ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन के मेगा डैम ‘मेदोग’ की योजना: भारत के लिए कितना बड़ा खतरा?

चीन द्वारा तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो (ब्रह्मपुत्र) नदी पर प्रस्तावित मेदोग (या मोटुओ) हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट, जो दुनिया का सबसे बड़ा जलविद्युत स्टेशन बनने की योजना है, भारत और बांग्लादेश के लिए चिंता का विषय बन गया है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि इस परियोजना का भारत में ब्रह्मपुत्र के जलप्रवाह पर सीमित प्रभाव पड़ेगा, लेकिन इसके पर्यावरणीय और भू-राजनीतिक परिणामों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

मेदोग डैम: परियोजना की विशेषताएं

  • स्थान: मेदोग काउंटी, तिब्बत, भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमा के निकट।
  • क्षमता: 60,000 मेगावाट, जो चीन के थ्री गॉर्जेस डैम की क्षमता से तीन गुना अधिक है।
  • लागत: अनुमानित 1 ट्रिलियन युआन (लगभग $137 बिलियन)।
  • निर्माण अवधि: 2029 में निर्माण शुरू होने की संभावना, 2033 तक संचालन प्रारंभ होने की उम्मीद।
  • ऊर्जा उत्पादन: वार्षिक 300 बिलियन किलोवाट-घंटा बिजली उत्पादन का लक्ष्य।

यह परियोजना यारलुंग त्सांगपो के ‘ग्रेट बेंड’ क्षेत्र में स्थित है, जहां नदी 2,000 मीटर की ऊंचाई से गिरती है, जिससे जलविद्युत उत्पादन के लिए अत्यधिक संभावनाएं हैं।

भारत पर संभावित प्रभाव

जलप्रवाह पर प्रभाव

भारतीय अधिकारियों और विशेषज्ञों के अनुसार, ब्रह्मपुत्र का अधिकांश जलप्रवाह भारत के भीतर उत्पन्न होता है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि ब्रह्मपुत्र का 65-70% जल भारत में उत्पन्न होता है, जबकि चीन का योगदान केवल 30-35% है, जो मुख्यतः ग्लेशियर पिघलने और सीमित वर्षा से आता है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना है कि यह योगदान केवल 15-20% है।
इसलिए, चीन द्वारा जल प्रवाह को नियंत्रित करने की क्षमता सीमित है, और यदि चीन जल प्रवाह को कम करता है, तो यह असम में वार्षिक बाढ़ को कम करने में मदद कर सकता है।

पर्यावरणीय और भू-राजनीतिक चिंताएं

मेदोग डैम का निर्माण भूकंप-प्रवण क्षेत्र में हो रहा है, जिससे भूस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, परियोजना के कारण तिब्बती समुदायों का विस्थापन और सांस्कृतिक स्थलों का नुकसान भी संभावित है।
भारत और बांग्लादेश ने इस परियोजना पर चिंता व्यक्त की है, विशेष रूप से जल प्रवाह में संभावित बदलावों और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव को लेकर।

भारत की रणनीति

भारत को निम्नलिखित कदम उठाने की आवश्यकता है:

  • जल प्रवाह पर निगरानी: चीन के जलविद्युत परियोजनाओं के प्रभाव का आकलन करने के लिए वैज्ञानिक अध्ययन और निगरानी प्रणाली स्थापित करना।
  • राजनयिक वार्ता: चीन के साथ जल प्रवाह और परियोजना से संबंधित डेटा साझा करने के लिए राजनयिक प्रयास करना।
  • आंतरिक जल संसाधन प्रबंधन: ब्रह्मपुत्र प्रणाली की सहायक नदियों पर जल भंडारण परियोजनाएं विकसित करना, जैसे कि अपर सियांग परियोजना, जो जल प्रवाह में बदलावों को संतुलित कर सकती है।
  • आपदा प्रबंधन: संभावित जल प्रवाह में अचानक बदलावों या आपदाओं के लिए तैयार रहना और संबंधित योजनाएं बनाना।

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