AI आधारित प्रोटीन से इम्युनिटी में क्रांतिकारी बदलाव: हार्वर्ड वैज्ञानिकों की नई खोज

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की एक टीम ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की मदद से ऐसे प्रोटीन विकसित किए हैं जो मानव शरीर में प्रतिरक्षा कोशिकाओं (T-Cells) के निर्माण को तेज़ करते हैं। यह सफलता कैंसर से लेकर वायरल संक्रमणों तक के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रणाली को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह शोध हाल ही में प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका Cell में प्रकाशित हुआ है।

क्या है Notch सिग्नलिंग और इसकी भूमिका?

शोध का केंद्र बिंदु है ‘Notch सिग्नलिंग’ नामक एक प्रमुख जैविक मार्ग, जो कोशिकाओं के विकास और प्रतिरक्षा तंत्र के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह प्रणाली शरीर की कोशिकाओं के बीच संचार की प्रक्रिया को नियंत्रित करती है और T-Cells के विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। लेकिन अब तक इस सिग्नलिंग को सक्रिय करने के लिए कोई प्रभावी और प्रयोग योग्य अणु उपलब्ध नहीं था।

AI से डिजाइन किए गए प्रोटीन की सफलता

असम के डॉ. रुबुल मौट, जो इस शोध के प्रमुख वैज्ञानिक हैं, ने बताया कि टीम ने AI की मदद से ऐसे विशेष प्रोटीन (soluble Notch agonists) तैयार किए जो शरीर में Notch सिग्नलिंग को प्रभावी ढंग से सक्रिय करते हैं। इन प्रोटीनों का प्रयोग प्रयोगशाला की बायोरिएक्टर प्रणाली में T-Cells के बड़े पैमाने पर उत्पादन में सफल रहा।
इसके अतिरिक्त, जब इन प्रोटीनों को चूहों में टीकाकरण के दौरान प्रयोग किया गया, तो उनमें अधिक सशक्त T-Cell प्रतिक्रिया देखी गई। इससे यह संकेत मिला कि इन प्रोटीनों से प्रतिरक्षा प्रणाली दीर्घकालिक रूप से मजबूत होती है, जिससे वैक्सीन का प्रभाव भी अधिक टिकाऊ हो सकता है।

कैंसर और इम्यूनोथेरेपी के लिए नई संभावनाएं

डॉ. मौट का कहना है कि इस तकनीक से न केवल T-Cells को उत्पन्न करना संभव हुआ है, बल्कि भविष्य में इसका उपयोग कैंसर टीकों और इम्यूनोथेरेपी के नए तरीकों में किया जा सकता है। उनका लक्ष्य ऐसे सिंथेटिक प्रोटीन विकसित करना है जो T-Cells और कैंसर कोशिकाओं के बीच सेतु का कार्य करें, जिससे कैंसर कोशिकाओं को अधिक प्रभावी ढंग से नष्ट किया जा सके।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • Notch सिग्नलिंग कोशिकाओं की भिन्नता और प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए आवश्यक एक जैविक मार्ग है।
  • AI-डिज़ाइन प्रोटीन के ज़रिए T-Cells का प्रयोगशाला में बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हुआ है।
  • डॉ. डेविड बेकर, जो इस तकनीक के पीछे हैं, को 2024 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार मिला है।
  • इस शोध में हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, बोस्टन चिल्ड्रन हॉस्पिटल, करोलिंस्का इंस्टिट्यूट और डाना-फार्बर कैंसर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक भी शामिल हैं।

यह खोज न केवल विज्ञान के क्षेत्र में एक मील का पत्थर है, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य संकटों जैसे कैंसर और महामारी के खिलाफ लड़ाई में एक नई उम्मीद भी प्रदान करती है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के सहारे बनाई गई यह तकनीक आने वाले वर्षों में चिकित्सा विज्ञान को एक नई दिशा देने वाली साबित हो सकती है।

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