, 2025.

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