भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला का ऐतिहासिक अंतरिक्ष मिशन: आईएसएस पर किए गए 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग

भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर अपने 18 दिनों के प्रवास के दौरान Axiom-4 मिशन के तहत 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग किए। यह मिशन न केवल अंतरिक्ष में भारत की पहली मानव उपस्थिति का प्रतीक बना, बल्कि माइक्रोग्रैविटी में अनुसंधान और प्रौद्योगिकी प्रदर्शन के क्षेत्र में भी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रहा।

जीवन की संभावना: टार्डिग्रेड्स पर अध्ययन

शुभांशु शुक्ला ने भारतीय मूल के टार्डिग्रेड्स — सूक्ष्म जीव जो अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं — की वृद्धि, सहनशीलता और अंतरिक्ष यात्रा के प्रभावों का अध्ययन किया। यह प्रयोग अंतरिक्ष में जीवन की संभावनाओं की खोज की दिशा में एक बड़ा कदम है।

मांसपेशियों पर प्रभाव

माइक्रोग्रैविटी में मानव मांसपेशी कोशिकाओं की वृद्धि और विकास पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने के लिए शुभांशु ने ‘मायोजेनेसिस’ संबंधी प्रयोग किए। यह शोध न केवल अंतरिक्ष में मांसपेशियों के क्षय को समझने में मदद करेगा, बल्कि पृथ्वी पर मांसपेशी-सम्बंधित बीमारियों के इलाज के लिए नई दिशाएं भी सुझा सकता है।

बीज अंकुरण और फसल अनुसंधान

शुक्ला ने अंतरिक्ष में “मूंग” और “मेथी” के बीजों को पेट्री डिश में अंकुरित कर माइक्रोग्रैविटी के उनके विकास पर प्रभाव का अध्ययन किया। बाद में इन बीजों को ISS में फ्रीज़र में संग्रहित किया गया।

ऑक्सीजन उत्पादन के लिए सायनोबैक्टीरिया

उन्होंने दो प्रकार की सायनोबैक्टीरिया — जल-आधारित प्रकाश-संश्लेषक जीव — पर प्रयोग किए, जो पृथ्वी पर ऑक्सीजन पैदा करने वाले पहले जीव माने जाते हैं। इनका उद्देश्य यह जांचना था कि क्या इन जीवों को भविष्य के अंतरिक्ष यान में कार्बन और नाइट्रोजन रीसायक्लिंग सिस्टम का हिस्सा बनाया जा सकता है।

भोजन और ईंधन उत्पादन के लिए माइक्रोएल्गी

एक अन्य महत्वपूर्ण प्रयोग में शुक्ला ने माइक्रोएल्गी के विकास, चयापचय और आनुवंशिक गतिविधियों का अध्ययन किया, जिन्हें पृथ्वी पर पोषण और जैव-ईंधन के संभावित स्रोत के रूप में देखा जाता है। यह अध्ययन पृथ्वी और अंतरिक्ष में उगाई गई एल्गी की तुलना करता है।

शून्य गुरुत्व में स्क्रीन इंटरफेस

ISRO के “Voyager Display” शीर्षक वाले अध्ययन के अंतर्गत शुक्ला ने शून्य गुरुत्वाकर्षण में कंप्यूटर स्क्रीन के उपयोग पर प्रभावों का परीक्षण किया। इस अध्ययन से भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों में उपयोग होने वाले डिजिटल उपकरणों की डिजाइन और मानवीय इंटरफेस को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।

मस्तिष्क से कंप्यूटर तक: मानसिक संप्रेषण

शुक्ला और उनके साथी स्लावोस उज़्नांस्की ने मिलकर एक ऐतिहासिक प्रयोग में भाग लिया जिसमें उन्होंने गहन एकाग्रता की अवस्था में मानसिक गणनाएं कीं और मस्तिष्क से सीधे कंप्यूटर के साथ संपर्क स्थापित किया। यह प्रयोग पहली बार अंतरिक्ष में “ब्रेन-टू-कंप्यूटर” इंटरफेस का सफल परीक्षण था।

जल प्रयोग और भौतिकी का प्रदर्शन

शून्य गुरुत्व में जल के व्यवहार को प्रदर्शित करते हुए शुक्ला ने सतह तनाव का उपयोग कर एक तैरता हुआ जल-बुलबुला बनाया। उन्होंने मजाक में कहा, “मैं स्टेशन में वॉटर बेंडर बन गया हूं।”

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • शुभांशु शुक्ला Axiom-4 मिशन के तहत अंतरिक्ष स्टेशन जाने वाले पहले भारतीय नागरिक बने।
  • टार्डिग्रेड्स ऐसे सूक्ष्मजीव हैं जो शून्य तापमान, विकिरण और निर्वात में भी जीवित रह सकते हैं।
  • Voyager Display अध्ययन का उद्देश्य अंतरिक्ष में डिजिटल इंटरफेस के साथ मानव बातचीत को समझना था।
  • माइक्रोएल्गी और सायनोबैक्टीरिया भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों में ऑक्सीजन और खाद्य स्रोत बनने की क्षमता रखते हैं।

शुभांशु शुक्ला की यह ऐतिहासिक यात्रा केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि वैश्विक विज्ञान समुदाय के लिए भी एक प्रेरणादायक उदाहरण है। उनके द्वारा किए गए प्रयोग भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों, जीवन विज्ञान अनुसंधान और तकनीकी विकास के लिए नई राहें खोलते हैं।

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