बिहार में जन्म पंजीकरण की स्थिति और मतदाता सूची अद्यतन: आंकड़ों और विवादों के आईने में

भारत में जन्म और मृत्यु का पंजीकरण प्रत्येक नागरिक की पहचान और अधिकारों की बुनियाद है। हालिया घटनाओं और आंकड़ों के मद्देनज़र यह स्पष्ट होता है कि विशेष रूप से बिहार जैसे राज्यों में नागरिक पंजीकरण की कवरेज और दस्तावेज़ीय प्रमाणों की स्थिति अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है। इसके साथ ही, मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर विवाद भी उभर रहे हैं।

बिहार में जन्म पंजीकरण की ऐतिहासिक स्थिति

2000 में:

  • बिहार में जन्म पंजीकरण का स्तर केवल 3.7% था।
  • राष्ट्रीय औसत था 56.2%
  • देशभर में कुल 1.29 करोड़ जन्म पंजीकृत हुए।

2004-2005 में:

  • बिहार: 2004 में 11.5%, 2005 में 16.9%
  • राष्ट्रीय औसत: 2004 में 60.4%, 2005 में 62.5%
  • यदि बिहार और उत्तर प्रदेश को हटाया जाए, तो 2005 में राष्ट्रीय औसत 78.3% तक पहुंचता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • CRS (Civil Registration System): जन्म-मृत्यु की वास्तविक पंजीकरण संख्या को दर्शाता है।
  • SRS (Sample Registration System): देश का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय सर्वेक्षण, जो अनुमानित जन्म और मृत्यु दर देता है।
  • 2022 में: पूरे देश में 2.54 करोड़ जन्म पंजीकृत हुए।
  • बिहार में 2022 में: 71% जन्म 21 दिनों के भीतर पंजीकृत हुए — यानी यह राज्य 50–80% श्रेणी में आता है।

डिजिटल प्रमाणपत्र और कानूनी प्रावधान

  • 2023 संशोधन: जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 में बदलाव के अनुसार 1 अक्टूबर 2023 के बाद जन्मे व्यक्तियों के लिए डिजिटल जन्म प्रमाणपत्र अनिवार्य है — स्कूलों में दाखिले और मतदाता सूची अपडेट के लिए।
  • 21 दिन की सीमा: जन्म/मृत्यु की जानकारी 21 दिनों के भीतर पंजीकृत करना अनिवार्य है। इसमें देरी पर जुर्माना या दस्तावेज़ी बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।

विशेष पुनरीक्षण (SIR) और विवाद

  • SIR 2024: बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण के तहत 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे व्यक्तियों को 11 दस्तावेज़ों में से कोई एक प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
  • 77.2 मिलियन मतदाता 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार से थे। इनमें से 4.96 करोड़ को पुराने (2003) रोल से सत्यापन की छूट दी गई है।

विवाद और विरोध:

  • विपक्ष का आरोप: यह NRC को पीछे के दरवाज़े से लाने की कोशिश है।
  • AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सवाल उठाया कि:

    • गैरकानूनी प्रवासियों की संख्या क्या है?
    • BLO दस्तावेज़ों की जांच कैसे करेगा?
    • नागरिकों को सरकार की विफलता का दंड क्यों भुगतना पड़े?

निष्कर्ष

बिहार में जन्म पंजीकरण में ऐतिहासिक रूप से सुधार हो रहा है, लेकिन यह अब भी राष्ट्रीय औसत से पीछे है। विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया में दस्तावेज़ों की मांग ने वैध नागरिकों में भी चिंता बढ़ा दी है। जन्म प्रमाणपत्रों की समयबद्ध और व्यापक उपलब्धता न केवल नागरिक पहचान का आधार है, बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी की भी गारंटी है। इसलिए, सरकार को पंजीकरण व्यवस्था को सरल, डिजिटल, और जनसुलभ बनाने की दिशा में और कदम उठाने होंगे, ताकि कोई भी नागरिक अपने मौलिक अधिकार से वंचित न रह जाए।

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