800 वर्ष पुराना पांड्यकालीन शिव मंदिर उडमपट्टी में खोजा गया

तमिलनाडु के मेलूर तालुक के उडमपट्टी गाँव में हाल ही में एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक खोज हुई है। यहाँ एक 800 वर्ष पुराना शिव मंदिर मिला है, जो बाद के पांड्य काल (13वीं शताब्दी) का है। यह खोज न केवल प्राचीन धार्मिक स्थापत्य का एक उदाहरण है, बल्कि उस समय की आर्थिक और सामाजिक व्यवस्थाओं का भी दस्तावेज़ बनकर उभरा है।

मंदिर की खोज कैसे हुई?

मलमपट्टी पंचायत के उडमपट्टी गाँव में बच्चे एक खुले मैदान में खेलते समय मिट्टी से ढँकी एक टूटी-फूटी पत्थर की संरचना पर ठोकर खा बैठे। स्थानीय लोगों ने तुरंत गाँव के प्रशासनिक अधिकारी (VAO) को इसकी सूचना दी। मंदिर स्थापत्य विशेषज्ञ और शिल्प शास्त्र शोधकर्ता प्रोफेसर पी. देवी अरिवु सेल्वम ने जब क्षेत्र की जांच की तो वहाँ मंदिर की नींव, खासकर उत्तरी और दक्षिणी पत्थर की आधारशिलाएँ सुरक्षित मिलीं।

मंदिर का इतिहास और पहचान

शिल्प शास्त्र और आधार पत्थरों पर खुदे तमिल लेखों के आधार पर पता चला कि यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित था और इसका नाम “तेनावनिश्वरम” था। ‘तेनावन’ पांड्य राजाओं का एक शाही शीर्षक हुआ करता था, जो इस मंदिर की शाही संबंधों की ओर इशारा करता है।

पांड्यकालीन शिलालेखों का रहस्य

पांड्यनाडु ऐतिहासिक शोध केंद्र के सचिव और पुरातत्वविद् सी. संथालिंगम ने इन तमिल अभिलेखों को पढ़ा और बताया कि यह 1217-1218 ईस्वी में माऱवर्मन सुंदर पांड्य के शासनकाल के हैं। दो शिलालेखों में एक जलाशय ‘नगनकुडी’ और उससे जुड़ी सिंचित व असिंचित भूमि की बिक्री का विवरण है।

  • बिक्रीकर्ता: कलावलिनाडु का प्रमुख, अलगापेरुमाल
  • खरीदार: नाम्बी पेरंबला कूथन उर्फ कंगैयन
  • मूल्य: 64 कासु (मुद्राएँ)
  • लाभार्थी: तेनावनिश्वरम मंदिर, जिसे भूमि से प्राप्त कर का उपयोग मंदिर के दैनिक खर्चों के लिए किया जाना था।

ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व

इन अभिलेखों से दो महत्वपूर्ण तथ्य सामने आते हैं:

  1. उडमपट्टी गाँव का प्राचीन नाम अत्तूर था।
  2. यह मंदिर आर्थिक रूप से स्वायत्त था, क्योंकि इसे कर से मिलने वाली आय से स्वयं के संचालन का प्रावधान था।

यह स्पष्ट करता है कि उस काल में मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं थे, बल्कि स्थानीय सामाजिक और आर्थिक जीवन का अभिन्न हिस्सा थे।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • पांड्य राजवंश: दक्षिण भारत का एक प्रमुख तमिल राजवंश, जो संगम काल से लेकर 16वीं शताब्दी तक सक्रिय रहा।
  • मारवर्मन सुंदर पांड्य: पांड्य साम्राज्य के सबसे प्रभावशाली शासकों में से एक, जिनका शासनकाल 13वीं शताब्दी की शुरुआत में था।
  • शिलालेख: भारत में इतिहास का प्रमुख स्रोत, जिनसे शासन, समाज, धर्म, और अर्थव्यवस्था की जानकारी मिलती है।
  • ‘कासु’: दक्षिण भारत में प्राचीन काल में प्रचलित मुद्रा का नाम।
  • शिल्प शास्त्र: प्राचीन भारतीय वास्तु और मूर्तिकला विज्ञान का ग्रंथ, जो मंदिर निर्माण की विधियों को दर्शाता है।

इस खोज ने न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर को उजागर किया है, बल्कि यह इस बात का प्रमाण भी है कि भारतीय उपमहाद्वीप में धार्मिक और आर्थिक व्यवस्थाएँ किस प्रकार एक-दूसरे से जुड़ी थीं। अब इस खोज के संरक्षण और और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है ताकि भविष्य की पीढ़ियाँ इस समृद्ध विरासत से जुड़ सकें।

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