बढ़ती गर्मी और मानसिक स्वास्थ्य: क्या है “हीट एंग्ज़ायटी” और क्यों बन रही है गंभीर समस्या?

गर्मी केवल हमारे शरीर को ही नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। हाल ही में विशेषज्ञों ने इस पर प्रकाश डाला है कि अत्यधिक गर्मी के कारण चिंता, बेचैनी और मूड से जुड़ी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं, जिसे अब “हीट एंग्ज़ायटी” या “हीट स्ट्रेस” कहा जा रहा है।
क्या है “हीट एंग्ज़ायटी”?
“हीट एंग्ज़ायटी” का अर्थ है अत्यधिक गर्म मौसम या उच्च तापमान के कारण होने वाली चिंता, बेचैनी या मानसिक तनाव। जब शरीर लंबे समय तक गर्मी के संपर्क में रहता है, तो यह तनाव की स्थिति में आ जाता है। इस स्थिति में “फाइट या फ्लाइट” प्रतिक्रिया सक्रिय हो जाती है, जिससे एड्रेनालिन और कोर्टिसोल जैसे हार्मोन बढ़ जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति में चिड़चिड़ापन, नींद की गड़बड़ी, घबराहट और मूड स्विंग्स जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
डॉ. मुकेश बत्रा के अनुसार, 2025 की गर्मी के दौरान उनकी क्लीनिक में सौ से अधिक युवाओं में चिंता और मूड से संबंधित मानसिक समस्याएं सामने आईं।
हीट एंग्ज़ायटी के लक्षण
- अत्यधिक पसीना आना
- तेज़ हृदयगति और चक्कर आना
- मतली, थकान या उलझन महसूस होना
- गर्म वातावरण में चिड़चिड़ापन और घबराहट
- सामाजिक मेलजोल या बाहर निकलने से परहेज़ करना
जिन लोगों को पहले से मानसिक समस्याएं हैं, उनके लिए गर्मी की स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। परंतु जिनका मानसिक स्वास्थ्य सामान्य रहता है, वे भी गर्मियों में भावनात्मक अस्थिरता या तनाव का अनुभव कर सकते हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत में मानसिक विकार 1990 से दोगुने हो चुके हैं और हर सातवां भारतीय इससे ग्रसित है।
- भारत में मानसिक स्वास्थ्य उपचार में 80% का अंतर है — यानी अधिकांश लोग इलाज से वंचित रहते हैं।
- लैंसेट के अनुसार, 2025 तक भारत में मानसिक रोगों का बोझ 23% बढ़ने की संभावना है।
- “हीट आइलैंड इफेक्ट” शहरी क्षेत्रों में गर्मी को अधिक समय तक बनाए रखता है, जिससे मानसिक तनाव बढ़ता है।
भारत में हीट एंग्ज़ायटी क्यों बढ़ रही है?
भारत जैसे निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMICs) में गर्म और आर्द्र जलवायु अधिक प्रचलित है। इन देशों में जनसंख्या घनी होने, ठंडक वाले स्थानों की कमी और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता से समस्या और गहराती है।
शहरों में “हीट आइलैंड इफेक्ट” — जहां इमारतें और सड़कें गर्मी को सोखकर वातावरण को और अधिक गर्म बनाती हैं — मानसिक स्वास्थ्य पर अतिरिक्त दबाव डालता है। इसके अलावा युवा पीढ़ी — जो पहले से डिजिटल ओवरलोड, शैक्षणिक दबाव और सामाजिक अलगाव से जूझ रही है — हीट एंग्ज़ायटी के प्रति और अधिक संवेदनशील होती जा रही है।
समाधान की दिशा
डॉक्टरों और विशेषज्ञों का मानना है कि मौसम और मानसिक स्वास्थ्य के बीच के संबंध को गंभीरता से समझना होगा। जैसे सर्दियों में “सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर” की पहचान की जाती है, वैसे ही अब गर्मियों की चरम स्थितियों से जुड़ी मानसिक समस्याओं को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
सरकारों और स्वास्थ्य नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे जलवायु परिवर्तन के मानसिक प्रभावों पर ध्यान दें और इससे निपटने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे में आवश्यक बदलाव करें।
“हीट एंग्ज़ायटी” अब एक अस्थायी परेशानी नहीं, बल्कि बदलते मौसम की स्थायी मानसिक छाया बनती जा रही है — जिसे जल्द पहचानना और प्रबंधन करना अनिवार्य है।