वैश्विक सैन्य खर्च का बढ़ता बोझ: क्या विकास की कीमत पर हो रहा सैन्यीकरण?

हाल ही में NATO शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों द्वारा अपने सैन्य खर्च को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 5% तक बढ़ाने का संकल्प लिया गया। यह लक्ष्य 2035 तक की समयसीमा में “मुख्य रक्षा आवश्यकताओं” को ध्यान में रखते हुए रखा गया है। पहले यह सीमा केवल 2% थी। इस निर्णय ने वैश्विक सैन्य खर्च के बढ़ते रुझान की ओर ध्यान आकर्षित किया है, जो अब कई सार्वजनिक कल्याणकारी योजनाओं को पीछे छोड़ता प्रतीत होता है।

सैन्य खर्च का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, 2024 में वैश्विक सैन्य खर्च $2.7 ट्रिलियन (करीब ₹2,25,00,000 करोड़) रहा, जो 9.4% की वार्षिक वृद्धि दर्शाता है — 1988 के बाद सबसे अधिक। इस बढ़ोतरी के पीछे रूस-यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-गाजा संघर्ष, और अब भारत-पाकिस्तान तथा इज़राइल-ईरान युद्ध की भूमिका है।
कोल्ड वॉर के दौरान 1960 में सैन्य खर्च वैश्विक GDP का 6.1% था, जबकि 1998 में यह घटकर 2.1% रह गया। 2024 में यह आंकड़ा फिर बढ़कर 2.5% पर पहुंच गया।

कौन हैं प्रमुख सैन्य खर्चकर्ता?

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: $997 अरब
  • चीन: $314 अरब
  • रूस: $149 अरब
  • जर्मनी: $88.5 अरब
  • भारत: $86.1 अरब

शीर्ष 15 देश मिलकर वैश्विक सैन्य खर्च का लगभग 80% हिस्सा खर्च करते हैं। NATO के 32 सदस्य देश $1.5 ट्रिलियन खर्च करते हैं — जो कुल का 55% है।
GDP के अनुपात में देखें तो सऊदी अरब (7.3%), पोलैंड (4.2%) और अमेरिका (3.4%) शीर्ष पर हैं।

विकासशील देशों पर प्रभाव

अध्ययन बताते हैं कि बढ़ते सैन्य खर्च का सीधा असर स्वास्थ्य जैसे सार्वजनिक क्षेत्रों के बजट पर पड़ता है, विशेषकर मध्य और निम्न आय वाले देशों में। उदाहरण के तौर पर, स्पेन ने केवल 1.24% रक्षा खर्च के बावजूद NATO के 5% लक्ष्य को “अवास्तविक” बताते हुए अस्वीकार कर दिया।

संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक आवश्यकताएँ

UN का वार्षिक बजट केवल $44 अरब है — जो सैन्य खर्च की तुलना में नगण्य है। 2024 में UN केवल $6 अरब ही जुटा पाया, जिससे उसे बजट घटाकर $29 अरब करना पड़ा। दूसरी ओर, इज़राइल-ईरान युद्ध में अमेरिका ने मात्र 12 दिनों में $1 अरब मिसाइल इंटरसेप्टर पर खर्च कर दिया।
USAID की सहायता से 20 वर्षों में 91 मिलियन लोगों की जान बची थी। इसके बंद होने से 2030 तक 14 मिलियन अतिरिक्त मौतें हो सकती हैं — जिनमें एक तिहाई बच्चे होंगे।

जलवायु परिवर्तन और SDG पर असर

NATO यदि 3.5% GDP तक सैन्य खर्च करता है तो 200 मिलियन टन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ सकता है। जब 2024 अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है, ऐसे में यह चिंताजनक है।
वहीं, चरम गरीबी समाप्त करने के लिए $70 अरब और पूर्ण वित्तीय गरीबी मिटाने के लिए $325 अरब प्रति वर्ष चाहिए — यह उच्च आय वाले देशों की कुल आय का मात्र 0.6% है।

भारत पर प्रभाव

भारत का वार्षिक रक्षा बजट ₹6.81 लाख करोड़ है, जिसमें ऑपरेशन सिंदूर के बाद ₹50,000 करोड़ और जोड़े गए। जबकि आयुष्मान भारत जैसे स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम के लिए केवल ₹7,200 करोड़ का आवंटन हुआ। भारत की स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च GDP का मात्र 1.84% है, जो 2.5% लक्ष्य से भी कम है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • NATO की स्थापना 1949 में हुई थी; वर्तमान में इसके 32 सदस्य हैं।
  • SIPRI (स्थापना: 1966, स्वीडन) सैन्य खर्च और शांति विषयों पर प्रमुख शोध संस्थान है।
  • USAID की स्थापना 1961 में हुई थी, जो अमेरिकी सरकार की वैश्विक विकास एजेंसी रही है।
  • भारत की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 का लक्ष्य है स्वास्थ्य पर 2.5% GDP खर्च।

दुनिया की बढ़ती सैन्यीकरण प्रवृत्ति, भले ही किसी रणनीतिक जरूरत से प्रेरित हो, परंतु इसका सीधा प्रभाव मानव कल्याण, जलवायु, और सतत विकास लक्ष्यों पर पड़ता है। केवल युद्ध का न होना ही शांति नहीं है — बल्कि जीवन के लिए आवश्यक संसाधनों की उपस्थिति और न्यायसंगत वितरण ही स्थायी शांति का आधार है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *