संघर्ष से जूझते क्षेत्रों में गरीबी, भुखमरी और कम जीवन प्रत्याशा: विश्व बैंक रिपोर्ट

विश्व बैंक द्वारा 27 जून 2025 को जारी रिपोर्ट “Fragile and Conflict-Affected Situations: Intertwined Crises, Multiple Vulnerabilities” में बताया गया है कि जिन क्षेत्रों में लंबे समय से संघर्ष और अस्थिरता बनी हुई है, वहाँ रहने वाले लोगों को केवल हिंसा ही नहीं, बल्कि जीवनभर के लिए गरीबी, भुखमरी और स्वास्थ्य संकट जैसी गंभीर सज़ाओं का सामना करना पड़ता है।
चरम गरीबी से जूझते अरब लोग
- रिपोर्ट के अनुसार, करीब एक अरब लोग 39 संघर्षग्रस्त देशों में रहते हैं जहाँ पिछले 15 वर्षों में भी उनकी गरीबी में कोई राहत नहीं आई है।
- जहाँ सामान्य विकासशील देशों में चरम गरीबी दर 6% तक सीमित हो गई है, वहीं संघर्षग्रस्त देशों में यह दर लगभग 40% है।
संघर्ष के सामाजिक और आर्थिक दुष्परिणाम
- इन देशों में मातृ और शिशु मृत्यु दर, भुखमरी, और न्यूनतम जीवन प्रत्याशा जैसे सूचकांक अत्यंत चिंताजनक हैं।
- भोजन की असुरक्षा इन देशों में 18 गुना अधिक है जबकि औसत जीवन प्रत्याशा केवल 64 वर्ष है, जो अन्य विकासशील देशों से सात वर्ष कम है।
- एक उच्च तीव्रता वाले संघर्ष (जहाँ प्रति 10 लाख लोगों पर 150 से अधिक लोग मारे जाएं) के पांच वर्षों बाद इन देशों की प्रति व्यक्ति GDP 20% तक गिर जाती है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- FCS (Fragile and Conflict-affected Situations): वर्ल्ड बैंक द्वारा वर्गीकृत ऐसे देश जो लंबे समय से संघर्ष और अस्थिरता का सामना कर रहे हैं।
- 2030 का अनुमान: दुनिया के 60% चरम गरीब इन्हीं संघर्षग्रस्त देशों में रहेंगे।
- भोजन असुरक्षा: संघर्षग्रस्त देशों में 200 मिलियन लोग तीव्र भुखमरी का सामना कर रहे हैं।
- अधिकांश FCS देश अफ्रीका महाद्वीप में स्थित हैं; विश्व बैंक के अनुसार 70% से अधिक पीड़ित अफ्रीकी हैं।
वैश्विक ध्यान की कमी और दीर्घकालिक संकट
विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इंदरमीत गिल के अनुसार, भले ही वैश्विक मीडिया का ध्यान यूक्रेन और पश्चिम एशिया पर हो, परंतु सबसे अधिक संघर्ष और अस्थिरता से जूझने वाले लोग अफ्रीका में रहते हैं। उन्होंने चेताया कि यदि इन समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो ये संकट दीर्घकालिक और संक्रामक बन सकते हैं।
निष्कर्ष
रिपोर्ट स्पष्ट रूप से दिखाती है कि संघर्ष और अस्थिरता केवल राजनीतिक समस्या नहीं, बल्कि एक मानवीय, सामाजिक और आर्थिक आपदा है। जब तक अंतरराष्ट्रीय समुदाय इन संकटग्रस्त क्षेत्रों में स्थायी शांति, पोषण सुरक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए संगठित प्रयास नहीं करता, तब तक वैश्विक विकास लक्ष्यों की प्राप्ति अधूरी ही रहेगी।