सोशल मीडिया पर कंटेंट हटाने के लिए केंद्र की नई नीति: क्या कहता है कानून और क्यों उठ रहा है विवाद

कर्नाटक उच्च न्यायालय में केंद्र सरकार और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) के बीच कानूनी लड़ाई में गुरुवार को केंद्र ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इंटरनेट पर “एल्गोरिदमिक कंटेंट चयन” पारंपरिक मीडिया की संपादकीय प्रक्रियाओं से बिल्कुल भिन्न है, और इसलिए इसके लिए अलग ढांचे की जरूरत है। यह विवाद “सहयोग पोर्टल” के माध्यम से कंटेंट हटाने के आदेशों को लेकर है, जिसे X ने “सेंसरशिप पोर्टल” बताया है।
सहारा सुरक्षा और आईटी अधिनियम की धाराएँ
आईटी अधिनियम की धारा 79 इंटरनेट इंटरमीडियरीज़ को तब तक सुरक्षा देती है जब तक वे सरकार द्वारा चिन्हित अवैध कंटेंट को हटाते हैं। अगर वे ऐसा नहीं करते, तो उन्हें “सेफ हार्बर” (सुरक्षा कवच) से वंचित कर दिया जाता है। दूसरी ओर, धारा 69A के तहत ही सरकार को सीधे किसी कंटेंट को ब्लॉक करने का आदेश देने की शक्ति है, लेकिन यह शक्ति सीमित परिस्थितियों तक ही सीमित है, जैसे भारत की संप्रभुता, सार्वजनिक व्यवस्था या राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी जानकारी।
एल्गोरिदम बनाम संपादकीय निर्णय
केंद्र ने कोर्ट में तर्क दिया कि इंटरनेट प्लेटफॉर्म पर एल्गोरिदम के माध्यम से कंटेंट का वितरण “लाइटनिंग स्पीड” से होता है और इसमें कोई मानवीय विवेक नहीं होता। सरकार ने कहा कि पारंपरिक मीडिया में संपादक या प्रोड्यूसर निर्णय लेते थे, जिससे एक स्तर का गुणवत्ता नियंत्रण बना रहता था, परंतु सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यह प्रक्रिया स्वचालित और अपारदर्शी होती है।
इसके अलावा, सोशल मीडिया पर गुमनामता (anonymity) और नकली नामों के उपयोग से जिम्मेदारी से बचने की प्रवृत्ति बढ़ी है, जिससे चरमपंथी विचारों को बल मिलता है।
सरकार का पक्ष: व्यापक कानून की जरूरत
सरकार ने यह भी कहा कि धारा 79 के तहत केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दृष्टिकोण से मामले को नहीं देखा जा सकता, बल्कि उन लोगों की सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है जो इस कंटेंट को प्राप्त करते हैं। सरकार का कहना है कि एल्गोरिदम आधारित सिस्टम पारंपरिक मीडिया से अधिक खतरनाक हो सकते हैं, क्योंकि यह टारगेटेड कंटेंट वितरण करते हैं, जिससे समाज में अस्थिरता या हिंसा की स्थिति बन सकती है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- “सहयोग पोर्टल” का संचालन गृह मंत्रालय के तहत I4C करता है।
- मार्च 2025 तक 38 इंटरनेट कंपनियाँ इस पोर्टल से जुड़ चुकी हैं, जिनमें Google, Microsoft, Telegram, Apple और YouTube शामिल हैं।
- Meta (Facebook, Instagram, WhatsApp) ने API-आधारित इंटीग्रेशन की अनुमति दी है, लेकिन X ने पोर्टल से जुड़ने से इंकार किया है।
- धारा 69A सूचना अवरोधन के लिए है, जबकि धारा 79 केवल नोटिस भेजने की अनुमति देती है।
विवाद का मूल मुद्दा
X का तर्क है कि सरकार को धारा 79 के तहत किसी भी कंटेंट को हटाने का आदेश देने का अधिकार नहीं है — इसके लिए केवल धारा 69A ही उपयुक्त है। वहीं, सरकार चाहती है कि धारा 79 के अंतर्गत अन्य कानूनों के तहत भी कंटेंट हटाया जा सके, न कि केवल 69A में वर्णित संवैधानिक सीमाओं के तहत।
यह मामला अब केवल एक तकनीकी विवाद नहीं रह गया है, बल्कि यह इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सरकारी नियंत्रण, और सूचना प्राप्त करने के नागरिक अधिकार जैसे मूलभूत मुद्दों से जुड़ गया है। अदालत का निर्णय इस बहस की दिशा तय करेगा कि भारत में डिजिटल सेंसरशिप और जवाबदेही का भविष्य कैसा होगा।