बिना सुरक्षा उपकरणों के काम कर रहे सफाईकर्मियों की मौतें: NAMASTE योजना और हकीकत की दूरी

हाल ही में संसद में प्रस्तुत एक सामाजिक ऑडिट रिपोर्ट ने भारत में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हो रही मौतों की भयावह स्थिति को उजागर किया है। देशभर में 2022 और 2023 के दौरान 150 सफाईकर्मियों की मौत हुई, जिनमें से 90% से अधिक के पास कोई भी व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) नहीं था। यह स्थिति तब सामने आई है जब केंद्र सरकार ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग’ को समाप्त मानते हुए अब ‘खतरनाक सफाई’ पर ध्यान केंद्रित करने की बात कर रही है।

सामाजिक ऑडिट की प्रमुख बातें

  • सामाजिक न्याय मंत्रालय द्वारा सितंबर 2023 में कराई गई इस सामाजिक ऑडिट में 8 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 17 जिलों में हुई 54 मौतों की जांच की गई।
  • इनमें से 49 मामलों में सफाईकर्मी कोई भी सुरक्षा उपकरण नहीं पहने थे
  • केवल 1 मामले में ही दस्ताने और गमबूट्स दोनों दिए गए थे; बाकी अधिकांश मामलों में उपकरण उपलब्ध ही नहीं थे
  • 45 मामलों में यह पाया गया कि कार्य कराने वाली एजेंसी के पास कोई मशीनी उपकरण या सुरक्षा तैयारी नहीं थी।

भर्ती और सहमति में भी खामियां

  • 38 मामलों में सफाईकर्मियों को व्यक्तिगत रूप से ठेका देकर काम पर लगाया गया था, जिसमें न तो उन्हें जोखिमों के बारे में बताया गया और न ही विधिवत सहमति ली गई।
  • केवल 18 मामलों में लिखित सहमति ली गई, लेकिन जोखिम के बारे में कोई काउंसलिंग नहीं दी गई
  • सिर्फ तीन जिलों (चेन्नई, कांचीपुरम, सातारा) में ही मृत्यु के बाद कोई जागरूकता अभियान चलाया गया — और वह भी आंशिक रूप से।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • NAMASTE योजना (2023): केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई योजना, जिसका उद्देश्य सीवर/सेप्टिक टैंक सफाईकर्मियों और कचरा बीनने वालों की सुरक्षा और पुनर्वास है।
  • योजना के तहत अब तक 84,902 सफाईकर्मियों की पहचान की गई है।
  • इनमें से लगभग आधे को ही PPE किट और सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराए गए हैं।
  • केवल ओडिशा राज्य ने ‘गरिमा’ योजना के तहत 100% कवर किया है।
  • ₹20 करोड़ की पूंजी सब्सिडी अब तक 707 सफाईकर्मियों को दी जा चुकी है।

मैनुअल स्कैवेंजिंग या खतरनाक सफाई?

सरकार यह कह चुकी है कि भारत में ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग’ समाप्त हो चुकी है, लेकिन यह रिपोर्ट बताती है कि ‘खतरनाक सफाई’ की नई चुनौती पहले से कहीं अधिक गंभीर हो चुकी है। मशीनों की जगह आज भी इंसानों को जानलेवा परिस्थितियों में उतारा जा रहा है।

निष्कर्ष: योजना बनाम ज़मीनी हकीकत

NAMASTE योजना, कार्यशालाओं और फंडिंग के बावजूद, ग्राउंड लेवल पर सुरक्षा और प्रशिक्षण की भारी कमी देखी जा रही है। 1,000 से अधिक वर्कशॉप्स आयोजित की गईं, लेकिन मौतों के बाद ही जागरूकता अभियान चलाए गए। यह दर्शाता है कि नीति और अमल के बीच अब भी लंबी दूरी है।
यदि सरकार वास्तव में सफाईकर्मियों की जान की कीमत समझती है, तो PPE किट की 100% आपूर्ति, अनिवार्य मशीनीकरण, कानूनी सख्ती और नियमित सामाजिक ऑडिट जैसे कदमों को प्राथमिकता देनी होगी। यह सिर्फ एक सामाजिक सुरक्षा का विषय नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का मूल प्रश्न बन चुका है।

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