सुप्रीम कोर्ट का झुडपी जंगल पर ऐतिहासिक फैसला: अब “वन भूमि” मानी जाएंगी, विकास और पर्यावरण में संतुलन

महाराष्ट्र के पूर्वी विदर्भ क्षेत्र में फैली लगभग 86,000 हेक्टेयर झुडपी जंगल भूमि को लेकर दशकों से चला आ रहा कानूनी विवाद अब समाप्त हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 22 मई 2025 को फैसला सुनाते हुए कहा कि ऐसी ज़मीनों को “वन भूमि” माना जाएगा और इनका कोई भी गैर-वन उपयोग केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति और न्यायालय द्वारा निर्धारित शर्तों के अधीन ही किया जा सकेगा।
झुडपी जंगल: विशेष और उपेक्षित वन भूमि
“झुडपी” शब्द मराठी में झाड़ियों या झाड़ीदार भूमि के लिए उपयोग होता है। विदर्भ के छह जिलों — नागपुर, चंद्रपुर, गढ़चिरौली, भंडारा, वर्धा और गोंदिया — में ऐसी ज़मीनें बड़ी संख्या में पाई जाती हैं। ये भूमि आमतौर पर चराई, सार्वजनिक उपयोग, स्कूल, पाइपलाइन, और कृषि कार्यों के लिए प्रयोग होती रही हैं।
1960 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में ऐसी भूमि “गैरान” या “गुर्चरान” के रूप में दर्ज की गई, जबकि विदर्भ में इसे ‘झुडपी जंगल’ के रूप में ही छोड़ दिया गया, जिससे इसकी कानूनी स्थिति लंबे समय तक अस्पष्ट रही।
फैसले की पृष्ठभूमि: वन अधिनियम से लेकर न्यायिक संघर्ष तक
- 1980 के वन (संरक्षण) अधिनियम के तहत किसी भी वन भूमि को अन्य उपयोग में लाना केंद्र की मंजूरी के बिना अवैध माना गया।
- 1987 में महाराष्ट्र सरकार ने झुडपी भूमि को “स्क्रब फॉरेस्ट” घोषित कर राजस्व विभाग को सौंप दिया, जिसे पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
- केंद्र ने 1992 में स्पष्ट किया कि झुडपी जंगल को वन भूमि ही माना जाएगा।
- 1996 में सुप्रीम कोर्ट के प्रसिद्ध ‘गोडावर्मन बनाम भारत सरकार‘ फैसले ने भी इस भूमि को वन भूमि माना।
- 2019 में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में झुडपी भूमि को वन अधिनियम से मुक्त करने की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: संतुलन और समाधान
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अगस्टीन मसीह की पीठ ने इस निर्णय में विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने पर ज़ोर दिया:
- 12 दिसंबर 1996 से पहले गैर-वन उपयोग के लिए आवंटित झुडपी भूमि को समीक्षा के बाद केंद्र की अनुमति से हटाया जा सकता है।
- 1996 के बाद के आवंटनों की जांच के बाद ही केंद्र कार्रवाई करेगा, और यदि नियमों का उल्लंघन पाया गया तो संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई होगी।
- 1980 के बाद किए गए अतिक्रमण दो वर्षों के भीतर हटाए जाएँगे।
- 1989 के बाद के व्यावसायिक आवंटन अतिक्रमण माने जाएंगे।
- राजस्व विभाग को शेष झुडपी भूमि एक वर्ष में वन विभाग को सौंपनी होगी, जिसका उपयोग प्रतिपूरक वनीकरण के लिए होगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- झुडपी जंगल भूमि महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में पाई जाने वाली विशिष्ट झाड़ीदार भूमि है।
- 1980 के वन (संरक्षण) अधिनियम के तहत बिना मंजूरी वन भूमि का उपयोग गैरकानूनी है।
- 1996 में ‘गोडावर्मन मामला’ वन संरक्षण कानून के दायरे में अधिक भूमि को लाने वाला ऐतिहासिक निर्णय था।
- सुप्रीम कोर्ट के नए निर्णय से कुछ भूमि विकास के लिए उपयोग में लाई जा सकेगी लेकिन कड़ी शर्तों और केंद्रीय अनुमति के साथ।
फैसले के अनुसार, झुडपी भूमि का गैर-वन उपयोग केवल सरकार द्वारा और सार्वजनिक हित में ही किया जा सकेगा।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे विदर्भ के विकास कार्यों के लिए “नई राह खोलने वाला” बताया है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कैसे राज्य सरकार इस निर्णय का संतुलित और सतत विकास के लिए उपयोग करती है।