पश्चिमी घाट में पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA) का निर्धारण: तीन राज्यों के लिए अलग अधिसूचना पर विचार

पश्चिमी घाट में पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र (ESA) का निर्धारण: तीन राज्यों के लिए अलग अधिसूचना पर विचार

भारत के जैव विविधता से समृद्ध और पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्वतीय क्षेत्र पश्चिमी घाट को संरक्षण प्रदान करने की दिशा में केंद्र सरकार के विशेषज्ञ पैनल ने नई पहल की है। गुजरात, महाराष्ट्र और गोवा में इकोलॉजिकल सेंसिटिव एरिया (ESA) के निर्धारण को अंतिम रूप देने पर विचार चल रहा है, और संभावना है कि इन तीन राज्यों के लिए अलग-अलग अधिसूचना जारी की जा सकती है।

क्या है ESA और क्यों है इसका महत्व?

ESA (Ecologically Sensitive Area) वे क्षेत्र होते हैं जिन्हें पर्यावरणीय कारणों से विशेष संरक्षण की आवश्यकता होती है। पश्चिमी घाट जैविक विविधता, वन्य जीवन और जल संसाधनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। हाल ही में वायनाड (केरल) में हुई भूस्खलन त्रासदी, जिसमें 200 से अधिक लोग मारे गए, ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है।

अब तक की प्रक्रिया

  • 2011 में माधव गाडगिल समिति ने पूरे पश्चिमी घाट को ईएसए घोषित करने की सिफारिश की थी, जिसे राजनीतिक विरोध के कारण अमल में नहीं लाया गया।
  • इसके बाद 2013 में के. कस्तूरीरंगन समिति बनी, जिसने पश्चिमी घाट के 56,825 वर्ग किमी क्षेत्र को ESA घोषित करने की अनुशंसा की।
  • 2014 में पहली ड्राफ्ट अधिसूचना आई, लेकिन अब तक छह बार इसका ड्राफ्ट जारी किया जा चुका है — अंतिम बार 31 जुलाई को।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • पश्चिमी घाट 6 राज्यों से होकर गुजरता है: गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु।
  • कस्तूरीरंगन रिपोर्ट के अनुसार ESA क्षेत्र:

    • गुजरात: 449 वर्ग किमी
    • महाराष्ट्र: 17,340 वर्ग किमी
    • गोवा: 1,461 वर्ग किमी
  • महाराष्ट्र ने हाल ही में इसे घटाकर 15,359.49 वर्ग किमी करने की मांग की है।

तीन राज्यों के लिए अलग अधिसूचना क्यों?

  • गुजरात: सबसे छोटा ESA क्षेत्र, सूचनाएं संपूर्ण और स्पष्ट हैं।
  • महाराष्ट्र: समय पर सर्वेक्षण और सलाह-मशविरा किया गया।
  • गोवा: आवश्यक जानकारी दे दी गई है।

इसके विपरीत, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु से अभी और जानकारी मांगी गई है। विशेषकर कर्नाटक सरकार ने सार्वजनिक रूप से कस्तूरीरंगन रिपोर्ट के खिलाफ बयान दिया है।

समिति की रणनीति

विशेषज्ञ पैनल, जिसकी अध्यक्षता संजय कुमार कर रहे हैं, का मुख्य उद्देश्य है:

  • पारिस्थितिक निरंतरता को बनाए रखना।
  • स्थानीय लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव न हो।
  • कानूनी समीक्षा में भी यह अधिसूचना टिक सके।
  • राज्यों को प्रोत्साहन राशि देने की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं ताकि वे असंतुलन महसूस न करें।

निष्कर्ष

पश्चिमी घाट जैसे संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्र में विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाना अत्यावश्यक है। यदि तीन राज्यों के लिए अलग अधिसूचना जारी होती है, तो यह नीति निर्धारण में लचीलापन लाएगा और बाकी राज्यों के लिए एक रूपरेखा तैयार करेगा। हालांकि, इस प्रक्रिया में सबसे बड़ी चुनौती राजनीतिक सहमति और स्थायी संरक्षण की भावना को एक साथ साधने की होगी। अब देखना यह होगा कि इस बार 13 वर्षों से लटके इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर कोई ठोस निर्णय सामने आता है या नहीं।

Originally written on July 1, 2025 and last modified on July 1, 2025.

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