राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषदों को परियोजना आधारित सहायता की सिफारिश: नीति आयोग की रिपोर्ट

नीति आयोग ने हाल ही में एक रिपोर्ट ‘राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषदों को मजबूत करने का रोडमैप’ जारी की है, जिसमें केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) से यह सिफारिश की गई है कि वह अब तक दी जा रही ‘कोर ग्रांट सहायता’ को समाप्त कर केवल ‘परियोजना आधारित सहायता’ दे। यह सुझाव देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में राज्यों की भूमिका को दोबारा परिभाषित करने के लिए दिया गया है।

राज्य परिषदों की वर्तमान भूमिका और वित्त पोषण की स्थिति

राज्य विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषदें 1970 के दशक से राज्यों को उनके सामाजिक-आर्थिक संदर्भ में अनुसंधान और विज्ञान संबंधी निर्णय लेने के लिए विकेंद्रीकरण का माध्यम रही हैं। ये परिषदें विज्ञान लोकप्रियकरण, अनुसंधान, पेटेंट आवेदन और वैज्ञानिक नीतिगत समर्थन जैसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं। हालांकि इन परिषदों को मिलने वाली केंद्रीय सहायता पहले से ही बहुत सीमित रही है। उदाहरणस्वरूप, गुजरात की ₹300 करोड़ की वार्षिक विज्ञान परिषद बजट में DST का योगदान मात्र ₹1.07 करोड़ रहा, जबकि केरल की ₹150 करोड़ की परिषद को कोई भी केंद्रीय सहायता प्राप्त नहीं हुई।

नीति आयोग की चिंताएं और अनुशंसाएँ

नीति आयोग ने यह भी उल्लेख किया कि हाल के वर्षों में वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार मुख्यतः केंद्र द्वारा वित्तपोषित संस्थानों से हो रहा है, जबकि राज्य संचालित संस्थानों का योगदान सीमित है। इस स्थिति को बदलने के लिए आयोग ने सिफारिश की है कि राज्य परिषदें केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों, एजेंसियों और सार्वजनिक उपक्रमों के साथ तालमेल बनाकर परियोजना आधारित अनुदानों को आकर्षित करें।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कोर ग्रांट पर अत्यधिक निर्भरता और केंद्रीय परियोजना अनुदानों को आकर्षित करने के प्रयासों की कमी अधिकांश राज्य परिषदों की प्रमुख कमजोरी रही है। इसके समाधान के लिए बेहतर शासन ढांचा, औद्योगिक इकाइयों से तालमेल, और राज्य वित्तपोषित विश्वविद्यालयों को प्राथमिकता देने की बात कही गई है।

बजट विश्लेषण और क्षेत्रीय असंतुलन

2023-24 और 2024-25 के बजट विश्लेषण में कुल 17.65% वृद्धि दर्शायी गई, जो वैज्ञानिक अनुसंधान में राज्यों की बढ़ती रुचि को दर्शाती है। हालांकि कुछ राज्यों जैसे केरल (₹173.34 करोड़), उत्तर प्रदेश (₹140 करोड़) और हरियाणा (₹130 करोड़) ने अपने बजट में वृद्धि की, वहीं सिक्किम, तमिलनाडु और उत्तराखंड जैसे राज्यों में कटौती देखी गई, जिससे उनके ongoing प्रोजेक्ट प्रभावित हो सकते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • स्थापना की पृष्ठभूमि: राज्य विज्ञान परिषदों की स्थापना 1970 के दशक में वैज्ञानिक शासन के विकेंद्रीकरण हेतु की गई थी।
  • कोर ग्रांट बनाम परियोजना सहायता: कोर ग्रांट नियमित अनुदान होती है, जबकि परियोजना आधारित सहायता विशिष्ट अनुसंधान या कार्यक्रमों के लिए दी जाती है।
  • DST का योगदान: विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) केंद्र से सीमित वित्तीय सहयोग देता है, अधिकांश व्यय राज्य सरकारें स्वयं वहन करती हैं।
  • राज्य विश्वविद्यालयों की भूमिका: नीति आयोग ने केंद्रीय संस्थानों के बजाय राज्य विश्वविद्यालयों में अनुसंधान को प्रोत्साहित करने की सिफारिश की है।

नीति आयोग की यह रिपोर्ट भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के भविष्य की दिशा तय करने में सहायक सिद्ध हो सकती है। यदि राज्यों की विज्ञान परिषदें बेहतर शासन, उद्योगों से सहयोग और परियोजना आधारित वित्तपोषण को अपनाती हैं, तो देश के सभी क्षेत्रों में वैज्ञानिक नवाचार को गति मिल सकती है। इससे भारत की समग्र वैज्ञानिक उत्पादकता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भागीदारी भी सशक्त होगी।

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