पाकिस्तान को कश्मीर क्यों चाहिए?

पाकिस्तान को कश्मीर क्यों चाहिए?

पाकिस्तान को कश्मीर क्यों चाहिए, यह एक जटिल और बहुआयामी प्रश्न है, जिसके पीछे ऐतिहासिक, राजनीतिक, धार्मिक, भू-रणनीतिक और भावनात्मक कारण हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

कश्मीर का मुद्दा 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन से शुरू हुआ। ब्रिटिश भारत के बंटवारे के समय, रियासतों को यह विकल्प दिया गया था कि वे भारत या पाकिस्तान में शामिल हों, या स्वतंत्र रहें। जम्मू-कश्मीर के हिंदू शासक महाराजा हरि सिंह ने शुरू में स्वतंत्र रहने का फैसला किया। हालांकि, पाकिस्तान समर्थित कबायली हमले के बाद, महाराजा ने भारत के साथ विलय पत्र (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर किए, जिसके बदले भारत ने सैन्य सहायता प्रदान की। इस घटना ने कश्मीर को दोनों देशों के बीच विवाद का केंद्र बना दिया। पाकिस्तान का मानना है कि कश्मीर, जहां बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी थी, स्वाभाविक रूप से उसका हिस्सा होना चाहिए था, क्योंकि विभाजन का आधार धार्मिक जनसांख्यिकी थी।

धार्मिक और वैचारिक कारण

पाकिस्तान की स्थापना एक मुस्लिम राष्ट्र के रूप में हुई थी, और कश्मीर की मुस्लिम-बहुल आबादी को पाकिस्तान अपनी राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा मानता है। पाकिस्तान के नेताओं और जनता का एक बड़ा वर्ग कश्मीर को “पाकिस्तान की अधूरी कहानी” के रूप में देखता है। उनकी नजर में, कश्मीर का पाकिस्तान में शामिल न होना इस्लामी एकता और द्विराष्ट्र सिद्धांत के खिलाफ है। यह भावना पाकिस्तान की राजनीति और जनमानस में गहरे तक समाई हुई है, और इसे समय-समय पर धार्मिक और राष्ट्रवादी उफान के साथ जोड़ा जाता है।

भू-रणनीतिक महत्व

कश्मीर की भौगोलिक स्थिति इसे दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण बनाती है। कश्मीर भारत, पाकिस्तान, और चीन की सीमाओं से घिरा हुआ है, और यह मध्य एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में देखा जाता है। कश्मीर में बहने वाली नदियाँ, जैसे सिंधु, झेलम, और चेनाब, पाकिस्तान की कृषि और जल आपूर्ति के लिए महत्वपूर्ण हैं। पाकिस्तान का मानना है कि कश्मीर पर नियंत्रण उसे जल संसाधनों पर प्रभुत्व देगा, जो उसकी अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, कश्मीर का सामरिक महत्व सैन्य दृष्टिकोण से भी अहम है, क्योंकि यह दोनों देशों के बीच एक बफर क्षेत्र की तरह काम करता है।

राजनीतिक और आंतरिक कारण

पाकिस्तान में कश्मीर का मुद्दा आंतरिक राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह मुद्दा पाकिस्तानी नेताओं और सेना के लिए एक रैली पॉइंट रहा है, जिसके जरिए वे जनता का समर्थन हासिल करते हैं। कश्मीर को “आजादी” या “पाकिस्तान का हिस्सा” बनाने का नारा राष्ट्रवादी भावनाओं को उभारता है और देश के भीतर एकता का प्रतीक बनता है। कई बार, जब पाकिस्तान में आंतरिक संकट (जैसे आर्थिक या राजनीतिक अस्थिरता) बढ़ता है, तो कश्मीर के मुद्दे को उछालकर जनता का ध्यान बांटा जाता है। पाकिस्तानी सेना, जो देश की राजनीति में प्रभावशाली है, कश्मीर को अपनी प्रासंगिकता और बजट के औचित्य के लिए भी इस्तेमाल करती है।

अंतरराष्ट्रीय आयाम

पाकिस्तान ने कश्मीर के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाकर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की है। वह इसे मानवाधिकारों और आत्मनिर्णय के सवाल के रूप में पेश करता है। संयुक्त राष्ट्र के 1948 के प्रस्ताव, जिसमें कश्मीर में जनमत संग्रह की बात थी, को पाकिस्तान अपने दावे के समर्थन में बार-बार उठाता है। हालांकि, भारत का कहना है कि यह प्रस्ताव अब अप्रासंगिक है, क्योंकि उस समय की परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं। पाकिस्तान की यह रणनीति भी कश्मीर को अपने एजेंडे में बनाए रखने का हिस्सा है।

निष्कर्ष

पाकिस्तान के लिए कश्मीर न केवल एक क्षेत्रीय विवाद है, बल्कि उसकी राष्ट्रीय पहचान, सुरक्षा, और राजनीतिक रणनीति का एक अभिन्न हिस्सा है। ऐतिहासिक दावे, धार्मिक भावनाएँ, भू-रणनीतिक महत्व, और आंतरिक राजनीति सभी मिलकर कश्मीर को पाकिस्तान के लिए एक जुनून बना देते हैं। हालांकि, यह विवाद दोनों देशों के बीच तनाव का प्रमुख कारण बना हुआ है, और इसका समाधान निकट भविष्य में संभावना कम दिखता है।

Originally written on April 25, 2025 and last modified on May 14, 2025.

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