महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक 2024: नक्सलवाद पर प्रहार या असहमति पर प्रतिबंध?

महाराष्ट्र विधानसभा ने हाल ही में विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक, 2024 को ध्वनिमत से पारित कर दिया है। यह विधेयक राज्य में वामपंथी उग्रवाद से निपटने के उद्देश्य से तैयार किया गया है, परंतु इसके प्रावधानों और व्याख्याओं को लेकर गंभीर चिंताएँ भी सामने आई हैं। विधेयक में कई ऐसे प्रावधान हैं जो सरकार को व्यापक अधिकार देते हैं, जिससे इसके दुरुपयोग की आशंका जताई जा रही है।
विधेयक के प्रमुख प्रावधान
इस विधेयक के अंतर्गत “गैरकानूनी गतिविधियों” की परिभाषा को काफी विस्तृत और अस्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया गया है। इसमें निम्नलिखित गतिविधियाँ शामिल की गई हैं:
- सार्वजनिक व्यवस्था और विधि व्यवस्था में बाधा डालना।
- सरकारी अधिकारियों को बलपूर्वक डराना।
- हिंसा, तोड़फोड़ या भय फैलाने वाले कृत्यों में संलिप्त होना या उनका प्रचार करना।
- हथियारों या विस्फोटकों का उपयोग करना या संचार व्यवस्था बाधित करना।
- कानून की अवज्ञा को प्रोत्साहित करना।
इन गतिविधियों के लिए दो से सात साल की कैद तथा जुर्माने का प्रावधान है। साथ ही, आरोप तय होने से पहले ही संपत्ति जब्त करने का अधिकार जिला मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त को दिया गया है।
विधेयक का कानूनी ढांचा और प्रक्रिया
विधेयक के अंतर्गत सरकार किसी संगठन को “गैरकानूनी” घोषित कर सकती है। यह निर्णय एक सलाहकार बोर्ड की पुष्टि से प्रभावी होता है, जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश स्तर के सदस्य होते हैं। इसके अलावा:
- गिरफ्तारी वारंट के बिना की जा सकती है।
- जमानत नहीं मिलती — सभी अपराध गैर-जमानती हैं।
- आरोपियों की संपत्ति जब्त की जा सकती है, जिसमें उनका निवास भी शामिल हो सकता है।
हालांकि, पीड़ित पक्ष हाईकोर्ट में अपील कर सकता है, लेकिन इसकी समयसीमा 30 दिन तय की गई है।
विधेयक पर उठ रही आशंकाएँ
कई विशेषज्ञों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस विधेयक की परिभाषाओं को “अत्यधिक विस्तृत और अस्पष्ट” बताया है। खासकर “कानून की अवज्ञा को प्रोत्साहित करना” या “सड़क यातायात में बाधा” जैसे सामान्य विरोध प्रदर्शनों को अपराध की श्रेणी में रखने से असहमति की आवाज़ को दबाने का खतरा पैदा होता है।
1962 के केदारनाथ सिंह बनाम राज्य केस में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि जब तक सरकार के विरुद्ध बोलने वाले शब्दों के साथ हिंसा का स्पष्ट उकसावा न हो, तब तक वह देशद्रोह नहीं माना जा सकता।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- UAPA अधिनियम, 1967: भारत का मुख्य कानून है जो आतंकवादी गतिविधियों और गैरकानूनी संगठनों से निपटने के लिए बनाया गया था।
- PMLA अधिनियम, 2002: धनशोधन से संबंधित अपराधों में संपत्ति की जब्ती के लिए प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उपयोग किया जाता है।
- केदारनाथ सिंह मामला (1962): इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल असहमति या आलोचना देशद्रोह नहीं होती जब तक उसमें हिंसा की मंशा न हो।
- महाराष्ट्र में नक्सली प्रभाव: गढ़चिरौली, गोंदिया, और चंद्रपुर जिले नक्सल प्रभावित माने जाते हैं।
विधेयक की प्रक्रिया अब विधान परिषद और फिर राज्यपाल की मंजूरी के लिए आगे बढ़ेगी, जिसके बाद यह कानून बन जाएगा।
इस विधेयक का उद्देश्य नक्सलवाद जैसे संगठित अपराधों से निपटना है, परंतु इसकी अस्पष्ट व्याख्याएँ और कठोर दंड इसे नागरिक स्वतंत्रताओं पर नियंत्रण का माध्यम भी बना सकती हैं। लोकतंत्र में सुरक्षा और स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। यदि इस कानून का कार्यान्वयन पारदर्शिता और न्यायसंगत प्रक्रिया के साथ किया जाए, तो यह उपयोगी सिद्ध हो सकता है, अन्यथा यह असहमति को दबाने का हथियार बन सकता है।