त्रिनिदाद में रामलीला: समुद्र पार भारतीय संस्कृति की अमिट छाप

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में त्रिनिदाद में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए कहा, “हमारे संबंध केवल भूगोल या पीढ़ियों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि हमारे बीच एक दिव्य सूत्र है — प्रभु श्रीराम।” त्रिनिदाद और टोबैगो, एक छोटा कैरिबियाई द्वीप राष्ट्र, जहां की लगभग आधी जनसंख्या भारतीय मूल की है, आज भी रामायण और विशेष रूप से रामलीला के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखे हुए है।
गिरमिटिया इतिहास और भारतीय आगमन
ब्रिटेन ने 1834 में गुलामी समाप्त कर दी, जिससे त्रिनिदाद जैसे उपनिवेशों में श्रम संकट उत्पन्न हुआ। इसके समाधान के लिए 1845 से भारत से अनुबंधित श्रमिकों को लाया गया। इन श्रमिकों को ‘गिरमिटिया’ कहा गया, जो अंग्रेजी शब्द ‘एग्रीमेंट’ का बोलीचालित रूप था। ये श्रमिक मुख्य रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से आए थे और चीनी के बागानों में कठोर परिस्थितियों में काम करते थे।
रामचरितमानस और रामलीला की समुद्र पार यात्रा
गिरमिटिया श्रमिक बहुत कम भौतिक वस्तुएँ साथ ला सके, लेकिन वे अपनी संस्कृति, भाषा और परंपराओं को साथ लेकर आए। उनमें सबसे महत्वपूर्ण थी — रामचरितमानस। त्रिनिदाद के ग्रामीण इलाकों में, जहां भोजपुरी बोली जाती थी और चपाती खाई जाती थी, वहीं रामलीला का स्वरूप उभरा। रामलीला न केवल धार्मिक आयोजन थी, बल्कि यह सामुदायिक जुड़ाव का प्रमुख केंद्र बन गई।
बदलाव के दौर और सांस्कृतिक पुनर्जागरण
19वीं सदी के उत्तरार्ध में जैसे-जैसे औपचारिक शिक्षा का प्रसार हुआ और अंग्रेज़ी भाषा प्रमुख हुई, रामलीला की लोकप्रियता में गिरावट आई। शहरीकरण के कारण त्योहारों और सामाजिक आयोजनों का महत्व भी घटा। लेकिन जैसे-जैसे भारतीय मूल के त्रिनिदादवासी सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त हुए, उन्होंने अपनी सांस्कृतिक जड़ों की ओर फिर से रुख किया।
अब रामलीला में लिंग और जाति की सीमाएँ कम हो चुकी हैं। संवाद सरल बनाए गए हैं और रंगमंच तकनीकें आधुनिक हो चुकी हैं। इसके बावजूद, इसकी आत्मा — रामचरितमानस की शिक्षाएँ — अब भी दर्शकों तक पहुँचती हैं, चाहे वे हिंदी समझें या नहीं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- त्रिनिदाद में पहली बार भारतीय श्रमिक 30 मई 1845 को पहुँचे थे।
- गिरमिटिया प्रणाली ब्रिटिश उपनिवेशों में गुलामी के बाद श्रम आपूर्ति का विकल्प थी।
- रामलीला त्रिनिदाद में ‘भारतीयता’ की सबसे प्रमुख सांस्कृतिक पहचान मानी जाती है।
- रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास की रचना 16वीं शताब्दी में हुई थी।
त्रिनिदाद में रामलीला केवल एक धार्मिक मंचन नहीं है, बल्कि यह एक जीवंत सांस्कृतिक धरोहर है जिसने पीढ़ियों को भारतीय परंपराओं से जोड़े रखा है। यह हमें बताता है कि जब संस्कृति समुद्र पार जाती है, तो वह नए रंग ले सकती है, पर उसकी जड़ें वही रहती हैं — गहरी, मजबूत और प्रेरणादायक।