नैनोप्लास्टिक का खतरनाक असर: ई. कोलाई जैसे रोगाणुओं की संक्रामकता भी बढ़ा रहे हैं

नैनोप्लास्टिक—जो आकार में केवल धुएं के कण जितना छोटा होता है—के प्रभाव अब केवल पर्यावरणीय नहीं रहे, बल्कि हमारे स्वास्थ्य पर भी गंभीर खतरे पैदा कर रहे हैं। अब एक नई स्टडी में यह सामने आया है कि ये नैनोप्लास्टिक केवल स्वयं में ही खतरनाक नहीं हैं, बल्कि ये खाद्यजन्य रोगाणु ई. कोलाई को और अधिक विषैला बना सकते हैं।

नैनोप्लास्टिक और ई. कोलाई के बीच खतरनाक रिश्ता

ई. कोलाई बैक्टीरिया की बाहरी सतह पर ऋणात्मक (negative) चार्ज होता है। जब यह सकारात्मक (positive) चार्ज वाले नैनोप्लास्टिक कणों के संपर्क में आता है, तो उससे बैक्टीरिया पर तनाव बढ़ता है और वह Shiga-जैसे विषाक्त प्रोटीन अधिक मात्रा में उत्पन्न करने लगता है। यही प्रोटीन बीमारियों का कारण बनते हैं।
यह अध्ययन अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनोई, अर्बाना-शैंपेन द्वारा किया गया और Journal of Nanobiotechnology में प्रकाशित हुआ है। पहले के अध्ययन मुख्य रूप से गैर-रोगजनक बैक्टीरिया और तैरते हुए कोशिकाओं पर केंद्रित थे, जबकि इस नई स्टडी में रोगजनक ई. कोलाई और बायोफिल्म—जहां बैक्टीरिया एक सतह पर चिपक कर सामूहिक रूप से रहते हैं—दोनों पर शोध किया गया।

अध्ययन की प्रक्रिया

शोधकर्ताओं ने एक रिफैम्पिसिन-प्रतिरोधी ई. कोलाई स्ट्रेन को तीन तरह के नैनोप्लास्टिक (सकारात्मक, नकारात्मक और तटस्थ चार्ज वाले) के संपर्क में रखा। उन्होंने बैक्टीरिया को पोषक माध्यम (LB broth) और ऐगर प्लेटों पर उगाया और 7 व 15 दिन के अंतराल पर उनके विकास का अवलोकन किया।
शोध के लिए एक पर्यावरणीय स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप (ESEM) का प्रयोग किया गया, जिससे “गीले” सैंपल को बिना अधिक तैयारी के देखा जा सकता है। इसके अलावा, बायोफिल्म में प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट की मात्रा और ऑक्सीडेटिव तनाव का भी विश्लेषण किया गया।

प्रमुख निष्कर्ष

  • सतही चार्ज वाले नैनोप्लास्टिक से बैक्टीरिया पर तनाव बढ़ा और प्रारंभिक अवस्था में उनकी वृद्धि रुकी, लेकिन कुछ कोशिकाएं उस तनाव को पार कर जीवित रहीं और आगे बढ़ीं।
  • RNA में बदलाव देखा गया, जिससे यह संकेत मिला कि बैक्टीरिया अपने जीन को बदल कर विषैली और रोगजनक बनने लगे।
  • बायोफिल्म में प्रोटीन उत्पादन और जीन ट्रांसफर की दर बढ़ गई, जिससे बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक प्रतिरोध विकसित होने की संभावना भी बढ़ गई।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • नैनोप्लास्टिक: 1 माइक्रोन से छोटे प्लास्टिक कण, जो वायुमंडल, जल स्रोतों और मानव शरीर तक में पाए जाते हैं।
  • बायोफिल्म: बैक्टीरिया की वह संरचना जहां वे सतह से चिपक कर एकत्रित रहते हैं और आपसी जीन का आदान-प्रदान करते हैं।
  • शिगा टॉक्सिन: ई. कोलाई द्वारा उत्पन्न विषैला प्रोटीन जो गंभीर आंतों की बीमारी का कारण बनता है।
  • ऑक्सीडेटिव तनाव: वह स्थिति जिसमें कोशिकाएं ऑक्सीजन की अत्यधिक मात्रा से क्षतिग्रस्त होती हैं। इससे बचने के लिए बैक्टीरिया ‘कैटालेज’ एंजाइम बनाते हैं।
  • HEM (Horizontal Gene Transfer): वह प्रक्रिया जिसमें एक बैक्टीरिया अपने जीन को अन्य बैक्टीरिया में स्थानांतरित करता है, जिससे प्रतिरोध क्षमता बढ़ती है।

यह अध्ययन इस ओर इशारा करता है कि नैनोप्लास्टिक का प्रभाव न केवल पर्यावरणीय है, बल्कि यह रोगजनक बैक्टीरिया की गतिविधि को भी तीव्र कर सकता है, जिससे बीमारियों की गंभीरता बढ़ सकती है। इसके चलते मानव स्वास्थ्य पर खतरे और भी बढ़ गए हैं और यह अब नीतिगत कार्रवाई और जन-जागरूकता की मांग करता है।

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