ब्रह्मपुत्र की गोद से मिली नई मछली: ‘पेथिया डिब्रूगढ़ेन्सिस’ की खोज से बढ़ी जैव विविधता

भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित ब्रह्मपुत्र नदी की जलराशि से वैज्ञानिकों की एक टीम ने साइप्रिनिड प्रजाति की एक नई मछली की खोज की है, जिसे ‘पेथिया डिब्रूगढ़ेन्सिस’ (Pethia dibrugarhensis) नाम दिया गया है। यह नाम इसके मूल स्थल, असम के डिब्रूगढ़ जिले के माजियान क्षेत्र पर आधारित है। यह खोज देश की मीठे पानी की जैव विविधता के संरक्षण में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर मानी जा रही है।
खोज की पृष्ठभूमि
इस नई प्रजाति की खोज ICAR-सेंट्रल इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट (ICAR-CIFRI) की गुवाहाटी और बैरकपुर शाखा तथा मणिपुर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा की गई। यह कार्य ब्रह्मपुत्र नदी पर किए गए एक ताजे पानी के जीव-जंतु सर्वेक्षण के दौरान सामने आया। शोध निष्कर्षों को Springer Nature की अंतरराष्ट्रीय पत्रिका National Academy Science Letters में प्रकाशित किया गया है।
पेथिया डिब्रूगढ़ेन्सिस की विशिष्टताएँ
- प्रजाति परिवार: साइप्रिनिड (Cyprinidae), जिसे आमतौर पर बार्ब मछली कहा जाता है।
- आवास: यह मछली तेज गति से बहने वाले जल में पाई गई, जहाँ तल पर मिट्टी, रेत और पत्थर होते हैं।
- सहजीवन: यह अन्य स्थानीय छोटी मछलियों के साथ सह-अस्तित्व में रहती है।
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मुख्य शारीरिक लक्षण:
- अधूरी पार्श्व रेखा (incomplete lateral line)
- पूंछ आधार पर एक गहरा काला धब्बा, जो ऊपर और नीचे की ओर फैलता है
- हुमरल चिह्न (हाथ के पास का निशान) और बार्बेल (मुख के पास के स्पर्शशील अंग) का अभाव
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- पेथिया डिब्रूगढ़ेन्सिस का नाम असम के डिब्रूगढ़ जिले के माजियान क्षेत्र पर आधारित है।
- बार्ब मछलियाँ आमतौर पर यूरोप, अफ्रीका और एशिया में पाई जाती हैं और इनके मुख के पास बार्बेल्स होते हैं, हालांकि इस प्रजाति में इनका अभाव है।
- भारत में इस तरह की खोजें जल पारिस्थितिकी तंत्र को समझने और जैव विविधता संरक्षण की दिशा में अहम भूमिका निभाती हैं।
- इस खोज के प्रमुख वैज्ञानिक बासंता कुमार दास (ICAR-CIFRI निदेशक) थे।
निष्कर्ष
‘पेथिया डिब्रूगढ़ेन्सिस’ की खोज दर्शाती है कि पूर्वोत्तर भारत की नदियों में अभी भी अनेक अनदेखी प्रजातियाँ छिपी हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसी योजनाबद्ध खोजें हमें पारिस्थितिक तंत्र को समझने में मदद करेंगी और पर्यावरणीय परिवर्तन से पहले ही इन प्रजातियों की रक्षा की जा सकेगी। यह खोज न केवल भारतीय मत्स्य विज्ञान को समृद्ध करती है, बल्कि जल-जैव विविधता के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी रेखांकित करती है।