मानव गतिविधियों से प्रेरित भूकंप: भारत में भूगर्भीय अस्थिरता की नई चुनौतियाँ

भूकंप सामान्यतः प्राकृतिक घटनाएँ मानी जाती हैं, परंतु वैज्ञानिक शोधों ने यह सिद्ध किया है कि अनेक बार मनुष्य की गतिविधियाँ भी इन कंपन की घटनाओं का कारण बन सकती हैं। ऐसी घटनाओं को “मानव-प्रेरित भूकंप” कहा जाता है। एक अनुमान के अनुसार, पिछले 150 वर्षों में दुनिया भर में 700 से अधिक ऐसे भूकंप दर्ज किए गए हैं और यह प्रवृत्ति समय के साथ बढ़ती जा रही है।
मानव गतिविधियाँ और भूकंपीय प्रभाव
भूगर्भीय परतों पर बार-बार भार डालना और हटाना तनाव उत्पन्न करता है, जो प्लेटों के बीच कंपन को उत्प्रेरित कर सकता है। निम्नलिखित गतिविधियाँ इसके लिए ज़िम्मेदार मानी जाती हैं:
- भूजल का अत्यधिक दोहन
- खनन गतिविधियाँ
- बड़े बांधों के पीछे जल जमा करना
- ऊँची इमारतों का निर्माण
- तटीय संरचनाओं का निर्माण
- भूतल में द्रव इंजेक्शन (जैसे फ्रैकिंग)
दिल्ली-एनसीआर और भूजल दोहन से जुड़ी भूकंपीय गतिविधि
2021 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 2003 से 2012 के बीच दिल्ली-एनसीआर में भूजल स्तर के अत्यधिक गिरावट के साथ भूकंपीय गतिविधियों में वृद्धि देखी गई। 2014 के बाद जब जल स्तर स्थिर हुआ, तो कंपन में कमी आई। यह दर्शाता है कि भूजल स्तर का उतार-चढ़ाव प्लेटों पर दबाव डाल सकता है।
बड़े बांध और भूकंप
बांधों के कारण सतही भार में बड़े पैमाने पर परिवर्तन होता है, जो कई बार गंभीर भूकंपों का कारण बन सकता है। 1967 में महाराष्ट्र के कोयना नगर में आए 6.3 तीव्रता के भूकंप ने 180 से अधिक लोगों की जान ली थी, और इसका संबंध कोयना जलाशय से जोड़ा गया। केरल के मुल्लापेरियार बांध क्षेत्र में भी भूकंपीय गतिविधियों में वृद्धि देखी गई है।
जलवायु परिवर्तन और भूकंप
वैज्ञानिकों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन अप्रत्यक्ष रूप से भूकंपों की आवृत्ति को प्रभावित कर सकता है:
- हिमनदों का पिघलना जैसे अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड में
- भारी वर्षा या सूखा, जो सतही जलभार और मृदा रासायनिक संरचना को बदल सकता है
- खेती में पानी की जरूरत बढ़ना और भूजल पर निर्भरता बढ़ना
पश्चिमी घाट के सह्याद्रि क्षेत्र में भारी वर्षा के बाद भूकंप दर्ज किए गए हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- मानव-प्रेरित भूकंपों के 700 से अधिक मामले पिछले 150 वर्षों में दर्ज हुए हैं।
- 1967 का कोयना भूकंप भारत का पहला प्रमुख जलाशय-प्रेरित भूकंप था।
- दिल्ली-एनसीआर भूकंपीय जोखिम क्षेत्र ‘Zone 4’ में आता है।
- भारत में वर्तमान में छह राज्यों में 56 फ्रैकिंग साइटें संचालित हो रही हैं।
निष्कर्ष
भूकंप केवल प्राकृतिक आपदा नहीं हैं, बल्कि कई बार मानव जनित गतिविधियों से भी उत्पन्न हो सकते हैं। विशेष रूप से भारत जैसे घनी आबादी वाले और भूकंपीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में भूजल दोहन, बड़े बांध निर्माण और जलवायु परिवर्तन जैसी गतिविधियों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझना और नियंत्रित करना अत्यंत आवश्यक हो गया है। जब तक इन गतिविधियों का प्रभाव पूरी तरह समझा नहीं जाता, तब तक सतर्कता और वैज्ञानिक प्रबंधन ही सुरक्षित भविष्य की कुंजी हैं।