हड़प्पा सभ्यता से भी 5,000 साल पहले इंसानों की मौजूदगी का प्रमाण: IIT गांधीनगर का बड़ा खुलासा

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर (IITGN) के शोधकर्ताओं ने IIT कानपुर, इंटर यूनिवर्सिटी एक्सेलेरेटर सेंटर (IUAC) दिल्ली और फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (PRL) अहमदाबाद के विशेषज्ञों के साथ मिलकर एक बड़ा पुरातात्विक रहस्य उजागर किया है। उनके शोध के अनुसार, गुजरात के कच्छ स्थित ग्रेट रन ऑफ कच्छ (Great Rann of Kutch) में इंसानों की मौजूदगी हड़प्पा सभ्यता से भी लगभग 5,000 साल पहले थी।

खडीर द्वीप के खोलों से मिली प्राचीन मानव उपस्थिति की पुष्टि

यह निष्कर्ष उन समुद्री खोलों के अवशेषों के कार्बन डेटिंग और विश्लेषण पर आधारित है, जो पहली बार 19वीं सदी के अंत में पाए गए थे। ये खोल खडीर बेयट (Khadir Beyt) में ढोलावीरा के पास बंभंका गांव के पास खोजे गए थे। 2016 में IITGN की टीम ने यहां घरों की दीवारों के अवशेष, मिट्टी के बर्तन, और रंगीन पत्थरों के टुकड़े पाए, जिनसे मानव गतिविधियों का संकेत मिला।

शोधकर्ताओं को एक खुदाई में 30–40 सेमी मोटी परत में समुद्री खोलों के अवशेष मिले, जिनमें मांस निकालने के लिए तोड़ने के चिह्न स्पष्ट थे। ये खोल मुख्यतः मैंग्रोव वातावरण में पाए जाने वाले थे, जिससे पता चलता है कि ये शिकारी-संग्रहकर्ता समुदाय समुद्र तटीय पारिस्थितिकी में अनुकूलित होकर जीवन यापन करते थे।

उपकरण, व्यापार और मौसमी प्रवास के प्रमाण

इन स्थलों से विभिन्न प्रकार के पत्थरों जैसे कि चर्ट, जैस्पर और कैल्सेडोनी से बने औजार मिले हैं, जो इस बात का संकेत हैं कि इन समुदायों ने शिकार और अन्य कार्यों के लिए पत्थर के औजारों का उपयोग किया। कुछ पत्थर तीरों की नोक के रूप में उपयोग किए जाने की संभावना भी दर्शाते हैं।

अमरापर गांव के पास पाए गए अगेट पत्थर को छोड़कर, बाकी पत्थरों की स्थानीय उपलब्धता न होने से यह संभावना व्यक्त की गई है कि उस समय इन समुदायों के बीच व्यापार भी होता था। इसके प्रमाण पाकिस्तान के कराची तट और ओमान क्षेत्र में मिले अवशेषों से भी मिलते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

    • हड़प्पा सभ्यता की प्राचीनता लगभग 2600 BCE से 1900 BCE मानी जाती है, जबकि इस शोध में मिले खोल 5500–5000 BCE पुराने हैं।
    • कच्छ में ढोलावीरा हड़प्पा काल का प्रमुख नगर था, लेकिन नए साक्ष्य उससे भी पहले के मानव बसाव की ओर इशारा करते हैं।
    • खोलों पर गर्मी के निशान और उनका एक स्थान पर 300-400 वर्षों तक जमा रहना, भोजन पकाने की संभावनाओं को दर्शाता है।
  • वर्तमान में जिन स्थानों पर मैंग्रोव नहीं पाए जाते, वहां अतीत में मैंग्रोव वनों के मौजूद रहने का प्रमाण मिला है।
  • 1872 में भूवैज्ञानिक आर्थर बीवर विन ने कच्छ में इन खोलों का उल्लेख किया था, जो अब वैज्ञानिक प्रमाणों के साथ पुष्ट हुआ है।

इस ऐतिहासिक खोज से यह स्पष्ट होता है कि कच्छ का इलाका केवल हड़प्पा सभ्यता तक सीमित नहीं था, बल्कि उससे भी हजारों वर्ष पूर्व मानव गतिविधियों से परिपूर्ण था। यह शोध भारत के प्राचीन इतिहास और मानव विकास की समझ में एक नया अध्याय जोड़ता है और आने वाले समय में और भी नए रहस्य उजागर होने की संभावना को प्रबल करता है।

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