डीपफेक पर लगाम के लिए डेनमार्क का ऐतिहासिक कदम, चेहरे और आवाज़ को मिला कॉपीराइट सुरक्षा का प्रस्ताव

इंटरनेट पर गहराते डीपफेक संकट से निपटने के लिए डेनमार्क ने एक क्रांतिकारी पहल करते हुए एक नया विधेयक प्रस्तावित किया है, जो आम नागरिकों के चेहरे, रूप-रंग और आवाज़ को कॉपीराइट सुरक्षा के दायरे में लाएगा। यह कानून डीपफेक तकनीक के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में एक ऐतिहासिक प्रयास माना जा रहा है।

क्या है डीपफेक और क्यों है यह खतरनाक?

डीपफेक एक प्रकार की कृत्रिम मीडिया है, जिसमें वीडियो, ऑडियो या चित्रों के माध्यम से किसी व्यक्ति को ऐसा दिखाया जाता है, जैसे वह कुछ कह रहा हो या कर रहा हो — जबकि वास्तव में ऐसा कुछ नहीं हुआ होता। एआई तकनीक ने डीपफेक को न केवल सरल बना दिया है, बल्कि इतना परिष्कृत भी कर दिया है कि असली और नकली में अंतर करना कठिन हो गया है। इस तकनीक का इस्तेमाल अश्लील कंटेंट, फर्जी प्रचार और धोखाधड़ी जैसे कार्यों में हो रहा है।

डेनमार्क के विधेयक की विशेषताएं

डेनमार्क के संस्कृति मंत्री जैकब एंगेल-श्मिड के अनुसार, प्रस्तावित कानून लोगों को “अपनी आवाज़, अपने चेहरे की विशेषताओं पर अधिकार” देगा और बिना सहमति के उसका इस्तेमाल अवैध होगा। विधेयक में तीन प्रमुख सुरक्षा प्रावधान शामिल हैं:

  • नकल संरक्षण (Imitation Protection): किसी व्यक्ति की शक्ल या आवाज़ की यथार्थवादी डिजिटल नकल को सार्वजनिक रूप से साझा करना प्रतिबंधित होगा।
  • प्रदर्शन संरक्षण (Performance Protection): ऐसे कलात्मक प्रदर्शन, जो पारंपरिक कॉपीराइट मानदंडों पर खरे नहीं उतरते, उन्हें भी सुरक्षा दी जाएगी।
  • कलाकार सुरक्षा (Performing Artists Protection): इसमें संगीतकारों, अभिनेताओं और अन्य प्रदर्शनकारियों की डिजिटल नकल को निशाना बनाया गया है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सुरक्षा केवल मशहूर हस्तियों के लिए नहीं, बल्कि आम नागरिकों के लिए भी लागू होगी। प्रस्तावित धारा 73(a) के तहत, किसी व्यक्ति की यथार्थवादी डीपफेक सामग्री को उसकी मृत्यु के 50 वर्षों तक साझा नहीं किया जा सकेगा — बिना उसकी सहमति के।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • डीपफेक तकनीक सबसे पहले 2017 में व्यापक रूप से सामने आई और अब यह इंटरनेट पर आम हो चुकी है।
  • डेनमार्क का यह विधेयक “हानी से स्वतंत्र” (harm-agnostic) है — यानी यह डीपफेक की प्रकृति को ही गैरकानूनी बनाता है, न कि केवल उससे उत्पन्न हानियों को।
  • भारत में 2022 में अमिताभ बच्चन और 2023 में अनिल कपूर को उनके चेहरे और आवाज़ के अघोषित उपयोग से कानूनी सुरक्षा दी गई थी।
  • यूरोपीय मानवाधिकार संधि के तहत डेनमार्क का यह कानून व्यंग्य और पैरोडी जैसे अभिव्यक्ति के कुछ रूपों को संरक्षण के दायरे से बाहर रखता है।

संभावनाएं और चुनौतियां

यह विधेयक तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण जरूर है, लेकिन डिजिटल युग में निजता और पहचान की रक्षा की दिशा में एक मजबूत संकेत देता है। हालांकि यह केवल डेनमार्क में लागू होगा, परंतु इसे वैश्विक स्तर पर एक मॉडल के रूप में देखा जा रहा है। आलोचकों का मानना है कि यदि क्रियान्वयन की प्रक्रिया धीमी या जटिल रही, तो इसका प्रभाव सीमित रह सकता है।
डेनमार्क का यह प्रस्ताव न केवल डिजिटल सुरक्षा को पुनर्परिभाषित करता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर डिजिटल अधिकारों के लिए एक नई बहस की शुरुआत करता है। भारत सहित अन्य देशों के लिए यह विधेयक प्रेरणा का स्रोत बन सकता है, जो अभी तक डिजिटल नकल से निपटने के लिए स्पष्ट कानूनों से वंचित हैं।

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