पहली बार सार्वजनिक प्रदर्शनी के लिए तैयार बुद्ध के पिपरहवा अवशेष: 2,300 साल पुरानी धरोहर

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में स्थित पिपरहवा (प्राचीन कपिलवस्तु) से 1898 में हुई खुदाई में मिले भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेषों को पहली बार सार्वजनिक प्रदर्शनी में लाया जा रहा है। ये अवशेष 2,300 वर्ष से अधिक पुराने माने जाते हैं और अब तक कोलकाता के इंडियन म्यूज़ियम के सुरक्षित तहखानों में संरक्षित थे।

पिपरहवा: कपिलवस्तु से जुड़ी ऐतिहासिक खोज

जनवरी 1898 में, ब्रिटिश प्रबंधक के पुत्र विलियम क्लैकस्टन पेप्पे ने बर्डपुर एस्टेट में खुदाई के दौरान 18 फीट गहराई में एक सैंडस्टोन कॉफर (पत्थर का संदूक) खोजा, जिसमें भगवान बुद्ध की हड्डियों और भस्म सहित पाँच कीमती कलश और 221 रत्न-जवाहरात शामिल थे। इन अवशेषों को शाक्य वंश के सुकृति भाइयों और उनके परिवार द्वारा अर्पित बताया गया है, जैसा कि ब्राह्मी लिपि में एक लेख में खुदा हुआ है।

एक क्रिस्टल कलश, जिसकी लंबाई 10 सेमी और चौड़ाई 5 सेमी है, मछली के आकार के सुनहरे मुण्ड से युक्त है और इसमें रत्न और सोने की पत्तियाँ जड़ी हुई हैं। ये सभी वस्तुएं भगवान बुद्ध के जीवन और उनके परिवार के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाती हैं।

इंडियन म्यूज़ियम और विरासत की रक्षा

इंडियन म्यूज़ियम, कोलकाता के निदेशक अरिजीत दत्ता चौधरी के अनुसार, ये अवशेष कभी प्रदर्शित नहीं किए गए हैं और इन्हें ‘AA श्रेणी की प्राचीन वस्तुएं’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है—जिसका अर्थ है इनका अत्यधिक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व। इन्हें अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार संरक्षित किया जाता है।

हाल ही में जब हॉन्गकॉन्ग की सोथबीज नीलामी संस्था द्वारा पेप्पे के परिवार के पास रखे गए कुछ अवशेषों की नीलामी की घोषणा हुई, तब भारत सरकार ने कानूनी नोटिस भेजकर इसे रुकवाया और उन वस्तुओं को भारत वापस लाने की मांग की।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • पिपरहवा को भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़ा प्राचीन कपिलवस्तु माना जाता है, जहाँ उनका बाल्यकाल बीता।
  • खुदाई के दौरान मिला ब्राह्मी लिपि में शिलालेख भारत में बुद्ध से संबंधित सबसे पुराने प्रमाणों में से एक है।
  • पिपरहवा अवशेषों को 1899 में इंडियन म्यूज़ियम को सौंपा गया था और इन्हें आज तक सार्वजनिक रूप से नहीं दिखाया गया।
  • 1970 यूनेस्को कन्वेंशन के तहत भारत ऐसे सांस्कृतिक धरोहरों की वापसी का दावा करता है जो औपनिवेशिक काल में देश से बाहर ले जाए गए थे।
  • भारत का Antiquities and Art Treasures Act, 1972 देश से बाहर कला-संपदा की बिक्री और निर्यात को प्रतिबंधित करता है, लेकिन पेप्पे की खुदाई इस अधिनियम से पहले की थी।

संस्कृति मंत्रालय द्वारा इन पवित्र अवशेषों की सार्वजनिक प्रदर्शनी की योजना न केवल भारत की समृद्ध बौद्ध विरासत को सम्मान देती है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर सांस्कृतिक उत्तराधिकार के पुनरुद्धार का भी प्रतीक है। यह प्रदर्शनी न केवल इतिहास प्रेमियों के लिए एक दुर्लभ अवसर होगी, बल्कि भारतीय संस्कृति की अस्मिता के लिए एक मजबूत संदेश भी।

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