दिल्ली में पहली बार कृत्रिम वर्षा के लिए उड़ानें होंगी, वायु प्रदूषण से राहत की नई कोशिश

देश की राजधानी दिल्ली, जो लंबे समय से अपने गंभीर वायु प्रदूषण के लिए बदनाम रही है, अब पहली बार “क्लाउड सीडिंग” यानी कृत्रिम वर्षा के जरिए इससे निपटने की दिशा में कदम बढ़ा रही है। यह ऐतिहासिक परियोजना 30 अगस्त से 10 सितंबर 2025 के बीच शुरू की जाएगी, जो पहले जुलाई में प्रस्तावित थी।
क्या है क्लाउड सीडिंग?
क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें बादलों में विशेष रसायनों — जैसे सिल्वर आयोडाइड, आयोडाइज्ड नमक और रॉक सॉल्ट — को मिलाया जाता है ताकि कृत्रिम वर्षा उत्पन्न की जा सके। इसका उद्देश्य सूखा, कम हिमपात या वायु प्रदूषण जैसी समस्याओं से निपटना होता है। यह प्रक्रिया हवाई जहाज़ों, रॉकेटों या ज़मीनी उपकरणों के जरिए की जाती है।
दिल्ली सरकार की यह परियोजना — “टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेशन एंड इवैल्युएशन ऑफ क्लाउड सीडिंग ऐज़ ऐन ऑल्टरनेटिव फॉर दिल्ली एनसीआर पॉल्यूशन मिटिगेशन” — ₹3.21 करोड़ की लागत से शुरू की जा रही है। इसमें पांच संशोधित सेसना विमान लगाए जाएंगे, जो उत्तर-पश्चिम और बाहरी दिल्ली के सीमित सुरक्षा वाले क्षेत्रों में 90 मिनट की उड़ानों के ज़रिए लगभग 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में क्लाउड सीडिंग करेंगे।
तारीख में बदलाव क्यों किया गया?
पहले यह प्रयास 4 से 11 जुलाई के बीच किया जाना था, लेकिन विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि इस अवधि में मानसून के बादलों की स्थिति क्लाउड सीडिंग के लिए उपयुक्त नहीं होगी। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे के परामर्श के बाद तारीख को अगस्त के अंत और सितंबर की शुरुआत में स्थानांतरित कर दिया गया।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- क्लाउड सीडिंग पहली बार 1940 के दशक में अमेरिका में परीक्षण के रूप में किया गया था।
- IIT कानपुर ने इस परियोजना के लिए क्लाउड सीडिंग मिश्रण तैयार किया है, जिसमें सिल्वर आयोडाइड नैनोपार्टिकल्स शामिल हैं।
- दिल्ली का औसत PM2.5 स्तर 2024-25 की सर्दियों में 175 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा।
- यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली की वायु प्रदूषण समस्या नागरिकों की औसत आयु को 11.9 वर्ष तक घटा रही है।
क्या यह उपाय प्रभावी होगा?
पर्यावरण विशेषज्ञ सुनील दहिया के अनुसार, क्लाउड सीडिंग एक अस्थायी समाधान है, दीर्घकालिक नहीं। जब तक वायु प्रदूषण के स्रोतों पर कार्रवाई नहीं की जाती, तब तक ऐसे उपाय स्थायी राहत नहीं दे सकते। उन्होंने सुझाव दिया कि यह प्रक्रिया त्योहारों के बाद या उच्च प्रदूषण के दिनों में लागू की जा सकती है, न कि मॉनसून में, जब नमी अधिक होती है।
हालांकि यह एक स्थायी समाधान नहीं हो सकता, फिर भी दिल्ली सरकार का यह प्रयास वायु प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए एक सराहनीय प्रयोग है। यदि यह पायलट सफल रहता है, तो यह न केवल भारत, बल्कि विश्वभर के प्रदूषित शहरों के लिए एक नई राह खोल सकता है।