रूस द्वारा तालिबान सरकार को मान्यता: वैश्विक राजनीति में ऐतिहासिक मोड़

3 जुलाई 2025 को रूस ने अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को आधिकारिक मान्यता देकर इतिहास रच दिया। यह 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद किसी भी देश द्वारा किया गया पहला औपचारिक समर्थन है। इस निर्णय ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ ला दिया है और वैश्विक कूटनीति में नई बहस छेड़ दी है।

रूस का आधिकारिक निर्णय

रूसी विदेश मंत्रालय ने तालिबान के नियुक्त राजदूत गुल हसन हसन के आधिकारिक पत्रों को स्वीकार कर तालिबान को मान्यता दी। साथ ही रूस ने तालिबान को अपनी आउटलॉड संगठनों की सूची से भी हटा दिया है। रूस ने कहा कि यह निर्णय द्विपक्षीय सहयोग को उत्पादक रूप से आगे बढ़ाने के लिए लिया गया है।

अफगानिस्तान की प्रतिक्रिया

तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने रूस के इस फैसले को “ऐतिहासिक” और “दूसरे देशों के लिए उदाहरण” बताया। उन्होंने कहा कि यह एक “नई सकारात्मक साझेदारी और परस्पर सम्मान” का चरण है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • तालिबान: एक सुन्नी इस्लामी कट्टरपंथी समूह जिसने 1996-2001 और फिर 2021 से अब तक अफगानिस्तान पर शासन किया है।
  • पहली मान्यता (1996-2001): केवल पाकिस्तान, सऊदी अरब और यूएई ने तालिबान सरकार को उस दौर में मान्यता दी थी।
  • OPCW और संयुक्त राष्ट्र: तालिबान शासन के कई नेताओं पर अब भी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लागू हैं।
  • रूस-अफगान संबंध: रूस ने 1979-1989 के बीच अफगानिस्तान में सैन्य हस्तक्षेप किया था; आज वही देश तालिबान को साझेदार बता रहा है।

रूस की रणनीतिक दृष्टिकोण

रूस तालिबान के साथ व्यापार, ऊर्जा, परिवहन, कृषि और बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में सहयोग चाहता है। साथ ही रूस अफगानिस्तान को दक्षिण एशिया तक गैस ट्रांजिट हब के रूप में विकसित करना चाहता है। यह मान्यता तालिबान को क्षेत्रीय सुरक्षा और आतंकवाद-निरोधक सहयोग के लिए भी मदद करेगी।

महिला अधिकारों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया

रूस के इस कदम की अफगान महिला कार्यकर्ताओं और पूर्व सांसदों ने कड़ी आलोचना की है। उनके अनुसार यह एक ऐसे शासन को वैधता देता है जो महिलाओं की शिक्षा और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी पर रोक लगाता है। पूर्व सांसद फौजिया कूफी ने कहा कि यह “दंडमुक्ति को वैधता देने” जैसा है और इससे वैश्विक सुरक्षा को भी खतरा हो सकता है।

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

चीन और पाकिस्तान जैसे देश पहले ही तालिबान राजदूतों को स्वीकार कर चुके हैं, लेकिन उन्होंने अभी तक आधिकारिक मान्यता नहीं दी है। पश्चिमी देशों ने अब तक महिला अधिकारों और मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है।
रूस का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि राजनयिक मान्यता में रणनीतिक हित मानवाधिकारों से ऊपर रखे जा सकते हैं। अब यह देखना शेष है कि क्या अन्य देश भी रूस के पदचिह्नों पर चलते हुए तालिबान को औपचारिक मान्यता देंगे, या इस निर्णय से वैश्विक मंच पर रूस और तालिबान दोनों को अलगाव का सामना करना पड़ेगा।

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