शहरी ध्वनि प्रदूषण: अदृश्य संकट, मौन संविधानिक चुनौती

तेजी से बढ़ते शहरीकरण के बीच, ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) एक ऐसे संकट के रूप में उभरा है जिसे भारत में अक्सर अनदेखा किया जाता है। अस्पतालों, स्कूलों और रिहायशी इलाकों जैसे “साइलेंस ज़ोन” में भी शोर का स्तर खतरनाक सीमाओं को पार कर चुका है, जिससे न केवल जन स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है बल्कि संविधान प्रदत्त गरिमा और जीवन के अधिकार पर भी प्रश्नचिह्न लग रहा है।

CPCB और NANMN की भूमिका

2011 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने राष्ट्रीय परिवेशीय ध्वनि निगरानी नेटवर्क (NANMN) शुरू किया था, ताकि शहरी ध्वनि पर वास्तविक समय में निगरानी रखी जा सके। लेकिन आज यह प्रणाली सुधार का उपकरण कम और निष्क्रिय डेटा संग्रह केंद्र अधिक बन चुकी है:

  • सेंसरों की ऊँचाई 25–30 फीट होती है, जो CPCB की 2015 की गाइडलाइंस का उल्लंघन है।
  • डेटा असंगठित है और प्रभावी प्रवर्तन (enforcement) नदारद है।

वैश्विक तुलना और भारत की स्थिति

  • यूरोप में, शोर से होने वाली बीमारियाँ और मृत्यु दर नीति निर्माण में एक सक्रिय भूमिका निभाती हैं। EU की एक रिपोर्ट के अनुसार, ध्वनि प्रदूषण की वार्षिक लागत €100 बिलियन है।
  • भारत में, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अलग-थलग काम करते हैं, RTI तक का जवाब नहीं मिलता और यूपी जैसे राज्यों में ताजा डेटा सार्वजनिक नहीं होता।

संवैधानिक और कानूनी पहलू

  • अनुच्छेद 21: गरिमा के साथ जीवन का अधिकार, जिसमें मानसिक और पर्यावरणीय शांति भी शामिल है।
  • अनुच्छेद 48A: राज्य को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रोत्साहित करता है।
  • Noise Pollution (Regulation and Control) Rules, 2000: कानूनी रूपरेखा मजबूत है लेकिन अमल में सुस्ती है।
  • WHO मानकों के अनुसार:

    • दिन में अधिकतम: 50 dB(A)
    • रात में अधिकतम: 40 dB(A)
    • लेकिन दिल्ली और बेंगलुरु में 65-70 dB(A) तक रिकॉर्ड किया गया है।

स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी पर प्रभाव

  • मानसिक तनाव, नींद की गुणवत्ता में गिरावट, हृदय रोग, और बच्चों व वृद्धों पर विशेष प्रभाव
  • 2025 के अध्ययन (University of Auckland): शहरी शोर ने सिर्फ एक रात में मैना पक्षियों के गाने और नींद के पैटर्न को बाधित किया।
  • यह केवल पक्षियों का मामला नहीं, बल्कि शहरी जैव विविधता के क्षरण का संकेत है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • Noise Pollution (V), In Re: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक मामला (2005), जिसे 2024 में फिर से संदर्भित किया गया।
  • NANMN: भारत का राष्ट्रीय ध्वनि निगरानी नेटवर्क, 2011 में शुरू हुआ।
  • ध्वनि प्रदूषण के नियम: 2000 में अधिसूचित, लेकिन अमल कमजोर।
  • यूएनईपी रिपोर्ट: ध्वनि प्रदूषण को वैश्विक पर्यावरण संकटों में शामिल किया गया है।

समाधान की दिशा: ध्वनि-संवेदनशीलता की संस्कृति

  • स्थानीय निकायों को डेटा और कार्यवाई की जिम्मेदारी दी जाए
  • सजा और प्रवर्तन को निगरानी से जोड़ा जाए
  • नो हॉन्किंग डे” जैसी पहलें केवल प्रतीकात्मक न रहकर व्यवहार परिवर्तन अभियान बनें।
  • शहरों की योजना acoustic resilience के साथ बनाई जाए — ताकि ध्वनि की शांति प्राकृतिक हो, थोपी न जाए।

भारत यदि ध्वनि प्रदूषण को अधिकार-आधारित दृष्टिकोण से नहीं देखता, तो स्मार्ट शहरों का सपना “शोरगुल में खोया हुआ” रह जाएगा। शांति कोई विलासिता नहीं, यह जीवन की मूलभूत आवश्यकता है — और संविधानिक दायित्व भी।

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