भारत में बांग्लादेशी जूट उत्पादों पर प्रतिबंध: घरेलू उद्योग की रक्षा या कूटनीतिक दबाव?

भारत सरकार ने हाल ही में बांग्लादेश से आयात होने वाले कुछ जूट उत्पादों और बुने हुए कपड़ों पर सभी भूमि मार्गों से आयात पर रोक लगाते हुए केवल महाराष्ट्र के न्हावा शेवा बंदरगाह से इनके प्रवेश की अनुमति दी है। यह कदम बांग्लादेशी निर्यातकों द्वारा किए जा रहे अनुचित व्यापारिक व्यवहार, घरेलू जूट किसानों और उद्योगों को हो रहे नुकसान और भारत-बांग्लादेश संबंधों में हालिया तनाव को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।
क्या है प्रतिबंध का कारण?
सरकारी अधिकारियों के अनुसार, बांग्लादेशी जूट उत्पादों को दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) के अंतर्गत भारत में शुल्क-मुक्त प्रवेश प्राप्त है। लेकिन यह भारतीय जूट उद्योग के लिए कई वर्षों से चिंता का विषय रहा है। मुख्य कारण हैं:
- राज्य प्रायोजित सब्सिडी: बांग्लादेश सरकार द्वारा जूट निर्यात को दी जा रही सब्सिडियों से भारतीय बाजार में कीमतें कृत्रिम रूप से गिर रही हैं।
- एंटी-डंपिंग ड्यूटी (ADD) का उल्लंघन: कई बांग्लादेशी निर्यातक तकनीकी छूटों और गलत घोषणाओं के ज़रिए ADD से बच निकलते रहे हैं।
- भारतीय किसानों को नुकसान: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ₹5,335 प्रति क्विंटल होने के बावजूद जूट की कीमतें ₹5,000 से नीचे आ गई हैं, जिससे किसानों और मिल मालिकों पर भुगतान संकट उत्पन्न हुआ है।
कौन-कौन से उत्पादों पर लगा प्रतिबंध?
इस प्रतिबंध में शामिल हैं:
- जूट उत्पाद
- फ्लैक्स टॉ और वेस्ट
- एकल और बहुस्तरीय जूट यार्न
- जूट बुने हुए कपड़े
- अनब्लिच्ड जूट फैब्रिक्स
यह प्रतिबंध नेपाल और भूटान को ट्रांजिट में ले जाए जा रहे बांग्लादेशी सामान पर लागू नहीं होगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत में जूट उत्पादन का 78% हिस्सा पश्चिम बंगाल से आता है।
- भारत का 90% जूट उत्पादन घरेलू खपत में प्रयुक्त होता है।
- भारतीय जूट उद्योग में 4 लाख से अधिक लोग प्रत्यक्ष रूप से कार्यरत हैं।
- 2016-17 में बांग्लादेश से जूट आयात $138 मिलियन था, जो 2023-24 में बढ़कर $144 मिलियन हो गया।
घरेलू जूट उद्योग की स्थिति
बांग्लादेश से कम कीमतों पर आ रहे तैयार उत्पादों ने भारत की जूट मिलों की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित किया है। वर्तमान में छह मिलें बंद पड़ी हैं, जिन पर ₹1,800 करोड़ से अधिक का बकाया है। इसके अतिरिक्त, जूट किसानों की आय भी कृत्रिम रूप से घट चुकी है। इसका सीधा प्रभाव पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, ओडिशा और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में लाखों परिवारों की आजीविका पर पड़ा है।
सरकार का उद्देश्य
इस प्रतिबंध के ज़रिए भारत सरकार निम्न लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहती है:
- गुणवत्ता जांच सुनिश्चित करना: विशेष रूप से हाइड्रोकार्बन मुक्त स्थिति की जांच।
- गलत लेबलिंग और घोषणाओं पर रोक: जिससे निर्यातकों द्वारा ADD से बचने की रणनीति निष्फल हो।
- अनुचित व्यापारिक व्यवहार पर नियंत्रण: जैसे उत्पादन क्षमता से अधिक निर्यात और नकली रजिस्ट्रेशन।
सरकार यह भी सुनिश्चित करने के प्रयास में है कि बांग्लादेशी निर्यातक किसी तीसरे देश के माध्यम से भारत में घुसपैठ न करें।
निष्कर्ष
भारत का यह कदम घरेलू जूट उद्योग और किसानों की रक्षा के लिए आवश्यक प्रतीत होता है, विशेषकर तब जब अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों की शर्तों का दुरुपयोग किया जा रहा हो। हालांकि यह कदम भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय संबंधों में कूटनीतिक हलचल भी ला सकता है, लेकिन घरेलू हितों की रक्षा की दृष्टि से इसे व्यावसायिक रूप से उचित ठहराया जा सकता है। आने वाले समय में यह देखा जाना शेष है कि यह प्रतिबंध भारतीय जूट उद्योग को कितनी राहत दिला पाता है और बांग्लादेश इस पर कैसी प्रतिक्रिया देता है।