पाइक विद्रोह को पाठ्यपुस्तक से हटाना ‘अपमानजनक’: नवीन पटनायक की नाराजगी और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

पूर्व ओडिशा मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने हाल ही में NCERT की कक्षा 8 की नवीनतम इतिहास पाठ्यपुस्तक में पाइक विद्रोह (Paika Rebellion) को शामिल न किए जाने पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इसे ओडिशा के वीर पाइक योद्धाओं का “अपमान” बताते हुए तत्काल सुधार की मांग की है। वहीं, NCERT ने स्पष्ट किया है कि यह विद्रोह आगामी द्वितीय खंड में सम्मिलित किया जाएगा, जो सितंबर-अक्टूबर में प्रकाशित होगा।

कौन थे पाइक और क्यों हुआ विद्रोह?

पाइक (Paikas) ओडिशा के गजपति राजाओं द्वारा 16वीं सदी से नियुक्त पैदल सैन्य रक्षक थे। ये योद्धा युद्धकाल में राजा की सेवा करते थे और शांति काल में खेती के लिए करमुक्त भूमि (निष्कर जागीर) प्राप्त करते थे। 1803 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने ओडिशा पर कब्जा किया, तो पारंपरिक व्यवस्थाएं ध्वस्त होने लगीं। 1817 में जब ब्रिटिशों ने इनकी जागीरें छीन लीं और कर प्रणाली बदल दी, तो व्यापक असंतोष पैदा हुआ।

पाइक विद्रोह की शुरुआत

1817 में गुमुसर से खोंड आदिवासियों का एक समूह खुरदा की ओर बढ़ा और इनके साथ पाइक योद्धा भी शामिल हुए। इनका नेतृत्व बक्शी जगबन्धु विद्याधर महापात्र भ्रामरबर राय ने किया, जो खुरदा के राजा के पूर्व सेनापति थे। इस सेना ने बनपुर पुलिस थाने पर हमला किया, सरकारी इमारतों को जलाया, खजाना लूटा और कई अंग्रेज अधिकारियों की हत्या की। हालांकि, अंग्रेजों ने धीरे-धीरे इस विद्रोह को कुचल दिया और बक्शी जगबन्धु 1825 तक फरार रहे।

विद्रोह के राजनीतिक और सांस्कृतिक निहितार्थ

पाइक विद्रोह को ओडिशा में लंबे समय से “प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” के रूप में मान्यता दिलाने की मांग की जाती रही है। 2017 में विद्रोह की 200वीं वर्षगांठ पर बीजेडी सरकार ने केंद्र से इसे औपचारिक रूप से मान्यता देने की मांग की थी। हालांकि केंद्र ने इसे केवल “ब्रिटिश विरोधी आरंभिक जन विद्रोहों में से एक” के रूप में स्वीकार किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2017 में पाइक योद्धाओं के वंशजों को सम्मानित किया और 2019 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बारूनेई पहाड़ियों में पाइक स्मारक की आधारशिला रखी थी। वर्तमान मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने पाइक अकादमी और स्मारक को शीघ्र स्थापित करने की घोषणा की है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • पाइक विद्रोह 1817 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ खुरदा (ओडिशा) में हुआ था।
  • इसका नेतृत्व बक्शी जगबन्धु ने किया था, जो खुरदा के राजा के सेनापति थे।
  • विद्रोह को “प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” घोषित करने की मांग अब तक केंद्र द्वारा स्वीकार नहीं की गई है।
  • NCERT ने 2021 में विद्रोह को कक्षा 8 की इतिहास पुस्तक में सम्मिलित करने का आश्वासन दिया था।
  • पाइक विद्रोह को ओडिशा की उप-राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक माना जाता है।

पाइक विद्रोह का इतिहास केवल एक क्षेत्रीय संघर्ष नहीं, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम की जड़ों में छिपी चेतना का प्रमाण है। पाठ्यपुस्तकों में इसका समावेश न केवल ऐतिहासिक न्याय है, बल्कि सांस्कृतिक स्वाभिमान को भी पुनर्स्थापित करता है। NCERT के स्पष्टीकरण के बावजूद यह विवाद ओडिशा की राजनीतिक और सामाजिक चेतना में गहराई से जुड़ा हुआ है।

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