भारत में पहली बार शुरू हुए वेदर डेरिवेटिव्स: किसानों और व्यवसायों के लिए जलवायु जोखिम प्रबंधन की नई राह

भारतीय मौसम विभाग (IMD) और नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (NCDEX) के बीच हुए समझौते के तहत भारत में पहली बार वेदर डेरिवेटिव्स (Weather Derivatives) शुरू किए गए हैं। यह कदम किसानों, व्यापारिक संस्थाओं और वित्तीय संगठनों को मौसम-आधारित जोखिमों से बचाने के लिए एक क्रांतिकारी पहल मानी जा रही है।
वेदर डेरिवेटिव्स क्या होते हैं?
वेदर डेरिवेटिव्स ऐसे वित्तीय साधन हैं जिनका मूल्य किसी मौसम संबंधी मापदंड — जैसे तापमान, वर्षा या हवा की गति — पर आधारित होता है। ये उपकरण विशेषकर उन जोखिमों को कवर करते हैं जो प्रत्यक्ष रूप से आय को प्रभावित करते हैं, परंतु संपत्ति को नुकसान नहीं पहुँचाते। उदाहरणस्वरूप, कम बारिश के कारण फसल उत्पादकता में गिरावट या अप्रत्याशित ठंड के कारण बिक्री में कमी।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत में यह सुविधा IMD और NCDEX के सहयोग से पहली बार शुरू की गई है।
- Heating Degree Days (HDD) और Cooling Degree Days (CDD) जैसे इंडेक्स अंतरराष्ट्रीय वेदर डेरिवेटिव बाजारों में प्रचलित हैं।
- ये डेरिवेटिव्स पहले से तय आंकड़ों के आधार पर स्वतः सेटल होते हैं — मसलन: “अगर जून में नासिक में बारिश 100 मिमी से कम हो तो ₹5,000 प्रति मिमी का भुगतान।”
- बीमा उत्पाद वास्तविक नुकसान के बाद क्षतिपूर्ति करते हैं, जबकि डेरिवेटिव्स पूर्व-निर्धारित मानकों पर भुगतान करते हैं।
उपयोग की संभावनाएं: किसानों से लेकर वित्तीय संस्थाओं तक
- किसान: विदर्भ का कोई किसान मानसून की असफलता को लेकर चिंतित है। वह कम बारिश पर आधारित एक डेरिवेटिव खरीद सकता है, जिससे कम वर्षा की स्थिति में उसे भुगतान मिलेगा और वह अगली फसल की तैयारी कर पाएगा।
- व्यवसाय: गुजरात की एक बोतलिंग कंपनी गर्मी में अधिक बिक्री की आशा करती है। यदि तापमान कम रहता है, तो बिक्री गिरती है। ऐसे में 36°C से कम औसत तापमान पर भुगतान करने वाला डेरिवेटिव राजस्व हानि की भरपाई करता है।
- बैंक: राजस्थान में कृषि ऋण प्रदान करने वाला बैंक यदि मानसून विफल हो जाने पर भुगतान नहीं हो पाने के खतरे से चिंतित है, तो वह वर्षा आधारित डेरिवेटिव के माध्यम से अपने ऋण पोर्टफोलियो को सुरक्षित कर सकता है।
आर्थिक और जलवायु प्रबंधन में संभावित लाभ
- ऋण जोखिम में कमी: बैंक और NBFC मौसम-आधारित चूक से बच सकते हैं।
- नीति निर्माण में सहायता: बाजार-आधारित संकेतों से सरकार को समय पर नीति निर्णय लेने में मदद मिलती है।
- स्थानीय निवेश को बढ़ावा: डेटा सेंसर, जलवायु मॉडलिंग और कृषि तकनीक जैसे क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।
सफल क्रियान्वयन के लिए आवश्यकताएँ
- डेटा की गुणवत्ता: IMD और निजी प्रदाताओं को विश्वसनीय और क्षेत्रीय स्तर पर सटीक डेटा प्रदान करना होगा।
- उत्पाद वितरण: बैंक, बीमा कंपनियाँ और एग्रीटेक प्लेटफ़ॉर्म्स को संयुक्त उत्पाद बनाकर अंतिम उपयोगकर्ताओं से जोड़ना होगा।
भारत में वेदर डेरिवेटिव्स का शुभारंभ एक ऐसा परिवर्तन है जो हमें आपदा प्रतिक्रिया से जोखिम-साझेदारी के सक्रिय मॉडल की ओर ले जाता है। यह किसानों के लिए आय स्थिरता, बैंकों के लिए जोखिम सुरक्षा और पूरे देश के लिए जलवायु अनुकूलन का आधार बन सकता है।