पाकिस्तान में फील्ड मार्शल असिम मुनीर की पदोन्नति: लोकतंत्र की राह या सैन्य वर्चस्व की वापसी?

पाकिस्तान के मौजूदा सेना प्रमुख जनरल सैयद असिम मुनीर को 20 मई 2025 को फील्ड मार्शल के सर्वोच्च सैन्य पद पर पदोन्नत किया गया। यह निर्णय संघीय कैबिनेट द्वारा पारित किया गया और इसे प्रधानमंत्री कार्यालय ने “देश की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा में असाधारण सेवा” के रूप में वर्णित किया। परंतु इस घोषणा के पीछे छिपा हुआ बड़ा सवाल यह है: क्या यह पदोन्नति वास्तव में सैन्य योग्यता की मान्यता है, या पाकिस्तान में सेना की सर्वोपरिता को और मजबूत करने की एक रणनीतिक चाल?
असिम मुनीर: जासूस से फील्ड मार्शल तक का सफर
जनरल असिम मुनीर का करियर सैन्य खुफिया के क्षेत्र में अत्यधिक सक्रिय और महत्वपूर्ण रहा है। वह इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) और मिलिट्री इंटेलिजेंस (MI) दोनों के प्रमुख रह चुके हैं—यह उपलब्धि बहुत कम अधिकारियों को मिली है। 1986 में सेना में कमीशन प्राप्त करने के बाद उन्होंने तेजी से रैंक और प्रभाव हासिल किया। 2022 में जब उन्हें सेना प्रमुख नियुक्त किया गया, तब यह निर्णय पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और तत्कालीन सत्ता प्रतिष्ठान के बीच टकराव का कारण भी बना।
मुनीर एक ऐसे जनरल माने जाते हैं जिनका झुकाव पारंपरिक लोकतांत्रिक संस्थाओं की अपेक्षा सैन्य व्यवस्था की केंद्रीकृत सोच की ओर अधिक है। उन्होंने अपने करियर में धार्मिक राष्ट्रवाद और कट्टर सैन्य अनुशासन को प्राथमिकता दी है।
फील्ड मार्शल की पदोन्नति: रणनीतिक या प्रतीकात्मक?
पाकिस्तान के इतिहास में फील्ड मार्शल का पद केवल एक बार—1959 में जनरल अयूब खान को—दिया गया था, जो बाद में राष्ट्रपति भी बने। अब जब पाकिस्तान राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता से जूझ रहा है, सेना प्रमुख को इस पद पर पदोन्नत करना सत्ता की सच्ची प्रकृति को उजागर करता है: पाकिस्तान में वास्तविक सत्ता का केंद्र अब भी रावलपिंडी स्थित जीएचक्यू है, न कि इस्लामाबाद की संसद।
भारत-पाक संघर्ष और सैन्य नेतृत्व का महिमामंडन
हालिया भारत-पाक टकराव की पृष्ठभूमि में यह पदोन्नति और भी राजनीतिक प्रतीत होती है। पाकिस्तान ने संघर्ष को एक “रणनीतिक सफलता” के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक इसे सीमित और आंशिक सैन्य तनाव मानते हैं जिसमें निर्णायक जीत का कोई प्रमाण नहीं है। इसके बावजूद, मुनीर की छवि को ‘देश के रक्षक’ के रूप में प्रस्तुत कर फील्ड मार्शल की पदवी दी गई—जो कहीं न कहीं आंतरिक स्थिरता बनाए रखने और राष्ट्रीय गौरव का नैरेटिव खड़ा करने का प्रयास भी है।
सेना बनाम लोकतंत्र: पाकिस्तान का स्थायी द्वंद्व
भारत जैसे लोकतंत्र में सेना राजनीतिक फैसलों से दूरी बनाए रखती है, वहीं पाकिस्तान में सेना वर्षों से ‘छाया सरकार’ की भूमिका निभाती आ रही है। इमरान खान की सत्ता से विदाई, विपक्ष पर मुकदमे, मीडिया सेंसरशिप और न्यायपालिका पर दबाव—ये सभी घटनाएं दर्शाती हैं कि पाकिस्तान में लोकतंत्र केवल दिखावे की संस्था रह गई है। जनरल मुनीर की पदोन्नति इसे और स्पष्ट करती है कि असली नियंत्रण अब भी सेना के पास है।
भारत के लिए चेतावनी
भारत को इस घटनाक्रम को केवल पड़ोसी देश की आंतरिक बात समझकर टालना नहीं चाहिए। एक आक्रामक और रणनीतिक सोच वाला फील्ड मार्शल, जिसकी प्राथमिकताएं कूटनीति की बजाय सैन्य प्रदर्शन पर आधारित हों, क्षेत्रीय स्थिरता के लिए चुनौती बन सकता है। पाकिस्तान में सेना का वर्चस्व जितना मजबूत होगा, दो देशों के बीच शांति प्रयास उतने ही कमजोर होते जाएंगे।