पृथ्वी को ठंडा करने की नई तकनीक: स्ट्रैटोस्फेरिक एरोसोल इंजेक्शन पर अध्ययन और विवाद

विश्व को जीवाश्म ईंधनों पर अपनी निर्भरता कम करने की आवश्यकता है, लेकिन युद्ध, गरीबी, बीमारी और महंगाई जैसे मुद्दों ने अक्सर जलवायु संरक्षण को पीछे धकेल दिया है। इस स्थिति में, कुछ वैज्ञानिकों ने पृथ्वी को सीधे ठंडा करने वाली तकनीकों पर ध्यान केंद्रित किया है, जिनमें से एक है स्ट्रैटोस्फेरिक एरोसोल इंजेक्शन (SAI)। यह तकनीक, हालांकि विवादास्पद है, पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाली सूर्य की रोशनी को कम करने के लिए वायुमंडल की उच्च परत में सूक्ष्म कणों को इंजेक्ट करने का प्रस्ताव रखती है।
ज्वालामुखी से प्रेरित तकनीक
SAI का विचार ज्वालामुखीय विस्फोटों से प्रेरित है, जो वायुमंडल में एरोसोल्स छोड़कर पृथ्वी को ठंडा करने में सहायक होते हैं। इसी आधार पर वैज्ञानिकों ने प्रस्ताव दिया है कि अगर इन कणों को नियंत्रित रूप से स्ट्रैटोस्फियर में छोड़ा जाए, तो पृथ्वी के तापमान में कमी लाई जा सकती है। यह प्रक्रिया मुख्यतः 20 किलोमीटर या उससे अधिक ऊँचाई पर की जाती है, विशेषकर विषुवतीय क्षेत्रों में, जहाँ स्ट्रैटोस्फियर की ऊँचाई अधिक होती है।
हालांकि, इस ऊँचाई तक पहुंचने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए विमानों की आवश्यकता होती है, जो समय और लागत दोनों के लिहाज से चुनौतीपूर्ण है।
कम ऊँचाई वाला विकल्प और नवीनतम अध्ययन
हाल ही में ‘अर्थ्स फ्यूचर’ पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कम ऊँचाई पर SAI को अंजाम देने की संभावना पर विचार किया है। इस दृष्टिकोण के तहत मौजूद विमानों का उपयोग करते हुए ध्रुवीय और उप-ध्रुवीय क्षेत्रों में 13 किलोमीटर की ऊँचाई से एरोसोल्स का छिड़काव करने का सुझाव दिया गया है। अध्ययन में बताया गया कि वसंत और गर्मियों के मौसम में 12 मिलियन टन सल्फर डाइऑक्साइड प्रतिवर्ष छिड़कने से पृथ्वी का तापमान लगभग 0.6ºC तक कम हो सकता है। यह मात्रा 1991 में माउंट पिनातुबो के ज्वालामुखीय विस्फोट से वातावरण में छोड़े गए एरोसोल्स के बराबर है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- स्ट्रैटोस्फेरिक एरोसोल इंजेक्शन (SAI) जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु प्रस्तावित एक सौर भू-इंजीनियरिंग तकनीक है।
- यह तकनीक ज्वालामुखीय विस्फोटों की प्राकृतिक प्रक्रिया से प्रेरित है, जो पृथ्वी को अस्थायी रूप से ठंडा कर देते हैं।
- SAI के लिए उच्च ऊंचाई पर विशेष विमान की आवश्यकता होती है, जिससे इसकी लागत और तकनीकी जटिलता बढ़ती है।
- कम ऊँचाई पर एरोसोल्स का छिड़काव करना तकनीकी रूप से सरल और सस्ता हो सकता है, लेकिन इसके लिए तीन गुना अधिक कणों की आवश्यकता होती है।
हालांकि यह तकनीक जलवायु संकट से निपटने में एक अस्थायी समाधान प्रस्तुत करती है, लेकिन इसके जोखिमों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इससे ओज़ोन परत की मरम्मत में देरी, अम्लीय वर्षा और वैश्विक स्तर पर भौगोलिक असंतुलन जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसके अलावा, इस तकनीक के वैश्विक प्रभावों के कारण यह राजनीतिक और सामाजिक विवादों का कारण भी बन सकती है। ऐसे में यह आवश्यक है कि कोई भी निर्णय लेने से पहले व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन और वैश्विक सहमति पर बल दिया जाए।