मुफ्त लैपटॉप योजना: डिजिटल समानता की ओर एक कदम

भारत के कई राज्यों द्वारा चलाई जा रही मुफ्त लैपटॉप योजनाएं अब केवल तकनीकी उपकरणों के वितरण तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि यह सामाजिक न्याय, शिक्षा की पहुँच और डिजिटल साक्षरता के बड़े उद्देश्यों की पूर्ति का माध्यम बन गई हैं। हाल ही में दिल्ली सरकार द्वारा घोषित “मुख्यमंत्री डिजिटल शिक्षा योजना” इसके ताजातरीन उदाहरणों में से एक है। इस योजना के तहत वर्ष 2025-26 के बजट में 1200 उच्च प्रदर्शन वाले i7 लैपटॉप उन छात्रों को मुफ्त में दिए जाएंगे जिन्होंने कक्षा 10 में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। योजना का उद्देश्य छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित करना और डिजिटल दक्षता को बढ़ावा देना है।

राज्यों द्वारा अपनाए गए विभिन्न मॉडल

भारत के अलग-अलग राज्यों ने इस दिशा में अपनी-अपनी रणनीतियाँ अपनाई हैं। तमिलनाडु ने 2011 से लेकर 2019 तक सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों व कॉलेजों के 51.67 लाख छात्रों को ₹7,257.61 करोड़ की लागत से लैपटॉप वितरित किए। यह योजना सभी छात्रों के लिए थी, चाहे उनका अकादमिक प्रदर्शन कैसा भी हो। उत्तर प्रदेश ने 2012-2015 के बीच 1.5 मिलियन लैपटॉप बांटे, जिसमें अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षण भी शामिल था। बाद में, इसे संशोधित कर 65% से अधिक अंक लाने वाले छात्रों के लिए सीमित कर दिया गया। गोवा में यह योजना केवल SC/ST समुदाय के टॉप स्कोरर छात्रों तक सीमित रही।
कुछ राज्यों ने लैपटॉप की जगह नकद राशि देने का विकल्प चुना है। मध्य प्रदेश सरकार ने 12वीं में 75% से अधिक अंक लाने वाले छात्रों को ₹25,000 की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की, जबकि केरल ने वंचित वर्गों के छात्रों को ₹20,000 का माइक्रोक्रेडिट देने की योजना बनाई है।

योजना का प्रभाव और चुनौतियाँ

इन योजनाओं का प्रभाव केवल तकनीकी पहुँच तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सामाजिक-आर्थिक बाधाओं को भी तोड़ने में मददगार रहा है। उदाहरणस्वरूप, तमिलनाडु के एक छात्र सुधन कुमार ने सरकारी लैपटॉप से DJ बनना सीखा और आज लाखों फॉलोअर्स वाले प्रोफेशनल हैं। एक अन्य छात्र ने कहा कि उसने लैपटॉप के जरिए ईमेल, रिज़्यूमे बनाना और सोशल मीडिया का उपयोग करना सीखा और LinkedIn के माध्यम से नौकरी प्राप्त की।
हालांकि, इन योजनाओं में खामियाँ भी हैं। कई बार छात्र या उनके अभिभावक लैपटॉप का महत्व नहीं समझते, और कुछ मामलों में इन्हें बेच दिया गया। इसके अतिरिक्त, कई सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर लैब, प्रशिक्षित शिक्षक और इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी भी एक बड़ी बाधा है। UDISE+ 2024-25 के अनुसार, केवल 63.5% स्कूलों में इंटरनेट और 64.7% में कंप्यूटर मौजूद हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 2015 में 26.19% से बढ़कर 2025 में 68.6% हो गई है।
  • तमिलनाडु सरकार ने 2011 से 2019 तक 51.67 लाख छात्रों को मुफ्त लैपटॉप वितरित किए।
  • यूपी सरकार की संशोधित योजना के अनुसार अब केवल 65% से अधिक अंक लाने वाले छात्रों को ही लाभ मिलता है।
  • भारत में केवल 58.6% सरकारी स्कूलों में ही इंटरनेट सुविधा उपलब्ध है, जबकि निजी स्कूलों में यह 77.1% है।

भविष्य की दिशा और सुझाव

विशेषज्ञों का मानना है कि इन योजनाओं को सार्वभौमिक बनाया जाना चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) काम करती है। इससे वास्तविक जरूरतमंदों तक सुविधाएं स्वतः पहुँचेंगी। केवल अंक आधारित पात्रता से वंचित तबकों के कई योग्य छात्र पीछे रह जाते हैं। इसके अतिरिक्त, छात्रों को तकनीक के जिम्मेदार और सुरक्षित उपयोग के बारे में मार्गदर्शन देना भी अनिवार्य है।
तमिलनाडु सरकार अब एक नया मॉडल अपनाने जा रही है, जिसमें 20 लाख कॉलेज छात्रों को ₹2,000 करोड़ की लागत से लैपटॉप वितरित किए जाएंगे। यह योजना उन सामाजिक कल्याण योजनाओं के डेटा के आधार पर लाभार्थियों का चयन करेगी, जिससे पात्रता सुनिश्चित हो सके।
डिजिटल समावेशन की दिशा में यह एक प्रशंसनीय प्रयास है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करेगी कि यह योजना कितनी पारदर्शिता, समावेशिता और दूरदर्शिता के साथ क्रियान्वित की जाती है।

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