बिहार में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण: अनुच्छेद 326 और उठे विवाद

बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले भारत के चुनाव आयोग ने मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) शुरू किया है। यह कदम जहां एक ओर चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है, वहीं दूसरी ओर इसे लेकर विपक्ष और कई संगठनों द्वारा आलोचना भी की जा रही है। चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया के संवैधानिक आधार को स्पष्ट करने के लिए अनुच्छेद 326 का हवाला दिया है।
क्या है अनुच्छेद 326?
अनुच्छेद 326 भारत के संविधान का वह प्रावधान है जो सार्वजनिक वयस्क मताधिकार (Universal Adult Suffrage) की गारंटी देता है। इसके अनुसार:
- प्रत्येक भारतीय नागरिक जो 18 वर्ष या उससे अधिक आयु का है, और जिसे किसी कानून के तहत अयोग्य नहीं ठहराया गया है, उसे लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनावों में मतदान का अधिकार प्राप्त है।
- अयोग्यता के कारणों में गैर-निवास, मानसिक अस्वस्थता, अपराध, या भ्रष्ट या अवैध आचरण शामिल हो सकते हैं।
चुनाव आयोग ने अनुच्छेद 326 का हवाला क्यों दिया?
28 जून को चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण की घोषणा की। इसके अंतर्गत सभी पात्र नागरिकों को मतदाता सूची में सम्मिलित करना और डुप्लिकेट या अयोग्य प्रविष्टियों को हटाना उद्देश्य बताया गया। आयोग ने बताया कि बिहार में पिछला व्यापक पुनरीक्षण 2003 में हुआ था, और अब जनसंख्या व प्रवासन में आए बदलावों को देखते हुए यह प्रक्रिया आवश्यक है।
आयोग के अनुसार, अनुच्छेद 326 उन्हें यह संवैधानिक दायित्व देता है कि वे चुनावों को निष्पक्ष और समावेशी बनाने के लिए मतदाता सूची को समय-समय पर अद्यतन करें।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- अनुच्छेद 326: भारत में वयस्क मताधिकार का संवैधानिक आधार
- पहली बार वयस्क मताधिकार: 1951-52 के आम चुनाव में लागू
- चुनाव आयोग की स्थापना: 25 जनवरी 1950
- विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR): निर्वाचन क्षेत्रवार मतदाता सूची की त्रुटियों की पहचान और सुधार की प्रक्रिया
क्यों हो रहा है विरोध?
इस विशेष पुनरीक्षण को लेकर कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं, जिनके मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
- नागरिकता साबित करने की जिम्मेदारी नागरिकों पर डाली गई है।
- आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे सामान्य दस्तावेज मान्य नहीं माने जा रहे।
- माता-पिता दोनों की नागरिकता का दस्तावेज देना आवश्यक किया गया है, जो गरीबों और प्रवासी श्रमिकों के लिए मुश्किल है।
- केवल 25 जुलाई तक का सीमित समय दिया गया है, जो अनुचित और अव्यावहारिक बताया गया है।
- प्रक्रिया को लोकतांत्रिक सिद्धांतों और मतदान के अधिकार के विरुद्ध बताया गया है।
इन याचिकाओं की सुनवाई 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में होगी।
निष्कर्ष
बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण संवैधानिक रूप से अनुच्छेद 326 द्वारा समर्थित है, लेकिन इसकी कार्यान्वयन प्रक्रिया, समयसीमा और प्रमाण की अपेक्षाएं विवाद का कारण बन रही हैं। यह मामला नागरिक अधिकारों, प्रशासनिक पारदर्शिता और चुनावी निष्पक्षता के संतुलन का महत्वपूर्ण उदाहरण बन गया है, जिसका प्रभाव न केवल बिहार, बल्कि देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर भी पड़ सकता है।