माओवादी कौन हैं? भारत में माओवादी विद्रोह की विचारधारा, इतिहास और समाप्ति की ओर बढ़ते कदम

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा मार्च 2026 तक देश से माओवादी विद्रोह को पूरी तरह समाप्त करने की समयसीमा घोषित किए जाने के बाद, हाल के दिनों में माओवादियों के खिलाफ कार्रवाई और अधिक तीव्र हो गई है। यह विद्रोह, जो दशकों से भारत के मध्य और पूर्वी भागों में फैला हुआ है, अब अपने अंतिम चरण में प्रतीत हो रहा है। लेकिन इस विद्रोह की जड़ें, इसकी विचारधारा और इसके प्रभाव आज भी गहराई से समझने योग्य हैं।
माओवादी कौन हैं?
‘माओवादी’ शब्द विशेष रूप से CPI (माओवादी) के सदस्यों को संदर्भित करता है, जो माओ ज़ेडॉन्ग की रणनीति से प्रेरित होकर भारत में ‘जनयुद्ध’ के माध्यम से सत्ता पर कब्जा करने का लक्ष्य रखते हैं। इस पार्टी के संविधान के अनुसार:
“पार्टी का तत्काल उद्देश्य भारत में नवजनवादी क्रांति को पूरा करना है — साम्राज्यवाद, सामंतवाद और परजीवी नौकरशाही पूंजीवाद को समाप्त करके। अंतिम उद्देश्य साम्यवाद की स्थापना है।”
स्थानीय समर्थन और रणनीति
अपने अंतिम उद्देश्य से इतर, जमीनी स्तर पर माओवादी आदिवासी और वंचित समुदायों के बीच समर्थन हासिल करने में सफल रहे हैं। राज्य व्यवस्था, सामाजिक असमानताओं और भूमि अधिकारों जैसे मुद्दों पर जनता में पहले से मौजूद असंतोष को माओवादी संगठन संगठित करने में माहिर रहे हैं। हालांकि CPI (माओवादी) और उसकी सशस्त्र शाखा PLGA (पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी) भारत में प्रतिबंधित संगठन हैं, इनका प्रभाव कुछ क्षेत्रों में अब भी बना हुआ है।
भारत में माओवादी विद्रोह का इतिहास
इस विद्रोह की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी जिले के नक्सलबाड़ी गांव में हुए एक किसान आंदोलन से मानी जाती है, जिससे ‘नक्सल’ शब्द की उत्पत्ति हुई। यह आंदोलन धीरे-धीरे एक सशस्त्र संघर्ष में बदल गया, जो विभिन्न कालखंडों में तीव्र और मंद होता रहा।
2000 के दशक के मध्य में यह विद्रोह अपने चरम पर था, जब यह छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना सहित) और पश्चिम बंगाल के लगभग 180 जिलों में फैला हुआ था। इस संघर्ष में हजारों लोग—माओवादी लड़ाके, सुरक्षाकर्मी और निर्दोष नागरिक—अपना जीवन गंवा चुके हैं। मानवाधिकार हनन के आरोप दोनों पक्षों पर लगे हैं।
माओवादी विचारधारा और माओ का प्रभाव
माओ ज़ेडॉन्ग 20वीं सदी की शुरुआत में चीन में एक कम्युनिस्ट नेता के रूप में उभरे, जब वहां की अधिकांश संपत्ति कुछ सामंती कुलीनों के पास केंद्रित थी। उन्होंने लेनिन और बोल्शेविक क्रांति से प्रेरणा लेकर एक ग्रामीण केंद्रित साम्यवादी विचारधारा विकसित की, जिसे भारत जैसे देशों में ग्रामीण विद्रोहियों ने अपनाया।
माओ का यह कथन प्रसिद्ध है: “राजनीतिक शक्ति बंदूक की नली से निकलती है।”
इस सिद्धांत के तहत माओ ने ग्रामीण आबादी को संगठित करके गुरिल्ला युद्ध के ज़रिये सत्ता हासिल करने की रणनीति को विकसित किया, जिसे भारत में माओवादियों ने अपनाया।
वर्तमान स्थिति और सरकारी प्रयास
आज भारत में माओवादी आंदोलन काफी हद तक सीमित हो गया है, मुख्यतः छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र और उसके आसपास के कुछ जिलों तक। सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई, बुनियादी ढांचे में सुधार, और सरकार की पुनर्वास व विकास योजनाओं ने आंदोलन की शक्ति को कमजोर किया है।
सरकार अब इसे समाप्त करने की दिशा में निर्णायक कदम उठा रही है। 2026 की समयसीमा इसी रणनीतिक दृढ़ता का प्रतीक है।