नील नदी पर बना इथियोपिया का मेगा डैम: ऊर्जा विकास बनाम पारिस्थितिकी संकट

ग्रैंड इथियोपियन रेनेसाँ डैम (GERD) का निर्माण पूरा होने से अफ्रीका की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना पर एक बार फिर विवाद भड़क उठा है। इथियोपिया जहां इसे स्वच्छ ऊर्जा और राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक मान रहा है, वहीं मिस्र और सूडान इसे अपने जलाधिकार और खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बता रहे हैं। यह विवाद ऊर्जा न्याय और पारिस्थितिकीय न्याय के बीच गहरे टकराव को उजागर करता है।

क्यों है GERD विवादास्पद?

GERD परियोजना, जिसकी जलधारण क्षमता 74 अरब घन मीटर है, 6,000 मेगावॉट से अधिक बिजली उत्पादन करेगी और इथियोपिया की ऊर्जा क्षमता को दोगुना कर देगी। प्रधानमंत्री अबी अहमद इसे गरीबी उन्मूलन और अफ्रीका में बिजली निर्यात के साधन के रूप में देख रहे हैं।
लेकिन मिस्र और सूडान की चिंता यह है कि सूखे के मौसम में डैम के जल भंडारण से नील नदी में पानी का बहाव घटेगा, जिससे खाद्य उत्पादन, सिंचाई और लाखों लोगों की आजीविका पर असर पड़ेगा। मिस्र के राष्ट्रपति अल-सीसी ने चेतावनी दी कि “हमारी जल की एक बूंद भी न छुई जाए”।

किसानों और स्थानीय समुदायों की आवाज

इस विवाद में केवल सरकारें ही नहीं, बल्कि नील बेसिन के किसान, मछुआरे और ग्रामीण समुदाय भी मुखर हो रहे हैं। मिस्र के फैयूम कस्बे के किसान मखलूफ कासेमा ने कहा कि “इस डैम का निर्णय प्रभावित लोगों से बिना कोई परामर्श लिए लिया गया है।” ऐसे ही कई विरोध मिस्र, सूडान और अन्य नील बेसिन देशों में सामने आए हैं।

पारिस्थितिकीय जोखिम

विज्ञानियों और पर्यावरणविदों का कहना है कि इतनी बड़ी नदी को अवरुद्ध करने से जल प्रवाह, मछलियों के प्रवास और नदी की रासायनिक संरचना में बदलाव आएगा। इससे जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के पैटर्न अस्थिर हो रहे हैं और इससे डैम की दीर्घकालिक क्षमता पर भी सवाल उठ रहे हैं।

उप-सहारा कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय समीकरण

GERD के कारण कूटनीतिक खींचतान भी बढ़ी है। मिस्र और सूडान ने इथियोपिया के ‘एकतरफा’ कदमों का विरोध किया है, जबकि इथियोपिया ने नील बेसिन की नई साझेदारी संधि पर हस्ताक्षर कर लिए हैं, जिसमें मिस्र और सूडान शामिल नहीं हैं।
इस संघर्ष की जड़ें औपनिवेशिक काल के जल बंटवारे समझौतों (1929 और 1959) में हैं, जो लगभग पूरे नील जल पर मिस्र और सूडान को प्राथमिकता देते हैं। इथियोपिया और अन्य अपस्ट्रीम देशों ने इन संधियों की वैधता को खारिज किया है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • GERD अफ्रीका का सबसे बड़ा जलविद्युत डैम है, जिसकी क्षमता 6,000+ मेगावॉट है।
  • नील नदी पर इथियोपिया का योगदान 80% से अधिक है, लेकिन 1929-59 की संधियों में उसे कोई अधिकार नहीं दिया गया था।
  • नील बेसिन इनिशिएटिव 2023 में प्रभावी हुआ, लेकिन मिस्र और सूडान ने इसका अनुमोदन नहीं किया।
  • ट्रंप प्रशासन ने मध्यस्थता की पेशकश की थी, और जल समझौते में पारिस्थितिकीय और जलवायु तत्व जोड़ने की वकालत की जा रही है।

समाधान के संभावित रास्ते

राजनयिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने तीन प्रमुख सुझाव दिए हैं:

  1. नील बेसिन प्राधिकरण की स्थापना, जो साझा प्रबंधन, डेटा साझा करने और पर्यावरण निगरानी का कार्य करे।
  2. जल समझौतों में पारिस्थितिक लेखांकन — केवल जल मात्रा नहीं, बल्कि जैव विविधता, पारंपरिक जल उपयोग और पारिस्थितिकीय सीमा भी शामिल हों।
  3. साझा जलवायु अनुकूलन योजनाएं — जैसे सूखे से निपटने के समन्वित प्रोटोकॉल और कृषि नवाचार कार्यक्रम।

GERD विवाद आज की दुनिया में ऊर्जा और पारिस्थितिक संतुलन के बीच टकराव का एक जीवंत उदाहरण बन गया है। यह दर्शाता है कि ‘हरित’ ऊर्जा परियोजनाएं भी यदि समावेशी, न्यायपूर्ण और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से संतुलित न हों, तो वे दीर्घकालिक संकट का कारण बन सकती हैं।

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