वक्फ एक्ट के खिलाफ बिहार में उबाल: क्यों हो रहे हैं विरोध और क्या हैं मुद्दे?

वक्फ अधिनियम में हालिया संशोधनों को लेकर बिहार में विरोध प्रदर्शन तेज़ हो गए हैं। 29 जून को पटना के गांधी मैदान में ‘वक्फ बचाओ, दस्तूर बचाओ’ रैली के माध्यम से इमारत-ए-शरिया ने केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध जताया। यह रैली केवल एक राज्य तक सीमित न रहकर अब राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित कर रही है।
इमारत-ए-शरिया की भूमिका और मांगें
इमारत-ए-शरिया भारत के प्रमुख मुस्लिम सामाजिक-धार्मिक संगठनों में से एक है, जिसका संचालन बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में होता है। इसके प्रमुख फैसल रहमानी ने वक्फ अधिनियम, 1995 को पुनः लागू करने की मांग करते हुए कहा कि जैसे सरकार ने किसानों के विरोध के बाद कृषि कानून वापस लिए, वैसे ही भारी जनविरोध के चलते वक्फ संशोधन को भी रद्द किया जा सकता है।
उनका मुख्य तर्क है कि पुराने वक्फ संपत्तियों के लिए दस्तावेज़ जुटाना कठिन है, और यह पूछना अनुचित है कि क्या अन्य धर्मस्थलों के लिए भी ऐसे प्रमाण मांगे जाएंगे। उन्होंने संशोधनों को “भाईचारे और नागरिक अधिकारों पर हमला” बताया।
बिहार विरोध का केंद्र क्यों बना?
बिहार में मुस्लिम आबादी 17% से अधिक है, जो आमतौर पर आरजेडी और कांग्रेस की पारंपरिक वोटबैंक मानी जाती है। विधानसभा चुनाव निकट हैं और विपक्षी दल इन विरोधों को जनसमर्थन में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। इमारत-ए-शरिया का बिहार में ऐतिहासिक प्रभाव रहा है, विशेषकर पूर्व प्रमुख वली रहमानी के नेतृत्व में।
गांधी मैदान रैली में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव मुख्य वक्ता रहे और इसे अप्रत्यक्ष रूप से विपक्षी दलों का समर्थन भी मिला।
वक्फ संशोधनों पर आपत्ति क्यों?
- ‘यूज़ वक्फ’ की अवधारणा समाप्त: पारंपरिक रूप से उपयोग में लाई गई वक्फ संपत्तियों को अब वक्फ मान्यता नहीं मिलेगी यदि वे पंजीकृत नहीं हैं।
- गैर-मुस्लिम सदस्यों की वक्फ बोर्ड में नियुक्ति: मुस्लिम संस्थाओं के संचालन में अन्य धर्मों के प्रतिनिधियों की भागीदारी पर आपत्ति जताई गई है।
- जिलाधिकारी को अधिकार: जिला कलेक्टर को यह तय करने का अधिकार दिया गया है कि कोई वक्फ संपत्ति सरकारी है या नहीं।
- लिमिटेशन एक्ट लागू करना: वक्फ संपत्तियों पर सीमित समय के बाद दावा करने का अधिकार समाप्त हो सकता है, जिससे अतिक्रमण पर रोकथाम मुश्किल होगी।
इन परिवर्तनों पर देशभर में कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं, और मई 2025 में कोर्ट ने सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- वक्फ अधिनियम, 1995 मुस्लिम धर्मार्थ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए लागू किया गया था।
- इमारत-ए-शरिया 20वीं सदी की शुरुआत में स्थापित एक प्रमुख इस्लामिक संस्था है।
- ‘रहमानी 30’ कोचिंग कार्यक्रम की शुरुआत 2008 में वली रहमानी ने की थी।
- लिमिटेशन एक्ट, 1963 के तहत संपत्ति पर दावा करने की समय-सीमा निर्धारित होती है।
वक्फ एक्ट के संशोधनों को लेकर उठी आपत्तियाँ केवल कानून की व्याख्या तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक संदर्भों से भी जुड़ी हुई हैं। बिहार में शुरू हुआ यह आंदोलन संभवतः अन्य राज्यों में भी फैल सकता है और केंद्र सरकार के लिए एक नया राजनीतिक मोर्चा बन सकता है। जब तक इन संशोधनों में सभी वर्गों की चिंताओं को समुचित स्थान नहीं मिलेगा, तब तक यह विवाद शांत होता नहीं दिखता।