दिल्ली में झुग्गी पुनर्वास: निजी भागीदारी से क्या बदलेगी तस्वीर?

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में झुग्गी झोपड़ियों की समस्या एक जटिल और पुरानी चुनौती रही है। लगभग 50 लाख लोग इन झुग्गियों में रहते हैं, जिनमें से 30 लाख की संख्या तो दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) के अनुसार ही है। हाल ही में उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना द्वारा गठित एक संयुक्त सरकारी-औद्योगिक टास्क फोर्स ने “हाउ टू रिवाइटलाइज़ दिल्ली” नामक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें सुझाव दिया गया है कि झुग्गी पुनर्वास को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल के तहत लागू किया जाए।
वर्तमान पुनर्वास नीति की स्थिति
2016 में लागू दिल्ली स्लम एंड झुग्गी झोपड़ी पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन नीति, 2015 के अंतर्गत इन-सिचू (मौजूदा स्थान पर) पुनर्वास को प्राथमिकता दी गई थी। इसके तहत झुग्गी में कम से कम 50 परिवार होने चाहिए, झुग्गी 2006 से पहले बसी हो, और निवास प्रमाण 2015 से पहले का हो। फिर भी, एक दशक में सिर्फ दो ही इन-सिचू परियोजनाएं पूरी हो पाई हैं: कालकाजी और अशोक विहार की अपार्टमेंट्स, जिनमें मात्र 3,301 फ्लैट ही झुग्गी निवासियों को आबंटित किए गए।
PPP मॉडल: अवधारणा और वास्तविकता
PPP मॉडल में सरकार निजी डेवलपर को झुग्गी की भूमि सौंपती है, जो उस पर पुनर्वास हाउसिंग बनाता है, साथ ही शेष भूमि पर व्यावसायिक या अन्य हाउसिंग प्रोजेक्ट तैयार करता है। इस मॉडल का उद्देश्य यह है कि डेवलपर को ‘फ्री सेल’ घटक से मुनाफा हो और वह झुग्गीवासियों के लिए आवास मुफ्त में बनाए। लेकिन 2007 से लागू इस नीति में अब तक केवल एक परियोजना — कठपुतली कॉलोनी — ही शुरू हो पाई है, और वह भी अधूरी है।
क्यों नहीं आकर्षित हो रहे डेवलपर?
विशेषज्ञों के अनुसार, दिल्ली में PPP मॉडल की असफलता के पीछे कई कारण हैं:
- डेवलपरों के लिए नोएडा और गुरुग्राम जैसे शहरों में निवेश ज्यादा लाभदायक है।
- पुनर्वास फ्लैटों की कमर्शियल बिक्री में कठिनाई — क्योंकि इन परियोजनाओं में झुग्गीवासी और खरीदार एक ही परिसर में रहते हैं।
- अधिकतर झुग्गियां बहुमूल्य भूमि पर हैं, लेकिन कानूनी विवाद, स्वामित्व अस्पष्टता, और पुनर्वास में देरी से निजी निवेशक हतोत्साहित होते हैं।
- परियोजनाओं में प्रारंभिक निवेश भारी होता है, जबकि व्यावसायिक घटक से लाभ बाद में मिलता है।
नीति में प्रस्तावित बदलाव
नीति में निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कई संशोधन प्रस्तावित हैं:
- फ्लोर एरिया रेशियो (FAR) को 400 से बढ़ाकर 500 किया गया है, जिससे डेवलपर अधिक फ्लैट बना सकेंगे।
- पुनर्वास और व्यावसायिक घटकों को अलग-अलग स्थलों पर विकसित करने की अनुमति।
- पुनर्वास के लिए आवश्यक न्यूनतम भूमि क्षेत्र को 60% से घटाकर 40% किया गया।
- 5 किमी की परिधि में परियोजनाओं को जोड़कर एक साथ विकसित करने की व्यवस्था।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- दिल्ली में कुल 675 झुग्गियां हैं, जिनमें 376 केंद्र सरकार की भूमि पर और 299 दिल्ली सरकार की भूमि पर स्थित हैं।
- दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (DUSIB) और दिल्ली राज्य औद्योगिक एवं आधारभूत संरचना विकास निगम (DSIIDC) मिलकर 52,584 फ्लैट बना रहे हैं।
- PPP मॉडल पर आधारित कठपुतली कॉलोनी परियोजना 2009 में शुरू हुई थी, लेकिन अब तक पूरी नहीं हो सकी है।
- PMAY-U (प्रधानमंत्री आवास योजना – शहरी) की ISSR (इन-सिचू स्लम पुनर्विकास) योजना अब बंद कर दी गई है क्योंकि इसकी सफलता दर केवल 2% रही।
दिल्ली जैसे महानगर में झुग्गी पुनर्वास एक अत्यंत जटिल कार्य है। PPP मॉडल में सुधार की कोशिशें की जा रही हैं, परंतु इसमें सफलता तभी मिल सकती है जब नीति व्यावसायिक दृष्टि से आकर्षक हो और सामाजिक रूप से स्वीकार्य भी। सरकार को चाहिए कि वह झुग्गीवासियों की सुरक्षा और डेवलपर्स की व्यापारिक चिंताओं के बीच संतुलन साधे। जब तक ज़मीनी स्तर पर विश्वास, पारदर्शिता और व्यावसायिक व्यवहार्यता सुनिश्चित नहीं होती, तब तक इस नीति की गति धीमी ही रहेगी।