डुरंड कप 2024: एशिया का सबसे पुराना फुटबॉल टूर्नामेंट फिर चर्चा में

भारत के सबसे प्रतिष्ठित और ऐतिहासिक फुटबॉल टूर्नामेंट, डुरंड कप का 134वां संस्करण कोलकाता में शुरू हो चुका है। 1888 में स्थापित यह टूर्नामेंट ब्रिटिश आइलैंड्स के बाहर का सबसे पुराना जीवित फुटबॉल टूर्नामेंट है और एक समय भारतीय फुटबॉल की शान हुआ करता था। वर्तमान में यह टूर्नामेंट भले ही एक प्री-सीज़न अभ्यास का रूप ले चुका हो, लेकिन इसका इतिहास गौरवपूर्ण और प्रेरणादायक रहा है।
ब्रिटिश राज में उद्भव
डुरंड कप की शुरुआत ब्रिटिश राज में सर मॉर्टिमर डुरंड द्वारा की गई थी, जो अफगानिस्तान और ब्रिटिश भारत के बीच विवादित डुरंड लाइन के लिए जाने जाते हैं। 1888 में शुरू हुए इस टूर्नामेंट का उद्देश्य ब्रिटिश सैनिकों के लिए मनोरंजन का साधन प्रदान करना था। प्रारंभिक वर्षों में इसमें छह ब्रिटिश और दो स्कॉटिश रेजिमेंटल टीमों ने भाग लिया। 1940 तक यह टूर्नामेंट शिमला के एन्नाडेल मैदान में आयोजित होता था, जहां सैन्य धूमधाम के बीच मैच खेले जाते थे।
भारतीय टीमों की भागीदारी
1922 में कोलकाता स्थित मोहन बागान इस टूर्नामेंट में भाग लेने वाली पहली सिविलियन भारतीय टीम बनी। हालांकि शुरुआती वर्षों में नंगे पांव खेलने वाली भारतीय टीमें ब्रिटिश टीमों के मुकाबले टिक नहीं पाती थीं। इस चुनौती को देखते हुए 1937 में “छोटा डुरंड” नामक एक अलग टूर्नामेंट शुरू किया गया, जिसमें पहले राउंड में बाहर हुई टीमों को अवसर दिया जाता था।
1940 में मोहम्मडन स्पोर्टिंग ने रॉयल वॉरविकशायर रेजिमेंट को 2-1 से हराकर ब्रिटिश प्रभुत्व को तोड़ा। यह मैच दिल्ली के इरविन एम्फीथिएटर (अब मेजर ध्यानचंद स्टेडियम) में 1 लाख दर्शकों की उपस्थिति में हुआ था।
टूर्नामेंट का स्वर्णकाल
द्वितीय विश्व युद्ध, स्वतंत्रता और विभाजन के बाद डुरंड कप 1950 में फिर शुरू हुआ। डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर नीलम संजीव रेड्डी तक छह राष्ट्रपति इस टूर्नामेंट के फाइनल में उपस्थित रहे। स्वतंत्रता के बाद सेना की टीमें लगातार भाग लेती रहीं, लेकिन सिविलियन क्लबों का वर्चस्व बढ़ा।
मोहन बागान (17 बार) और ईस्ट बंगाल (16 बार) अब तक के सबसे सफल क्लब रहे हैं। सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने सात बार, पंजाब के JCT ने पांच बार और हैदराबाद सिटी पुलिस ने चार बार यह कप जीता।
1990 के बाद गिरावट
1980 के दशक तक डुरंड कप को खिलाड़ियों की योग्यता का मानदंड माना जाता था। लेकिन 1990 के दशक में जब विदेशी लीगों का टेलीविजन पर आगमन हुआ और क्रिकेट का प्रभाव बढ़ा, तब डुरंड कप की लोकप्रियता घटने लगी। बड़े क्लबों ने इसमें रुचि खो दी, और कभी-कभी अपने बी-टीम ही भेजते थे।
कोलकाता में नई शुरुआत
2019 से डुरंड कप मुख्यतः कोलकाता में आयोजित किया जा रहा है। हाल के वर्षों में यह टूर्नामेंट एक प्री-सीज़न प्रतियोगिता के रूप में माना जाता है, जहां क्लब अपने खिलाड़ियों को परखते और रणनीतियों को अंतिम रूप देते हैं। फिर भी, इसकी विरासत और इतिहास इसे भारतीय फुटबॉल में विशेष स्थान दिलाते हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- डुरंड कप की शुरुआत 1888 में हुई थी, इसे सर मॉर्टिमर डुरंड ने शुरू किया था।
- यह टूर्नामेंट ब्रिटिश भारत में सेना के मनोरंजन के लिए शुरू किया गया था।
- मोहम्मडन स्पोर्टिंग 1940 में इसे जीतने वाली पहली भारतीय टीम बनी थी।
- मोहन बागान और ईस्ट बंगाल इस टूर्नामेंट के सबसे सफल क्लब हैं।
डुरंड कप आज भले ही अपनी पुरानी चमक खो चुका हो, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व और भारतीय फुटबॉल के विकास में योगदान अविस्मरणीय है। कोलकाता जैसे फुटबॉल प्रेमी शहर में इसका आयोजन इस विरासत को आगे बढ़ाने का एक सकारात्मक प्रयास है।