म्यूकोरमायकोसिस से उबरे मरीजों की जंग अभी बाकी: ICMR अध्ययन में खुलासा

कोविड-19 महामारी के दौरान तेज़ी से सामने आए ‘ब्लैक फंगस’ या म्यूकोरमायकोसिस के मामलों ने पूरे भारत में चिंता बढ़ा दी थी। अब इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के एक नए अध्ययन में यह सामने आया है कि संक्रमण से बचे मरीजों को दीर्घकालिक शारीरिक, मानसिक और सामाजिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यह अध्ययन ‘Clinical Microbiology and Infection’ पत्रिका में जून 2025 में प्रकाशित हुआ।

म्यूकोरमायकोसिस के खतरनाक प्रभाव

अध्ययन में शामिल 686 अस्पताल में भर्ती मरीजों में से 14.7 प्रतिशत की मृत्यु एक वर्ष के भीतर हो गई, जिनमें से अधिकांश की मौत शुरुआती उपचार के दौरान हुई। जिन मरीजों के मस्तिष्क या आंखें संक्रमित हुई थीं, जिन्हें आईसीयू में भर्ती किया गया था, जिन्हें शुगर नियंत्रण में दिक्कत थी, या जिन्हें अन्य गंभीर बीमारियाँ थीं — उनकी मृत्यु की आशंका सबसे अधिक थी।
वहीं, जिन मरीजों को सर्जिकल उपचार के साथ एम्फोटेरिसिन-बी और पॉसाकोनाजोल जैसी दवाओं का संयोजन मिला, उनकी जीवित रहने की संभावना अधिक रही।

संक्रमण से बचने के बाद की कठिनाइयाँ

ICMR के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के डॉ. रिज़वान सुलियनकटची के अनुसार, सर्वाइवरों को जीवनभर के लिए शारीरिक विकृति, भाषण कठिनाई, मानसिक तनाव, और रोज़गार छूटने जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। अध्ययन में शामिल 70% से अधिक मरीजों ने कम से कम एक शारीरिक या मानसिक जटिलता की सूचना दी।
डॉ. रिज़वान ने कहा, “यह केवल चिकित्सा आंकड़ों की कहानी नहीं है, बल्कि उन हजारों लोगों की कहानी है जो दर्द, विकलांगता और सामाजिक बहिष्कार से पीड़ित हैं। अब समय है कि हम सिर्फ जीवन बचाने वाली चिकित्सा से आगे बढ़ें और पुनर्वास और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को भी प्राथमिकता दें।”

भारत में म्यूकोरमायकोसिस का असमान बोझ

अध्ययन के अनुसार, विकसित देशों में म्यूकोरमायकोसिस की दर प्रति मिलियन जनसंख्या पर 0.01 से 2 मामलों की है, जबकि भारत में यह संख्या लगभग 140 मामलों तक पहुंच जाती है — जो वैश्विक औसत से 80 गुना अधिक है।
कोविड-19 से ग्रस्त 549 मरीजों (686 में से 80%) को म्यूकोरमायकोसिस भी हुआ, जो इस बीमारी की कोविड से जुड़ी जटिलताओं को दर्शाता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • म्यूकोरमायकोसिस को ‘ब्लैक फंगस’ भी कहा जाता है; यह एक दुर्लभ लेकिन गंभीर फंगल संक्रमण है।
  • भारत में इसका प्रकोप कोविड-19 के दौरान सबसे अधिक देखा गया।
  • एम्फोटेरिसिन-बी और पॉसाकोनाजोल नामक एंटीफंगल दवाएं इलाज में कारगर पाई गईं।
  • भारत में इस बीमारी की दर विकसित देशों की तुलना में 80 गुना अधिक है।

यह अध्ययन स्वास्थ्य प्रणाली की स्थिरता और दीर्घकालिक देखभाल की आवश्यकता की ओर एक गंभीर संकेत है। केवल जीवन बचाने के बजाय, जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने की ओर भी ध्यान देना अब अनिवार्य हो गया है। म्यूकोरमायकोसिस जैसी उपेक्षित बीमारियों से निपटने के लिए एक समर्पित और करुणामय सार्वजनिक स्वास्थ्य दृष्टिकोण समय की मांग है।

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