भारत में हरित क्रांति के भविष्य को लेकर CIMMYT की चुनौती और अपील

छह दशक पहले, नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक नॉर्मन बोरलॉग ने भारत में हरित क्रांति की नींव रखी थी। आज, उसी विरासत को आगे बढ़ा रही संस्था — इंटरनेशनल मक्का एवं गेहूं सुधार केंद्र (CIMMYT) — भारत सरकार और निजी क्षेत्र से आर्थिक सहायता की अपील कर रही है, जिससे गेहूं और मक्का में अनुसंधान जारी रखा जा सके। यह दो फसलें विश्व की कुल खेती योग्य भूमि का एक-चौथाई से अधिक भाग कवर करती हैं।

वित्तीय संकट में CIMMYT की भूमिका

CIMMYT को 2024 में कुल $211 मिलियन के अनुदान में से $83 मिलियन अकेले अमेरिका की USAID संस्था से प्राप्त हुआ था। परंतु ट्रम्प प्रशासन के निर्णय के अनुसार, 1 जुलाई से USAID का संचालन बंद कर दिया गया है, जिससे संस्थान पर बड़ा असर पड़ा है। गेट्स फाउंडेशन जैसे अन्य संस्थान भी अनुदान में कटौती कर रहे हैं। इसके चलते 2026 से CIMMYT की अनुसंधान गतिविधियों पर गंभीर असर पड़ने की आशंका है।
भारत में CIMMYT का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। 1960 के दशक की काल्यान सोना, सोनालिका और 1995 की PBW 343 जैसी लोकप्रिय गेहूं किस्में, इसी संस्थान की तकनीकी मदद से बनी थीं। आज भी देश में बोई जा रही शीर्ष 10 गेहूं किस्मों में से छह किस्में CIMMYT से उत्पन्न जर्मप्लाज्म पर आधारित हैं।

अनुसंधान और तकनीकी नवाचार

CIMMYT का लक्ष्य केवल अधिक पैदावार वाली किस्मों का विकास नहीं है, बल्कि जलवायु बदलाव के अनुकूल, रोगरोधी और उर्वरक कुशल किस्में तैयार करना भी है। DBW 303 नामक किस्म, दक्षिण एशिया की पहली ऐसी गेहूं किस्म है, जिसकी औसत उपज 8 टन प्रति हेक्टेयर से अधिक रही है।
इसके अलावा, CIMMYT और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने मिलकर 2011 में बोरलॉग इंस्टिट्यूट फॉर साउथ एशिया (BISA) की स्थापना की थी, जिसके तहत पंजाब, मध्यप्रदेश और बिहार में तीन अनुसंधान केंद्र संचालित हो रहे हैं। कर्नाटक में मक्का के लिए ‘डबल्ड हैप्लॉइड’ सुविधा स्थापित की गई है, जो एशिया में पहली है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • नॉर्मन बोरलॉग: अमेरिकी कृषि वैज्ञानिक जिनके गेहूं अनुसंधान ने भारत में हरित क्रांति की नींव रखी; 1970 में नोबेल शांति पुरस्कार मिला।
  • CIMMYT: इंटरनेशनल मक्का और गेहूं सुधार केंद्र, जिसकी स्थापना मैक्सिको में हुई थी; बोरलॉग यहीं कार्यरत थे।
  • BISA: बोरलॉग इंस्टिट्यूट फॉर साउथ एशिया, ICAR के साथ मिलकर CIMMYT द्वारा संचालित।
  • BNI तकनीक: जैविक नाइट्रिफिकेशन अवरोधन, जो मिट्टी में नाइट्रोजन बनाए रखने में सहायक और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता को घटाता है।

CIMMYT का यह प्रयास भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए उतना ही आवश्यक है जितना अतीत में था। मौजूदा संकट में भारत के लिए यह अवसर है कि वह न केवल आर्थिक सहायता देकर इस सहयोग को मजबूत करे, बल्कि वैश्विक खाद्य नीति में एक निर्णायक भूमिका भी निभाए। नॉर्मन बोरलॉग की तरह, भारत भी “विज्ञान के माध्यम से शांति और समृद्धि” का वाहक बन सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *