जून में भारत की खुदरा महंगाई में ऐतिहासिक गिरावट: खाद्य कीमतों में राहत और मानसून का योगदान

भारत में जून 2025 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति वर्ष दर वर्ष केवल 2.1% रही, जो अमेरिका (2.7%) और ब्रिटेन (3.6%) से काफी कम है। विशेष रूप से खाद्य वस्तुओं की महंगाई में भारत ने नकारात्मक वृद्धि (-1.1%) दर्ज की, जबकि अमेरिका में यह 3% और ब्रिटेन में 4.5% रही। यह गिरावट भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और आम जनता के लिए बड़ी राहत मानी जा रही है।

खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट का कारण

2023 के मध्य से लेकर 2024 के अंत तक भारत में खाद्य वस्तुओं की महंगाई ने कई महीनों तक ऊंचाई देखी थी। लेकिन 2024 के मानसून ने इस स्थिति को बदल दिया। 2024 का मानसून 7.6% अधिक वर्षा के साथ समाप्त हुआ, जिससे खरीफ और रबी दोनों फसलों की पैदावार में जबरदस्त वृद्धि हुई। 2025 की शुरुआत से ही बाजार में इन फसलों की आवक बढ़ने लगी, जिससे खाद्य वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता आई और जून में यह गिरावट में परिवर्तित हो गई।

गेहूं और चावल का भंडारण: आत्मनिर्भरता की ओर

2025 में सरकारी एजेंसियों ने 300.35 लाख टन गेहूं की खरीद की, जो पिछले तीन वर्षों की तुलना में अधिक है। इसके परिणामस्वरूप, 1 जुलाई 2025 को गेहूं का सरकारी भंडार 358.78 लाख टन पर पहुंच गया, जो चार वर्षों का उच्चतम स्तर है। चावल के रिकॉर्ड भंडार के साथ मिलकर यह भारत को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाता है और खुले बाजार में भी कीमतों को नियंत्रित करने की क्षमता देता है।

मानसून की भूमिका और खरीफ फसल की स्थिति

मानसून इस वर्ष 24 मई को सामान्य से आठ दिन पहले केरल पहुंचा। मई और जून दोनों महीनों में औसत से काफी अधिक वर्षा दर्ज की गई, और जुलाई भी अब तक सकारात्मक रहा है। खरीफ फसलों की बुआई में वृद्धि देखी गई है, विशेषकर मक्का और मूंग जैसे फसलों में। हालांकि अरहर, सोयाबीन और कपास जैसी कुछ फसलों के रकबे में कमी आई है, जिसका मुख्य कारण कम कीमतें और कीट आक्रमण हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • जून 2025 में भारत की उपभोक्ता महंगाई दर 2.1% रही, जो जनवरी 2019 के बाद सबसे कम है।
  • 2024 का मानसून सामान्य से 7.6% अधिक वर्षा के साथ समाप्त हुआ।
  • 1 जुलाई 2025 को भारत का गेहूं भंडार 358.78 लाख टन रहा, जो चार वर्षों में सबसे अधिक है।
  • भारत ने 2024-25 में 72.56 लाख टन दालें और 164.13 लाख टन खाद्य तेल का आयात किया।

उर्वरकों की आपूर्ति: एक संभावित चुनौती

जहाँ एक ओर मानसून ने कृषि को गति दी है, वहीं उर्वरकों की कमी चिंता का कारण बन सकती है। यूरिया और डीएपी के भंडार पिछले वर्ष की तुलना में कम हैं, और चीन से आयात में भारी गिरावट आई है। डीएपी की आयात लागत भी जून 2024 के $525 प्रति टन से बढ़कर वर्तमान में $810 प्रति टन हो गई है। इससे उत्पादन पर असर पड़ सकता है, हालांकि इसका वास्तविक प्रभाव आगामी महीनों में स्पष्ट होगा।
भारतीय कृषि क्षेत्र फिलहाल खाद्य मुद्रास्फीति पर नियंत्रण और भरपूर उत्पादन की स्थिति में है। हालांकि उर्वरकों की उपलब्धता और मानसून की आगे की स्थिति पर निर्भर करता है कि यह स्थिरता कितनी लंबी चलेगी। लेकिन अभी के लिए, यह समय राहत और उम्मीद का है।

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