ज्येष्ठ अष्टमी पर खीर भवानी मंदिर में कश्मीरी पंडितों की आस्था का पर्व

हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाने वाली ज्येष्ठ अष्टमी, जिसे कश्मीरी पंडित समुदाय “ज़्येठ अठम” के नाम से जानता है, कश्मीर घाटी में श्रद्धा और सांस्कृतिक विरासत का एक अनूठा संगम है। इस दिन कश्मीरी पंडित देवी रज्न्या (खीर भवानी) की पूजा करते हैं, जिनका प्रमुख मंदिर जम्मू और कश्मीर के गांदरबल जिले के तुलमुला गांव में स्थित है।

खीर भवानी मंदिर और उसका ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व

तुलमुला स्थित खीर भवानी मंदिर एक पवित्र झरने के ऊपर बना है, जो खासतौर पर चनार वृक्षों से घिरे हुए प्राकृतिक वातावरण में स्थित है। यह मंदिर देवी दुर्गा के अवतार रज्न्या देवी को समर्पित है, जिन्हें कश्मीरी पंडित अपनी कुलदेवी मानते हैं। मंदिर का नाम ‘खीर भवानी’ इसलिए पड़ा क्योंकि यहां देवी को खीर (चावल और दूध की खीर) का प्रसाद अर्पित किया जाता है।

इतिहासकार कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ और भृंगेश संहिता के ‘रज्न्या प्रादुर्भाव’ में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। वर्तमान संगमरमर संरचना डोगरा शासक महाराजा प्रताप सिंह द्वारा 20वीं सदी के प्रारंभ में बनवाई गई थी और बाद में महाराजा हरि सिंह ने इसका पुनर्निर्माण कराया।

पौराणिक कथाएं और नागों का संबंध

पौराणिक मान्यता के अनुसार, रज्न्या देवी को पहले लंका में रावण द्वारा पूजा जाता था। रावण के अत्याचारों से क्रोधित होकर देवी ने लंका छोड़ दी और हनुमान जी की सहायता से कश्मीर पहुंचीं। उन्होंने तुलमुला को अपना निवास स्थान चुना और उनके साथ 360 नाग भी आए।

एक अन्य कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण कृष्ण पंडित को एक स्वप्न में देवदूत ने बताया कि तुलमुला के दलदल में खीर भवानी का झरना स्थित है और वहां पहुंचने का मार्ग एक नाग दिखाएगा। यह झरना ही आज का खीर भवानी नाग है।

झरने का रंग बदलना: घाटी की भविष्यवाणी

इस झरने का जल समय-समय पर रंग बदलता है, जिसे कश्मीरी पंडित घाटी की स्थिति का संकेत मानते हैं। हल्के नीले और हरे रंग को शुभ और शांति का संकेत माना जाता है, जबकि काले या लाल रंग को अशांति या संकट का संकेत माना जाता है। 1990 में जब घाटी में कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ, तब कहा जाता है कि झरने का रंग काला हो गया था।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

    • खीर भवानी मंदिर कश्मीर के गांदरबल जिले के तुलमुला गांव में स्थित है, जो श्रीनगर से लगभग 25 किमी दूर है।
    • मंदिर का प्रमुख प्रसाद खीर होता है, जो देवी को चढ़ाया जाता है, जिससे मंदिर को ‘खीर भवानी’ कहा जाता है।
  • 1990 के पलायन से पूर्व हर वर्ष हजारों कश्मीरी पंडित इस दिन मंदिर में एकत्र होते थे, और अब प्रवासी समुदाय भी इस दिन वापस लौटता है।
  • झरने का रंग बदलने की मान्यता स्थानीय लोकविश्वास का हिस्सा है, जिसे घाटी की स्थिति का दर्पण माना जाता है।
  • यह मंदिर जम्मू-कश्मीर धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा संचालित होता है, और हर साल हजारों श्रद्धालु मेला एवं हवन में भाग लेते हैं।

ज्येष्ठ अष्टमी का पर्व खीर भवानी मंदिर में न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह कश्मीरी पंडित समुदाय की सांस्कृतिक पहचान, एकजुटता और पुनर्संयोजन का प्रतीक भी बन गया है। यह पर्व हजारों साल पुरानी परंपराओं को आज भी जीवंत रखे हुए है।

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