जेल में कैदियों को धार्मिक आहार देने की कानूनी स्थिति: जैन भोजन पर मुंबई मामला

जेल में कैदियों को धार्मिक आहार देने की कानूनी स्थिति: जैन भोजन पर मुंबई मामला

भारत की जेलों में बंद कैदियों के अधिकारों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण मामला हाल ही में मुंबई की एक विशेष अदालत के समक्ष आया, जिसमें एक विचाराधीन कैदी ने जैन धर्म के अनुसार भोजन न मिलने की शिकायत दर्ज कराई। इस घटना ने जेलों में धार्मिक आहार संबंधी अधिकारों और व्यवस्थाओं पर एक बार फिर से बहस को जन्म दिया है।

मामला क्या है?

मार्च 2025 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में मुंबई निवासी रितेशकुमार एस शाह को गिरफ्तार किया। मई में उन्होंने अदालत से यह अनुरोध किया कि वह जैन धर्म के अनुयायी हैं और उन्हें जेल में जैन आहार नहीं मिल रहा, जिससे उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ा है। उन्होंने बताया कि वह केवल चपाती खाकर जीवित हैं और उनका वजन भी काफी घट गया है।
14 मई को अदालत ने उनकी याचिका स्वीकार करते हुए जेल अधीक्षक को निर्देश दिया कि शाह को जैन धर्म के अनुसार भोजन उपलब्ध कराया जाए। हालांकि, जून में शाह ने फिर से अदालत से शिकायत की कि आदेश के बावजूद उन्हें उचित भोजन नहीं मिल रहा। अदालत ने जेल अधीक्षक को कारण बताओ नोटिस जारी किया। अधीक्षक ने जवाब में कहा कि उन्हें बिना प्याज, लहसुन और आलू के दाल-सब्ज़ी दी जा रही है, जो जैन आहार की शर्तों के अनुकूल है।

जेल मैनुअल में भोजन से जुड़े नियम

गृह मंत्रालय द्वारा जारी मॉडल जेल मैनुअल के अनुसार:

  • औसतन पुरुष को प्रतिदिन 2000-2400 कैलोरी और भारी श्रम करने वाले को 2800 कैलोरी की आवश्यकता होती है।
  • महिलाओं के लिए 2400 कैलोरी निर्धारित है।
  • भोजन में आवश्यक पोषक तत्व जैसे प्रोटीन और विटामिन की मात्रा भी तय होती है।

चूंकि जेल एक राज्य विषय है, प्रत्येक राज्य की परिस्थितियों और कैदियों की आदतों के अनुसार भोजन का पैमाना तय किया जाता है। मैनुअल में यह भी कहा गया है कि धार्मिक उपवास रखने वाले कैदियों को विशेष व्यवस्था दी जा सकती है, लेकिन जाति या धर्म के आधार पर रसोई प्रबंधन की अनुमति नहीं है।

अदालतों के निर्णय और नीतिगत अस्पष्टता

भारत में अलग-अलग अदालतों ने विभिन्न मामलों में धार्मिक आधार पर भोजन की मांग को लेकर निर्णय दिए हैं:

  • 1958 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि जेलें व्यक्तिगत पसंद का पालन करने की जगह नहीं हैं।
  • 2017 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने रमज़ान के दौरान उपवास रखने वाले कैदियों के लिए दो समय का भोजन उपलब्ध कराने की नीति की आवश्यकता पर बल दिया।
  • 2022 में आम आदमी पार्टी के मंत्री सत्येन्द्र जैन ने जेल में जैन आहार न मिलने की शिकायत की थी, जिसे अदालत ने “विशेष व्यवहार” बताते हुए खारिज कर दिया।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत में जेल व्यवस्था राज्य सरकारों के अंतर्गत आती है।
  • मॉडल जेल मैनुअल 2016 में गृह मंत्रालय द्वारा अद्यतन रूप में जारी किया गया।
  • जेलों में विशेष धार्मिक आहार की व्यवस्था अदालत के निर्देशों पर ही की जाती है।
  • महाराष्ट्र जेलों में उपवास के दौरान फलों व साबुदाना जैसे विकल्प उपलब्ध कराए जाते हैं।

भारत में विचाराधीन कैदियों को संविधान द्वारा कुछ अधिकार दिए गए हैं, लेकिन जेल नियमों के तहत उनकी स्वतंत्रता सीमित होती है। भोजन जैसी मूलभूत आवश्यकता पर भी जब धार्मिक आस्था जुड़ती है, तो यह एक संवेदनशील मुद्दा बन जाता है। अदालतों का दृष्टिकोण इस पर स्थिति-विशेष पर निर्भर करता है, जिससे एक समान नीति की आवश्यकता महसूस होती है। आने वाले समय में ऐसी स्थिति से निपटने के लिए एक स्पष्ट और सुसंगत नीतिगत ढांचा आवश्यक है।

Originally written on July 9, 2025 and last modified on July 9, 2025.

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