विकलांग व्यक्तियों के लिए न्याय प्रणाली में पहुंच: भारत की न्याय प्रणाली में गहराई से छिपी असमानताएँ उजागर

विकलांग व्यक्तियों के लिए न्याय प्रणाली में पहुंच: भारत की न्याय प्रणाली में गहराई से छिपी असमानताएँ उजागर

भारत में विकलांग व्यक्तियों को न्याय प्रणाली तक समुचित पहुंच प्राप्त नहीं है — यह एक सच्चाई है जिसे हाल ही में पक्ता (Pacta) नामक बेंगलुरु स्थित थिंक टैंक की शोध रिपोर्ट “Access to Justice for Persons with Disabilities in India: A Data Informed Report” ने उजागर किया है। यह रिपोर्ट भारत में पहली बार विकलांग व्यक्तियों की न्याय प्रणाली तक पहुंच को व्यापक डेटा के माध्यम से समझने का प्रयास करती है, और इसके निष्कर्ष चिंताजनक हैं।

डेटा की अनुपस्थिति और संस्थागत विफलता

रिपोर्ट का मुख्य निष्कर्ष यह है कि भारत की पुलिस, जेल, न्यायपालिका और विधिक सहायता प्रणाली में विकलांग व्यक्तियों से जुड़ा महत्वपूर्ण डेटा या तो अनुपस्थित है या असंगत, जिससे उत्तरदायित्व और सुधार मुश्किल हो जाते हैं। भूतपूर्व भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा कि “डेटा-आधारित रिपोर्ट केवल नैतिक अपील से परे जाकर सटीक नीति निर्माण, अनुपालन की निगरानी और संस्थागत जवाबदेही सुनिश्चित करने में सहायक होती हैं।”
उन्होंने ‘कर्ब कट प्रभाव’ (Curb Cut Effect) का उदाहरण देते हुए बताया कि विकलांगों के लिए बनाए गए सुविधाजनक ढांचे जैसे कि फुटपाथ पर बनाए गए रैंप, अन्य उपयोगकर्ताओं जैसे माता-पिता, यात्रियों आदि को भी लाभ पहुंचाते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि समावेशी संस्थान सभी के लिए उपयोगी होते हैं।

संरचनात्मक और व्यवहारगत अवरोध

रिपोर्ट यह भी बताती है कि न्याय प्रणाली के अधिकांश संस्थान जैसे पुलिस थाने, अदालतें और जेल आज भी न तो शारीरिक रूप से सुलभ हैं और न ही डिजिटल रूप से, बल्कि कई बार विकलांग व्यक्तियों के लिए प्रतिकूल भी हैं। पक्ता की संस्थापक निवेदिता कृष्णा के अनुसार, “भारत में 2.6 करोड़ से अधिक विकलांग व्यक्ति आज भी न्याय प्रणाली से बाहर हैं।”
उनके अनुसार, इस असमानता को दूर करने के लिए कई उपायों की आवश्यकता है:

  • संरचनात्मक और डिजिटल पहुँच सुनिश्चित करना
  • भेदभावपूर्ण व्यवहार और दृष्टिकोण को बदलना
  • आरक्षण नीतियों का प्रभावी क्रियान्वयन
  • समावेशी डेटा संग्रह

रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें

  • विकलांगता-विश्लेषित डेटा संग्रह: न्याय प्रणाली के सभी चार स्तंभों में अनिवार्य रूप से डेटा एकत्र करना।
  • सार्वजनिक पहुँच ऑडिट: अदालतों, पुलिस थानों, और जेलों में भौतिक और डिजिटल पहुँच का नियमित मूल्यांकन।
  • प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में समावेशन: पुलिस, न्यायपालिका और विधिक सहायता कर्मियों के प्रशिक्षण में विकलांग अधिकारों का एकीकरण।
  • न्यायिक नियुक्तियों में समावेश: कोलेजियम प्रणाली को न्यायिक पदों पर विकलांगों की नियुक्ति के लिए समावेशी दृष्टिकोण अपनाना।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत में विकलांग व्यक्तियों की संख्या 2.6 करोड़ से अधिक है (जनगणना 2011 के अनुसार)।
  • भारत के ‘दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016’ के अंतर्गत न्याय तक पहुंच को मौलिक अधिकार माना गया है।
  • ‘कर्ब कट प्रभाव’ का सिद्धांत यह दर्शाता है कि समावेशी डिज़ाइन सभी के लिए उपयोगी होती है, न कि केवल लक्षित समूह के लिए।
  • रिपोर्ट की प्रस्तावना भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने लिखी है।

इस रिपोर्ट ने भारतीय न्याय प्रणाली की उस परत को उजागर किया है जिसे अक्सर अनदेखा किया जाता है। यदि भारत को सच में समावेशी लोकतंत्र बनना है, तो विकलांग व्यक्तियों को न्याय प्रणाली में न केवल लाभार्थी बल्कि भागीदार के रूप में भी स्थान देना होगा। इसके लिए नीतिगत, संरचनात्मक और दृष्टिकोण से परिवर्तन की सख्त आवश्यकता है।

Originally written on July 8, 2025 and last modified on July 8, 2025.

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