20 मई: परमवीर चक्र विजेता शहीद पीरू सिंह शेखावत जयंती

20 मई: परमवीर चक्र विजेता शहीद पीरू सिंह शेखावत जयंती

भारत माता के वीर सपूतों में से एक, शहीद पीरू सिंह शेखावत का नाम आज भी भारतीय सेना के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। उनका जीवन और बलिदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। परमवीर चक्र से सम्मानित इस वीर योद्धा ने 1948 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अद्वितीय साहस, अनुकरणीय कर्तव्यपरायणता और अतुलनीय वीरता का प्रदर्शन करते हुए अंतिम सांस तक दुश्मनों से जंग लड़ी।

प्रारंभिक जीवन

पीरू सिंह शेखावत का जन्म 20 मई 1918 को राजस्थान के झुंझुनूं जिले के बागड़ु गांव में हुआ था। एक साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले पीरू सिंह बचपन से ही साहसी, अनुशासित और आत्मविश्वासी थे। सेना में भर्ती होने की उनकी ललक ने उन्हें 1936 में ब्रिटिश भारतीय सेना की राजपुताना राइफल्स में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया।

सैन्य जीवन और वीरता का प्रदर्शन

भारतीय स्वतंत्रता के पश्चात, जब 1947-48 में जम्मू-कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा, तब पीरू सिंह शेखावत भारतीय सेना की 6 राजपुताना राइफल्स बटालियन में कार्यरत थे। जुलाई 1948 में जब उनकी बटालियन को जम्मू-कश्मीर के तिथवाल क्षेत्र में ऊँची पहाड़ियों पर कब्जा जमाए दुश्मन को खदेड़ने का आदेश मिला, तब यह कार्य अत्यंत कठिन और प्राणघातक सिद्ध हुआ।

शत्रु द्वारा बिछाई गई मशीनगनों और मोर्टार के बीच पीरू सिंह अपनी टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए दुश्मन की एक-एक पोस्ट पर आक्रमण करते गए। भारी गोलीबारी और साथी सैनिकों की शहादत के बावजूद उन्होंने आगे बढ़ते हुए कई दुश्मनों को मार गिराया। वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे, लेकिन अपने अंतिम श्वास तक लड़ते रहे और दुश्मन की अंतिम चौकी को भी ध्वस्त कर दिया।

परमवीर चक्र सम्मान

पीरू सिंह शेखावत को उनकी अतुलनीय वीरता, अदम्य साहस और कर्तव्य के प्रति निष्ठा के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। यह भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है, जो केवल असाधारण पराक्रम और बलिदान के लिए दिया जाता है।

विरासत

शहीद पीरू सिंह का बलिदान भारतीय सेना और समस्त राष्ट्र के लिए प्रेरणास्रोत है। उनके नाम पर स्कूल, सड़कों और स्मारकों का निर्माण किया गया है ताकि आने वाली पीढ़ियां इस वीर सपूत के त्याग और शौर्य को कभी न भूलें। भारतीय सेना में उनके अद्वितीय साहस की मिसाल आज भी दी जाती है।

Originally written on May 20, 2025 and last modified on May 20, 2025.

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