माइक्रोप्लास्टिक और हृदय रोग: एक अदृश्य खतरा और सार्वजनिक स्वास्थ्य की चुनौती

प्लास्टिक प्रदूषण केवल पर्यावरणीय मुद्दा नहीं रह गया है, बल्कि अब यह मानवीय स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा बन चुका है। हाल के वैज्ञानिक अध्ययनों में यह संकेत मिले हैं कि माइक्रोप्लास्टिक – सूक्ष्म प्लास्टिक कण – हृदय रोगों (Cardiovascular Diseases – CVDs) के जोखिम को भी बढ़ा सकते हैं। भारत जैसे देश में, जहां हृदय रोग मृत्यु का एक प्रमुख कारण है, यह निष्कर्ष विशेष रूप से चिंताजनक है।

माइक्रोप्लास्टिक क्या हैं?

माइक्रोप्लास्टिक वे प्लास्टिक कण होते हैं जिनका आकार 5 मिलीमीटर से छोटा होता है। ये दो प्रकार के होते हैं:

  • प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक: जो जानबूझकर निर्मित होते हैं, जैसे सौंदर्य प्रसाधनों में।
  • द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक: जो बड़े प्लास्टिक के विघटन से उत्पन्न होते हैं।

पॉलीथीन टेरेफ्थेलेट (PET), पॉलीप्रोपाइलीन (PP), पॉलीस्टाइरीन (PS), पॉलीविनाइल क्लोराइड (PVC) और पॉलीथीन (PE) जैसे प्लास्टिक उत्पाद इनका मुख्य स्रोत हैं। इनका नष्ट होने की गति बहुत धीमी होती है, जिससे ये लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक से स्वास्थ्य को खतरे

माइक्रोप्लास्टिक हवा, पानी और भोजन के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करते हैं। इन्हें शरीर में श्वसन, पाचन और त्वचा के संपर्क से अवशोषित किया जा सकता है। एक बार शरीर में पहुंचने पर ये विभिन्न अंगों जैसे मस्तिष्क, यकृत, गुर्दा, फेफड़े, रक्त और हृदय ऊतकों में जमा हो सकते हैं।
प्रमुख स्वास्थ्य प्रभावों में शामिल हैं:

  • पाचन तंत्र में विकार
  • श्वसन समस्याएं
  • गुर्दे और यकृत को क्षति
  • प्रजनन एवं विकास संबंधी समस्याएं
  • तंत्रिका तंत्र विकार
  • हृदय की मांसपेशियों को नुकसान (कार्डियोटॉक्सिसिटी)

हृदय रोगों में माइक्रोप्लास्टिक की भूमिका

हृदय रोगों में माइक्रोप्लास्टिक की संभावित भूमिका पर किए गए अध्ययन बताते हैं कि:

  • ये हृदय ऊतकों में पाए गए हैं, जैसे मायोकार्डियम, कोरोनरी और कैरोटिड धमनियां।
  • माइक्रोप्लास्टिक से ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन हो सकती है, जिससे एथेरोस्क्लेरोसिस (धमनियों में पट्टिका जमाव) हो सकता है।
  • यह पट्टिका अगर फटती है तो थ्रॉम्बस (खून का थक्का) बन सकता है, जिससे हृदयघात (Heart Attack) हो सकता है।

कुछ शोधों में पाया गया है कि हृदय रोगियों में माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा सामान्य व्यक्तियों की तुलना में अधिक पाई गई है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • माइक्रोप्लास्टिक का आकार 5 मिमी से छोटा होता है।
  • CVDs भारत में कुल मौतों के 27% के लिए जिम्मेदार (WHO, 2016)।
  • PVC, PET, PE, PP प्रमुख माइक्रोप्लास्टिक स्रोत हैं।
  • भारत ने 1 जुलाई 2022 से सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया।

भारत सरकार के प्रयास

भारत सरकार ने प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए निम्न कदम उठाए हैं:

  • सिंगल-यूज़ प्लास्टिक प्रतिबंध: 1 जुलाई 2022 से प्रभावी।
  • 3R सिद्धांत (Reduce, Reuse, Recycle): कचरा प्रबंधन की रणनीति को बढ़ावा।
  • जैव-अपघट्य प्लास्टिक: पर्यावरण के अनुकूल विकल्प जैसे पॉलीहाइड्रॉक्सीअल्कानोएट्स (PHA) को बढ़ावा।

वैश्विक स्तर पर पहल

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA) ने 2022 में एक Intergovernmental Negotiating Committee (INC) का गठन किया, जिसका उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण पर एक कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक संधि तैयार करना है। अगली बैठक अगस्त 2025 में प्रस्तावित है, जिससे एक निर्णायक समझौते की आशा है।

निष्कर्ष

माइक्रोप्लास्टिक का खतरा अब केवल समुद्र या नदियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे शरीर के भीतर तक पहुंच चुका है। हृदय रोगों में इसकी भूमिका को लेकर अभी और अनुसंधान की आवश्यकता है, विशेषकर भारत जैसे देश में। लेकिन इससे पहले कि यह संकट और गहराए, यह आवश्यक है कि सरकार, वैज्ञानिक समुदाय और आम नागरिक मिलकर प्लास्टिक के उपयोग में संयम बरतें, 3R सिद्धांतों को अपनाएं और पर्यावरण के प्रति सजग रहें। यही हमारे स्वास्थ्य और भविष्य की सुरक्षा की कुंजी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *